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सिंहभूम सीट पर झामुमो उतार सकता सुखराम उरांव को, भाजपा में जेबी तुबिद का पलड़ा भारी
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alt="" width="600" height="400" /> सुखराम उरांव.[/caption]
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सिंहभूम सीट पर यदि गठबंधन कांग्रेस पार्टी व झारखंड मुक्ति मोर्चा में टूट जाती है तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी चक्रधरपुर के विधायक सुखराम उरांव हो सकते हैं. जबकि भारतीय जनता पार्टी में जेबी तुबिद क पलड़ा अधिक भारी लग रहा है. हालांकि अभी तक आधिकारिक रूप से इसकी घोषणा नहीं हुई है. लेकिन सूत्रों के अनुसार अभी से ही तैयारी में जुट गए हैं. इधर, गीता कोड़ा अपनी सीट पर वर्चस्व बनाते हुए कांग्रेस की ही उम्मीदवार बनी रहेंगी.
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alt="" width="600" height="400" /> जेबी तुबिद.[/caption]
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आदिवासी व मूलवासी बहुल क्षेत्र में सिंहभूम सीट
कोल्हान का सिंहभूम सीट आदिवासी व मूलवासी बहुल क्षेत्र में है. सबसे अधिक आदिवासी व मूलवासी वोटर की संख्या है. आदिवासी एक पक्ष में वोट नहीं देने के कारण उनका वोट बंट जाता है. पश्चिमी सिंहभूम में सबसे अधिक झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक निर्वाचित हैं. सिंहभूम सीट की बात करें तो झामुमो की पकड़ अधिक है.
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वर्ष विजेता दल
1957 शम्भू चरण झारखंड पार्टी
1962 हरिचरण सोय झारखंड पार्टी
1967 कोलाई बिरुआ झारखंड पार्टी
1971 मोरन सिंह पूर्ति झारखंड पार्टी
1977 बागुन सुम्ब्रुई झारखंड पार्टी
1980 बागुन सुबरुई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1984 बागुन सुबरुई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1989 बागुन सुबरुई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1991 कृष्णा मरांडी झारखंड मुक्ति मोर्चा
1996 चित्रसेन सिंकु भारतीय जनता पार्टी
1998 विजय सिंह सोय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1999 लक्ष्मण गिलुवा भारतीय जनता पार्टी
2004 बागुन सुम्बरुई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
2009 मधु कोड़ा स्वतंत्र राजनीतिज्ञ
2014 लक्ष्मण गिलुवा भारतीय जनता पार्टी
2019 गीता कोड़ा कांग्रेस
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संसदीय क्षेत्र में झारखंड नामधारी पार्टी का रहा बोलबाला
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alt="" width="600" height="400" /> चित्रसेन सिंकू.[/caption]
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देश की आजादी के बाद 80 के दशक तक भी इस संसदीय क्षेत्र में झारखंड नामधारी क्षेत्रीय पार्टी का खासा बोलबाला रहा है. इसके पीछे एक ही कारण रहा है अलग झारखंड राज्य की मांग, जबकि कांग्रेस की स्वतंत्रता आंदोलन में भी इस क्षेत्र के आदिवासी मूलवासी कभी पीछे नहीं रहे. खुलकर देश की आजादी की लड़ाई लड़ी. इसके कारण इस क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों को सेंट्रल जेल की सजा भी काटनी पड़ी. सर्वविदित है कांग्रेस के नेतृत्व में स्वतंत्रता की लड़ाई होने के कारण कांग्रेस को उसका देशव्यापी लाभ मिला. जब कांग्रेस ने चुनाव लडने वाली पार्टी का रूप लिया. यही वजह है देश के लगभग सभी राज्यों में कांग्रेस का एकछत्र राज रहा है, लेकिन सिंहभूम संसदीय क्षेत्र इसका अपवाद रहा है. यहां मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा द्वारा बनाया गया झारखंड पार्टी का बोल बाला रहा है. तब तक जब तक वे कांग्रेस में झारखंड पार्टी का विलय नहीं किए थे. हालांकि मरांग गोमके द्वारा झारखंड पार्टी को कांग्रेस में विलय करने के बाद फिर बागुन सुम्बरूई ने झारखंड पार्टी को संभाला और सुचारू रूप से चलाया. झारखंड पार्टी का प्रभाव इस संसदीय क्षेत्र में जारी रहा. झारखंड पार्टी से ही इस संसदीय क्षेत्र से सांसद होते थे.
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में 13.9% कम हुई गरीबी
में 13.9% कम हुई गरीबी
1977 की इमरजेंसी में भी यहां से झारखंड पार्टी ही जीती
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alt="" width="600" height="400" /> बागुन सुम्बरुई.[/caption]
alt="" width="600" height="400" /> बागुन सुम्बरुई.[/caption]
यहां तक कि 1977 की इमरजेंसी में भी यहां से झारखंड पार्टी ही जीती थी. बागुन सुम्बरूई 1980 में झारखंड पार्टी छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए. तब सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी का खाता खुला. यह 80 की दशक की बात है, तब भाजपा का जन्म नहीं हुआ था. हालांकि एक बार इस संसदीय क्षेत्र से जनसंघ जीता था. वो झारखंड पार्टी के समर्थन से 80 के दशक के बाद बागुन सुम्बरूई कांग्रेस से लगातार सांसद निर्वाचित होते रहे. जबकि 1991 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के कृष्णा मार्डी सांसद चुने गए थे. फिर 1996 में भाजपा का खाता खुला और चित्रसेन सिंकू सांसद चुने गए. फिर कांग्रेस के विजय सिंह सोय 1998 में जीते. उसके बाद फिर भाजपा के लक्ष्मण गिलुवा सांसद चुने गए. आगे चलकर 2009 में निर्दलीय उम्मीदवार मधु कोड़ा सांसद निर्वाचित हुए. 2014 में भाजपा के लक्ष्मण गिलुवा सांसद बने, जबकि 2019 में गीता कोड़ा कांग्रेस से जीतने में सफल रही. वो भी झामुमो के समर्थन से. इस प्रकार अगर देखा जाए तो सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में क्षेत्रीय पार्टी का अच्छा खासा प्रभाव तो है. हालांकि झारखंड तो 22 वर्ष पहले ही राज्य के रूप में अस्तित्व में आई. लेकिन इस क्षेत्र की ग्रामीण जनता झारखंड शब्द से विशेष जुड़ाव रखती है. ग्रामीणों को लगता है झारखंड उनके अस्तित्व और संस्कृति से जुड़ा है. यही वजह है इस क्षेत्र में राष्ट्रीय पार्टी से अधिक प्रभाव क्षेत्रीय पार्टी का है. यह बिल्कुल ही जनमानस में बसा हुआ है.
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