Ranchi : आज चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन है. इस दिन माता दुर्गा के दूसरे स्वरूप, ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत साधारण और भव्य है. वे अन्य देवियों की तुलना में अधिक सौम्य और तुरंत वरदान देने वाली हैं.
इस दिन माता पार्वती के अविवाहित रूप की पूजा की जाती है और विशेष रूप से उन कन्याओं का सम्मान किया जाता है, जिनकी शादी तय हो चुकी है, लेकिन अभी हुई नहीं है.
मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल का फूल बहुत प्रिय है. इन फूलों की माला बनाकर उन्हें अर्पित करें. माता को चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग भी अति प्रिय है. माता को उनकी प्रिय चीज चढ़ाने से वो प्रसन्न होती है और तुरंत वरदान देती है.
माता दुर्गा के दूसरे स्वरूप की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और भक्त ऐश्वर्य का सुख भोगते हैं. इनकी पूजा करने से तप, त्याग, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है.
‘ब्रह्म’ का अर्थ होता है ‘तपस्या’ और ‘चारिणी’ का अर्थ होता है ‘आचरण’ करने वाली. इस तरह ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप का आचरण करने वाली होता है. माता ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं.
माता ब्रह्मचारिणी सफेद वस्त्रों में लिपटी हुई कन्या के रूप में प्रतिष्ठित हैं. उनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल है. उनका स्वरूप अत्यंत साधारण और भव्य है, और वे अन्य देवियों की तुलना में अधिक सौम्य और तुरंत वरदान देने वाली हैं.
शास्त्रों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने उनके पूर्वजन्म में हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था. उन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी. यही कारण है कि इनका नाम ब्रह्मचारिणी रखा गया है.
मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल खाया. इतना ही नहीं मां ने सौ सालों तक जमीन पर जीवन बिताया था. उनकी कठिन तपस्या के बाद भी जब महादेव प्रसन्न नहीं हुए तो माता ने बेल पत्र खाना भी छोड़ दिया. उन्होंने कई हजार सालों तक निर्जला और निराहार रहकर तपस्या की.
जब मां ने बेल पत्र खाना भी छोड़ दिये तो इनका नाम अपर्णा पड़ गया. कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीर्ण हो गया.
देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताकर सराहना की. उन्होंने कहा कि हे देवी आपकी तपस्या जरूर सफल होगी. मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि की प्राप्ति होती है. मां की आराधना करने वाले व्यक्ति का कठिन संघर्षों के समय में भी मन विचलित नहीं होता है.
पूजा की विधि :
- सबसे पहले मां ब्रह्मचारिणी को फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पित करें.
- मां को दूध, दही, घृत, मधु और शर्करा से स्नान कराये.
- फिर भगवान को पिस्ते की मिठाई का भोग लगाये.
- इसके बाद माता को पान, सुपारी और लौंग चढ़ाये.
- फिर गाय के गोबर के उपले जलाये और उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा अर्पित करें.
- हवन करते समय “ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्यै नम:” मंत्र का जाप करें.