जब पश्चिम अंधकार युग में था, तब हम भौतिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान, गणित आदि में गुरु थे. लेकिन हमने इसे खो दिया.
Mumbai : प्राचीन भारतीय रणनीतियां शासन कला को समझने में मददगार बन सकती हैं. भारत अतीत में विश्व मित्र होने के साथ-साथ विश्व गुरु भी था. प्राचीन भारतीय ग्रंथों का ज्ञान आज की रणनीति की जरूरतों के लिए प्रासंगिक है. प्राचीन भारतीय ग्रंथ ज्ञान के भंडार हैं. नेशनल खबरों के लिए यहां क्लिक करें
अनिल चौहान ने रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्यों का उदाहरण दिया
सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने रामायण, महाभारत जैसे बड़े महाकाव्यों का उदाहरण देते हुए यह बात कही. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान शनिवार को दक्षिणी कमान (पुणे मुख्यालय) के सहयोग से पेंटागन प्रेस द्वारा आयोजित रक्षा साहित्य महोत्सव कलम और कवच कार्यक्रम में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि भारत का प्राचीन ज्ञान आज की रणनीतिक जरूरतों के लिए प्रासंगिक है.
हम वही भारतीय हैं जो एक समय में विश्व गुरु थे
उद्घाटन भाषण दक्षिणी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एके सिंह ने दिया. उन्होंने आधुनिक खतरों और चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए प्राचीन रणनीतियों को अपनाने पर बल दिया. सीडीएस जनरल चौहान ने आधुनिक युद्ध में प्राचीन भारतीय रणनीतियां विषय पर विचार रखे. प्राचीन विश्व में भारत की स्थिति के संदर्भ में सीडीएस ने कहा, जब पश्चिम अंधकार युग में था, तब हम भौतिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान, गणित आदि में गुरु थे. लेकिन हमने इसे खो दिया. गहन शिक्षा हमारे डीएनए का हिस्सा थी. कहा कि वह डीएनए आज भी नहीं बदला है. हम वही भारतीय हैं जो एक समय में विश्व गुरु थे.
भारतीय ग्रंथ शासन कला, कूटनीति को समझने में मदद कर सकते हैं
जनरल चौहान ने कहा कि प्राचीन भारतीय ग्रंथ आपको शासन कला, कूटनीति को समझने या एक बड़ी रणनीति विकसित करने में मदद कर सकते हैं. जब आप टीटीपी (रणनीति, तकनीक और प्रक्रियाएं) को देखते हैं जो प्रौद्योगिकी से प्रभावित है, तो आपको यह प्रासंगिक नहीं लग सकता है. मैं जो कह रहा हूं वह प्रासंगिक है, क्योंकि वे आपको बताते हैं कि आप एक समय में विश्व गुरु थे. इसलिए प्राचीन भारतीय युक्तियां हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत होनी चाहिए. सीडीएस ने सशस्त्र बलों की दुनिया को लेकर कहा कि यह बड़े बदलाव के कगार पर है. यह समय सैन्य मामलों की तीसरी क्रांति का है.
न्यायसंगत युद्ध की अवधारणा भारत में यह पौराणिक काल से मौजूद रही है
जनरल चौहान ने कहा कि न्यायसंगत युद्ध की अवधारणा के बारे में कहा जाता है कि यह चौथी शताब्दी में सेंट आगस्टीन द्वारा रखी गयी थी, लेकिन, भारत में यह पौराणिक काल से मौजूद रही है. सीडीएस ने कहा, भगवान राम के अलावा इस अवधारणा के प्रस्तावक और कौन हो सकते हैं? कहा कि भगवान राम को युद्ध में जाने का पूरा अधिकार था. उनकी सेना ने युद्ध के दौरान नैतिक आचरण का प्रदर्शन किया. राम ने विभीषण को राजा नियुक्त किया. कब्जा किये गये क्षेत्र लौटा दिये गये और वापस अपने राज्य अयोध्या को लौट आये.
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