Chaibasa (Sukesh kumar) : चितअउ परब कुड़मि समाज का एक पारंपरिक नेग दस्तुर का पर्व है. यह पर्व सावन महिना के अमावास्या को मनाया जाता है. इस पर्व में लोग मांस-भात, भुजा (मुढ़ी) पिठा आदि विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थ बनाकर बड़े चाव से मिल बांटकर खाते है. यह बातें कुड़माली भाषा के साहित्यकार शंकर लाल महतो ने कहीं. उन्होंने कहा कि इस पर्व में गेंड़ही (घोंघा) पिठा खाने का विशेष प्रचलन है. उस दिन शरीर में नीम, करंज, तिसी, तिल आदि का तेल, विशेष रूप से लगाया जाता है. रात में बच्चों तेल लगा कर सुलाया जाता जाता है. गेंडहि (घोंघा) का पानी को आंख में डालते हैं, जिससे आंख साफ हो जाता है. रातभर ढोल मांदड़ के साथ रोपा गीत गाते और नाचते है. इस मौसम में कृषक, दिनभर खेतों के काम में करते है, इससे बरसाती बीमारियां सर्दी, खांसी, जुकाम, बुखार, चेचक, हैजा, खाज-खुजली और आंखों का रोग, तेजी से फैलता है. इन्हीं बीमारियों से बचने के लिए इन तेलों और गेंडही (घोंघा) पिठा का प्रयोग करते है.
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लोक कथा प्रचलित
इस पर्व के पीछे एक लोक कथा प्रचलित है. पुराने जमाने में, गांव से सटे एक घनघोर जंगल में, भुजबे नाम की एक राक्षसी रहती थी. उसका जन्म, पृथ्वी चांद और सूरज के एक समिश्रित तेजोमय आसुरी शक्ति से हुआ था. उसकी आसुरी शक्ति अमावास्या और पूर्णिमा के दिन दो गुना हो जाता था. खाने-पीने को लेकर कभी-कभी वह गांव की ओर निकल जाती थी. लेकिन लोगों की कद काठी, बलिष्ठ शरीर और चतुराई को भांप कर उन पर आक्रमण करने से डरती थी. लालच के मारे अवसर की ताक में सचेष्ठ रहती थी. संयोग से एक बार सावन की अमावास्या पर उसे यह अवसर मिल गया. उसने अपने अनुचरों को मनुष्यों पर आक्रमण करने का निर्देश दे दिया.
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औषधीय सामग्रियों का प्रयोग कर पर्व मनाते है ग्रामीण
राक्षसी मनुष्य को खाने लगी. लोग त्राहिमाम करने लगे. इससे ग्राम देवता क्रोधित हो उठे. उन्होनें उस राक्षसी और उसके अनुचरों को मार-काट कर भगा दिया. ग्राम देवता ने असुरी शक्ति से बचने के लिए प्रत्येक अमावास्या और पूर्णिमा के दिन, घरों में दीया बाती, धूप-धूना जलाने, करंज, सरसों, तिसी, तिल आदि तेल को शरीर में लगाने और गेंडहि (घोंघा) का मांस खाना के लिए लोगों को बोला. ये सारी प्राकृतिक सम्पदायें, आसुरी शक्ति को नष्ट करने में सक्षम है. इसके बाद कुड़मी कृषक शरीर को निरोगी और अपनी रक्षा के लिए विशेषकर सावन के अमावास्या पर उपरोक्त औषधीय सामग्रियों का प्रयोग कर पर्व मनाते हैं, जिसे चितअउ परब कहा जाता है.
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