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चाईबासा : कुड़मी की आदिवासी मांग के विरोध में विशाल रैली निकाली गई

Chaibasa : कुड़मी/कुर्मी महतो को आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग के विरोध में शुक्रवार को जगन्नाथपुर अनुमंडल मुख्यालय के अनुमंडल क्षेत्र के तमाम प्रखंड गांव के आदिवासी समाज के लोगों द्बारा हजारों की संख्या में विशाल रैली प्रदर्शन किया गया. यह रैली जगन्नाथपुर के डिग्री कॉलेज से अनुमंडल कार्यालय के लिए रैली निकाली गई.

 

इस मौके पर अनुमंडल पदाधिकारी महेंद्र छोटन उरांव ने खुद अनुमंडल कार्यालय से निकलकर अनुमंडल गेट के सामने आकर ज्ञापन लिया. इस मौके पर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी राफेल मुर्मु भी मौजूद थे.

 

ज्ञापन में कहा गया है कि झारखंड प्रदेश में निवासरत कुड़मी महतो जाति को एसटी सूची में शामिल न किया जाए. आदिवासी तो जन्म से होता है बनाया नहीं जाता है. 1913 ईस्वी में छोटानागपुर के कुड़मी महतो जाति को एबोर्जिनल ट्राईबल की सूची में शामिल था और 1929 में मुजफ्फरपुर में संपन्न अखिल भारतीय कुड़मी क्षेत्रीय महासभा में कुड़मी जनप्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर कर अपने को क्षेत्रीय घोषित किया है.

 

सन् 1985 में राष्ट्रपति भारत सरकार द्वारा कुड़मी महतो जाति को पिछड़ा जाति का दर्जा देकर एसटी की सूची से हटा दिया गया है. कुड़मी की भाषा कुरमाली है जो बंगाली से मिलता जुलता है. यह आर्य की तरह आचरण करते हैं और हिंदू धर्म पर आस्था रखते हैं.

 

सामाजिक आर्थिक शैक्षणिक  और राजनीतिक दृष्टिकोण से आदिवासी की अपेक्षाकृत काफी मजबूत है. आदिवासी के साथ छुआछूत जैसे सामाजिक कलंक वातावरण भी विद्यमान है. आदिवासी परंपरा से बिल्कुल बेमेल जाति को एसटी सूची में शामिल न किया जाए.

 

साथ ही कहा गया है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 को जम्मू कश्मीर में लागू 370 (35 ए)के तक में 368 पद्धत प्रावधान के तहत संशोधन कर आदिवासी बनने वाले कानून को हटाया जाए. 

 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 एक्स्ट्रा कानून या जन विरोधी नीति है. इस कानून के रहने से खतरा नहीं है बल्कि लोकतंत्र पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा. राष्ट्रपति महोदय से प्रार्थना किया गया है कि तत्काल प्रभाव से इस कानून को संवेदनशीलता के साथ अध्ययन कर हटाया जाए.

 

इस मौके पर संयोजक लक्ष्मीनारायण गगराई ने कहा है कि कुड़मी जाति के लोग एसटी बनने के लिए राज्य और केंद्र सरकार पर दवाब डाल रहे है कुड़मी लोगों का एसटी बनने का एक बहाना है. रिजर्वेशन पर इसका निशाना है.

 

क्योंकि यह झारखंड में चाहे भारत देश में दिखेगा लोकसभा में 47 सांसद आरक्षित सीट है और झारखंड में 81 विधानसभा में 28 आदिवासी आरक्षित घोषित है और 24 दिसंबर 1996 में पेसा एक्ट दिलीप सिंह भुईया ने केंद्र में लाया. 

 

इस दिन उन्होंने पारित किया इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि झारखंड का 12 जिला 113 प्रखंड 1766 का मुखिया जो है आदिवासी बनेगा. प्रखंड प्रमुख भी आदिवासी बनेगा जिला परिषद, चेयरमैन भी आदिवासी बनेगा.

 

यह लोग जो है एसटी बन कर आदिवासियों के अधिकार को लूटने के लिए कुड़मी जाति आदिवासी बनना चाहते है. इसी के विरोध में लक्ष्मी नारायण गगराई ने आगे की चेतावनी देते हुए कहा कि यह लोग कल को रेल व सड़क को रोकते है. तो अब आदिवासी समाज भी चुप नहीं रहेगा. 

 

अध्यक्ष विपिन हेब्रम ने कहा कि कुड़मी समाज को आदिवासी सूची में दर्जा नहीं होने देंगे. यही कुड़मी जाति के लोग आदिवासी जाति से दूरी बनाकर रहते थे. आदिवासी समाज को बुरा भला कहते थे आज वह किस कारण से आदिवासी समाज में आना चाहते है.

 

इसका साफ-साफ एक ही मतलब है कि यह लोग आरक्षण के लिए आना चाहते है जो आदिवासी समाज यह होने नहीं देगा. वह लोग रेल चक्का जाम किए हैं हम लोग भी चुप नहीं रहेंगे. हम लोग रेल नहीं पूरे झारखंड को रोक देंगे.

 

मौके पर मुख्य रूप से देवेंद्र नाथ चम्पिया, पूर्व विधायक मंगल सिंह बोबोंगा, लक्ष्मी नारायण गागराई , अध्यक्ष, बिपिन हेम्ब्रम, अध्यक्ष, निर्मल सिंकु, मंजीत कोड़ा, समियल लागुरी वहीं सलाहकार मंडली में सोमा कोड़ा, सोमनाथ सिंकु, सुरेंद्र सिंकु, वीरेंद्र केराई और राजू लागुरी विरेंद्र केराई,लक्ष्मीनारायण लागुरी, शंकर चतोम्बा,प्रमिला ,खुश्बु सिंकु,प्रधान लागुरी, गणेश कोड़ा, कांति, सुशिल, गलाय चतोम्बा सहित काफी संख्या में आदिवासी भाई उपस्थित थे.

 

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