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केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, संसद को SC के आदेशों को उलटने का अधिकार

NewDelhi : संसद को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को उलटने का अधिकार है. SC का  आदेश संसद खारिज कर सकती है.  यह केंद्र सरकार का कहना है. एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने गुरुवार को एक मामले की सुनवाई के क्रम में यह बात कही. इस मामले में मद्रास बार एसोसिएशन ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स (रेशनलाइज़ेशन्स एण्ड कन्डीशन्स ऑफ सर्विस) ऑर्डनेंस 2021 की धारा 12 और 13 तथा फाइनेंस एक्ट 2017 की धारा 184 व 186 (2) को चुनौती दी है.

संसद कह सकती है कि आपके निर्णय देश हित में नहीं

जानकारी के अनुसार सुनवाई के दौरान विवाद का एक बड़ा बिंदु यह था कि अगर फाइनेंस एक्ट की धारा 184 (11) को किसी मामले पर रिट्रोस्पेक्टिव रूप (बैक डेट से) लागू किया जाये तो क्या ऐसा करना सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का उल्लंघन होगा? इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने केंद्र सरकार से कहा  कि अगर आप कानून पास कर रहे हैं तो उससे क्या इस अदालत के निर्णय अमान्य नहीं हो जाते? इस पर एटॉर्नी जनरल ने कहा,  हुजूर मुझे आपको यह बताते हुए खेद हो रहा है लेकिन आप चाहे जितने आदेश पास कर लें, लेकिन संसद कह सकती है कि आपके निर्णय देश हित में नहीं और वह तदनुसार कानून बना सकती है.

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 हर शाखा संविधान की व्याख्या करने का काम कर रही है

इस पर जस्टिस रवीन्द्र भट्ट का कहना था कि इसके बावजूद संसद यह नहीं तय कर सकती कि अदालत द्वारा पास किया गया किस आदेश को लागू करना है और किसे नहीं. कहा कि अगर आप यह कह रहे हैं कि हम किसी कानून को रद्द नहीं कर सकते, तब तो यह मारबरी से पहले वाले काल में जाना हो जायेगा. हम कभी किसी कानून को सीमित कर देते हैं, या उसे सही ठहराते हैं या फिर उसे रद्द ही कर देते हैं. जस्टिस ने कहा कि  हर शाखा संविधान की व्याख्या करने का काम कर रही है.  

मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा होगा तो अदालत चुपचाप नहीं देखती रह सकती

अगर अदालत कहती है कि कोई कानून संविधान सम्मत नहीं है तो फिर वह संविधान सम्मत नहीं है. जारी बहस के बीच जस्टिस एल नागेश्वर राव ने भी अपने साथियों की तरह  ही चिंताएं जताईं और कहा कि अगर केंद्र सरकार कोई मुकदमा हारती है तो वह कानून पास करने का विषय नहीं हो सकता. जान लें कि यह लगातार दूसरा दिन है जब केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट आमने-सामने खड़े हैं.  

 इससे पहले कल कोविड वैक्सीन मामले की सुओ मोटो सुनवाई करते हुए केंद्र पर एक गंभीर टिप्पणी की थी कि अगर मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा होगा तो अदालत चुपचाप नहीं देखती रह सकती.  संविधान में ऐसा सोचा ही नहीं गया. सुप्रीम कोर्ट का यह बयान केंद्र सरकार के उस बयान से जोड़ कर देखा जा रहा है जब कुछ दिन पहले उसने कहा था कि न्यायपालिका को खुद को अधिशासी (एक्जीक्यूटिव) निर्णयों से दूर रहना चाहिए.

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