सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने कानून को रद्द कर दिया था
बता दें कि सितंबर 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने कानून को रद्द कर दिया था, जिसके तहत भारत में व्यभिचार अपराध करार दिया गया था. उस कानून में आईपीसी की धारा 497 के तहत एक पुरुष को एक व्याभिचार के लिए सजा देने का प्रावधान था. हालांकि महिलाओं के लिए सजा नहीं थी. कानून के तहत उन्हें पुरूष की संपत्ति माना जाता था. अब व्यभिचार को लेकर IPC की धारा 497 को रद्द करने का मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट में है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि सशस्त्र सैन्य बलों में व्यभिचार को अपराध ही रहने दिया जाये. इसे भी पढ़ें : जेएनयू">https://lagatar.in/nsa-ajit-doval-inspired-the-youth-of-jnu-by-giving-the-message-of-swami-vivekananda/17513/">जेएनयूके युवाओं को एनएसए अजीत डोभाल ने स्वामी विवेकानंद का संदेश देकर प्रेरित किया
CJI दीपक मिश्रा ने कहा था,यह अपराध नहीं होना चाहिए
केंद्र ने कहा है कि दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यभिचार पर दिये गये फैसले को सशस्त्र बलों पर लागू नहीं किया जाना चाहिए, जहां एक कर्मचारी को सहकर्मी की पत्नी के साथ व्यभिचार करने के लिए असहनीय आचरण के आधार पर सेवा से निकाला जा सकता है. जान लें कि सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने 27 सितंबर 2018 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 व्यभिचार (Adultery) कानून को खत्म कर दिया था. फैसला सुनाते हुए देश के तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा ने कहा था,यह अपराध नहीं होना चाहिए. 158 साल पुराने व्यभिचार-रोधी कानून को रद्द करते हुए तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि व्यभिचार अपराध नहीं है. इसे भी पढ़ें : LAGATAR">https://lagatar.in/lagatar-impact-investigation-will-be-conducted-against-the-inferior-essayist-avinash-kumar-in-the-land-registry-case-order-for-action-by-20-january/17487/">LAGATARIMPACT: जमीन रजिस्ट्री मामले में अवर निबंधक अविनाश कुमार के खिलाफ होगी जांच, 20 जनवरी तक कार्रवाई का आदेश