Ranchi: देश में एक बार फिर जातिगत जनगणना पर बहस शुरू हो गई है. जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में क्षेत्रिय दल एकजुट हो रहे हैं. बिहार में एक-दूसरे के विरोध जेडीयू और आरजेडी इस मुद्दे पर एक हैं, लेकिन झारखंड में जातिगत जनगणना को लेकर कांग्रेस और अन्य क्षेत्रियों दलों में कनफ्यूजन जारी है. कांग्रेस के कुछ नेता इसके पक्ष में हैं, तो कुछ नेताओं का कहना है कि जातिगत जनगणना का कोई मतलब नहीं बनता है. जेएमएम का स्टैंड क्लीयर है कि जातिगत जनगणना होनी चाहिए. वहीं बीजेपी में भी इसे लेकर अलग-अलग राय है. बीजेपी के नेता सरकार के फैसले के साथ हैं, लेकिन ओबीसी मोर्चा के नेता व्यक्तिगत तौर पर मानते हैं कि जातिगत जनगणना होनी चाहिए. वहीं सदान मोर्चा समेत कई क्षेत्रिय संगठन जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं.
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जातिगत जनगणना पर कांग्रेस में अलग-अलग राय
कांग्रेस के अंदर जातिगत जनगणना को लेकर अलग-अलग राय है. कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व का इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं आने की वजह से कांग्रेस नेता खुलकर इसपर कुछ नहीं बोल पा रहे हैं. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता लाल किशोर नाथ शाहदेव का कहना है कि जातिगत जनगणना पर केंद्रीय नेतृत्व का फैसला आने के बाद ही प्रदेश में रणनीति बनाई जाएगी. प्रवक्ता शमशेर आलम भी कहते हैं कि इसपर केंद्रीय नेतृत्व के फैसले का इंतजार किया जा रहा है. वहीं कांग्रेस अल्पसंख्य विंग के अध्यक्ष अकील अख्तर का कहना है कि जाति आधारित जनगणना देशहित में नहीं है. जाति के आधार पर जनगणना का कोई मतलब नहीं बनता है.
जेएमएम का स्टैंड क्लीयर
जेएमएम प्रवक्ता मनोज पांडेय का कहना है कि जेएमएम जातिगत जनगणना के पक्ष में है. यह स्पष्ट होना चाहिए कि देश में किस समुदाय के कितने लोग हैं. संख्या सामने रहने पर उस जाति विशेष के लिए सरकार नीति-निर्धारण कर सकती है. जातिगत जनगणना से वंचित समुदाय की भी पहचान होगी और फिर उस समाज को उनका हक और पहचान दिलाने के लिए सरकार बेहतर तरीके से अपने प्रोग्राम को डिलीवर कर सकती है.
बीजेपी नेताओं में भी जातिगत जनगणना पर मतभेद
बीजेपी के नेताओं में जातिगत जनगणना पर मतभेद दिख रहा है. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा का कहना है कि बीजेपी का मानना है कि देश को जाति के आधार पर न बांटा जाए. विपक्षी दल जाति के आधार पर समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. क्षेत्रिय पार्टियां जाति के आधार पर राजनीति करती हैं. कुछ खास समुदाय को क्षेत्रिय पार्टियां अपना बंधक मानती हैं. इसलिए वे लोग जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं. प्रदेश प्रवक्ता अमित कुमार का कहना है कि इस मुद्दे पर बीजेपी का स्टैंड क्लीयर है. अगर कुछ बातें आती हैं तो सभी दलों के साथ बैठकर इसपर विचार किया जा सकता है और जो फैसला होगा उसपर अमल किया जाएगा. वहीं बीजेपी ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अमरदीप यादव का कहना है कि वे व्यक्तिगत तौर पर जातिगत जनगणना कराये जाने के पक्ष में हैं. इसपर पार्टी के वरीय नेताओं के साथ बैठकर चर्चा किया जाएगा.
1931 के बाद नहीं हुई जातिगत जनगणना
केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में बयान दिया था कि सरकार का जातीय जनगणना कराने का कोई विचार नहीं है. इसके बाद इस मुद्दे ने तूल पकड़ लिया है. गौरतलब है कि 1931 तक देश में जातिगत जनगणना होती थी. इसके बाद 1941 में जाति आधारित डेटा जुटाया गया, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया. 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं.
10 साल पहले बीजेपी ही जातिगत जनगणना की मांग करती थी
आज बीजेपी भले ही जातिगत जनगणना की मांग को खारिज करती है. लेकिन 10 साल पहले बीजेपी विपक्ष में थी, तब बीजेपी नेता खुद यह मांग करते थे. बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे ने संसद में 2011 की कहा था, “अगर इस बार भी जनगणना में हम ओबीसी की जनगणना नहीं करेंगे, तो ओबीसी को सामाजिक न्याय देने के लिए और 10 साल लग जाएंगे.
2018 में राजनाथ ने जातिगत जनगणना कराने की बात कही थी
इससे पहले पिछली सरकार में जब राजनाथ सिंह गृह मंत्री थे, उस वक़्त 2021 की जनगणना की तैयारियों की समीक्षा करते समय 2018 में उन्होंने कहा था कि ओबीसी पर डेटा नई जनगणना में एकत्रित की जाएगी. लेकिन अब सरकार अपने पिछले वादे से संसद में ही मुकर गई.
2011 में कांग्रेस ने जुटाये थे जातियों के आंकड़े
वहीं कांग्रेस ने 2011 में SECC यानी सोशियो इकोनॉमिक कास्ट सेंसस आधारित डेटा जुटाया था. चार हजार करोड़ से ज़्यादा रुपए खर्च किए गए और ग्रामीण विकास मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी गई. 2016 में जाति को छोड़ कर SECC के सभी आंकड़े प्रकाशित हुए, लेकिन जातिगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हुए. जाति का डेटा सामाजिक कल्याण मंत्रालय को सौंप दिया गया. बाद में एक एक्सपर्ट ग्रुप भी बना, लेकिन उसके बाद आंकड़ों का क्या हुआ, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई.
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