मजदूरों को होने वाले आय की वजह से स्थानीय बाजार चलते हैं, उनका क्या होगा. लोगों के सामने भूखमरी की समस्या पैदा होने लगेगी. शहर व गांवों से पलायन शुरु होगा. जब पैसा खर्च करने वाले नहीं होंगे तो सारंडा के किसानों व ग्रामीणों का कृषि व वनोत्पाद को हाट-बाजार में कौन खरीदेगा. सारंडा के मरीजों का मुफ्त चिकित्सा सुविधा सेल की किरीबुरु-मेघाहातुबुरु, गुआ, चिडि़या खदानें उपलब्ध कराती है. जब खादान बंद हो जायेगा, तब लोगों का इलाज कहां होगा.इन सबके बीच असल सवाल सेल की किरीबुरु-मेघाहातुबुरु खदान में काम करने वाले करीब दो हजार ठेका मजदूरों की जिंदगी का है. वहां चिड़ियां खादाना में 400-500 ठेका मजदूर काम करते हैं. सभी ठेका मजदूर सारंडा जंगल के गांवों के ही हैं. अगर यह खदान बंद हुई तो इन मजदूरों व उनके परिवार के सदस्यों का क्या होगा.
पूरे जंगल में एक साथ माइनिंग संभव नहीं
वन्यप्राणियों के विशेषज्ञ डा0 राकेश कुमार सिंह (दिल्ली) से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि चिडि़या खदान का विस्तारीकरण योजना फिलहाल असंभव है. चिडिया खदान में एक छोटा सा ब्लॉक में प्रारंभ खनन कार्य मैनुअल करने की अनुमति मिली थी. जहां अभी भी छोटे स्तर पर कार्य चल रहा है. उन्होंने कहा कि चिडि़या खदान में बडे़ पैमाने पर खनन प्रारंभ नहीं हो सकता है. क्योंकि चिडिया खदान का हिस्सा वन्यप्राणियों का हॉट स्पॉट क्षेत्र में है. चिडि़या खदान की पहाड़ियों को तोड़ना मतलब सारंडा को खत्म करने जैसा होगा. उन्होंने कहा कि सारंडा के करमपदा व घाटकुडी जोन में अभी भी बडे़ पैमाने पर लौह अयस्क भरा पडा है. पहले उस अयस्क को खनन कर खत्म करने के बाद हीं दूसरे तरफ बढ़ने का प्रयास कर सकते हैं. खदान प्रबंधन जंगल के हर हिस्से में लौह अयस्क का ब्लॉक का लीज लेना चाहती है जो कहीं से भी उचित नहीं है. जंगल के सभी क्षेत्रों में एक साथ खनन होने लगेंगे तो सारंडा जैसे जंगल का क्या हाल होगा, जंगल का विनाश के साथ-साथ प्रदूषण व पर्यावरण का स्थिति कैसा होगा, इसकी कल्पना नहीं किया जा सकता है.हक के लिए लड़ेंगे मजदूर संगठन
हमने मजदूरों के संगठनों से बात की. झारखंड मजदूर संघर्ष संघ के महासचिव अफताब आलम एवं एटक, मेघाहातुबुरु के सचिव गुंजन कुमार ने कहा कि मेघाहातुबुरु खदान की स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है. इसके लिये झारखंड व केन्द्र सरकार जिम्मेदार है. उन्होंने कहा कि सेल को खत्म कर प्राईवेट को देने की गहरी साजिश चल रही है. हमारे सांसद व विधायक इस मामले में गंभीर नहीं हैं. तमाम जनप्रतिनिधिओं व सारंडा के ग्रामीणों को संयुक्त रुप से आगे आकर सेल की तमाम खदानों का लीज संबंधित मामले का समाधान हेतु लड़ाई लड़ने की जरूरत है. ऐसे लोग सिर्फ खदान में नौकरी की मांग के लिए लड़ाई लड़ते हैं. लेकिन खदान बंद होने के कगार पर है तो उसके लिये लड़ना होगा.
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