अगर कोई सरकारी कर्मचारी दोषी ठहराया जाता है तो वह जीवन भर के लिए सेवा से बाहर हो जाता है, फिर दोषी व्यक्ति संसद में कैसे लौट सकता है? NewDelhi : केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर उस याचिका का विरोध किये जाने की खबर है, जिसमें दोषी सांसदों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गयी है. केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि सांसदों की अयोग्यता पर फैसला करने का अधिकार पूरी तरह से संसद के पास है. इसकी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती.
संसद ने स्थितियों को ध्यान में रखकर व्यवस्था तय की है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों केंद्र सरकार से जवाब तलब किया था कि क्या दोषी सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर हमेशा के लिए प्रतिबंध लगना चाहिए. इसके जवाब में केंद्र सरकार ने SC को जवाब दिया कि आपराधिक मामले में दोषी राजनेताओं के सजा काटने के बाद उन्हें आजीवन चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता. हलफनामे में कहा गया है कि संसद ने स्थितियों को ध्यान में रखकर व्यवस्था तय की है. सदन से किसी को अयोग्य करार देने की स्थितियां भी स्पष्ट हैं. चिकाकर्ता द्वारा दाखिल की गयी याचिका में विभिन्न पहलुओं को अस्पष्ट तौर पर पेश किया गया है. जान लें कि केंद्र सरकार ने 2016 में दाखिल याचिका को खारिज किये जाने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की है.
अश्विनी उपाध्याय ने 2016 में याचिका दायर की थी
कुछ साल पीछे जायें तो वकील अश्विनी उपाध्याय ने 2016 में जनहित याचिका दायर की थी. याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गयी है. बता दें कि मौजूदा कानून के तहत आपराधिक मामलों में 2 साल या उससे अधिक की सजा होने पर सजा की अवधि पूरी होने के 6 साल बाद तक चुनाव लड़ने पर रोक है. अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने सहित अलग-अलग अदालतों में उनके खिलाफ लंबित मुकदमे तेजी से निपटाने की मांग की थी
एमिकस क्यूरी ने सलाह दी थी कि सजायाफ्ता नेताओं को जीवन भर चुनाव नहीं लड़ने देना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में इस संबंध में सरकार और चुनाव आयोग से जवाब तलब करते हुए कहा था कि एक सरकारी कर्मचारी रेप या हत्या के मामले में दोषी करार दिया जाता है तो उसकी नौकरी चली जाती है. उसे नौकरी वापस नही मिलती है, लेकिन एमपी/एमएलए को दोषी करार दिया जाता है तो चुनाव लड़ने पर 6 साल के लिए प्रतिबंध लगाया जाता है. उसके बाद दोबारा चुनाव लड़ कर सांसद या विधायक बन सकता है, मंत्री बन सकता है. साथ ही कोर्ट द्वारा नियुक्त एमिकस क्यूरी वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने सलाह दी थी कि सजायाफ्ता नेताओं को जीवन भर चुनाव नहीं लड़ने देना चाहिए. याचिका में कहा गया है कि आरपीए की धारा 8 के तहत 2 साल या उससे अधिक की सजा पाने वाले नेता को गलत रियायत दी गयी है.
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