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चक्रधरपुर : आदिवासी मित्र मंडल में धूमधाम से मनाया गया बा पोरोब

Chakradharpur : चक्रधरपुर के आदिवासी मित्र मंडल, पोटका स्थित देशाउली स्थल में दियुरी बहादुर सुरीन, चम्पाई बोयपाई, सुखलाल बोदरा, मजनू बोदरा द्वारा पूजा अर्चना के बाद धूमधाम से बा पोरोब मनाया गया. इस अवसर पर कानों और जूड़ा में साल के फूलों के बालियों से सजा कर आकड़ा में दमा दुमांग के थाप और बा पोरोब लोकगीत के साथ सामूहिक नृत्य किया गया. बा पोरोब हो आदिवासियों का दूसरा महत्वपूर्ण त्योहार है. बा का अर्थ फूल अर्थात फूलो का त्योहार. कार्यक्रम में हो समाज के बुद्धिजीवी, गणमान्य व्यक्तियों के अलावा चक्रधरपुर नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष केडी साह भी शामिल हुए. इसे भी पढ़ें : पलामू">https://lagatar.in/palamu-yadav-mahasabha-organized-holi-milan-ceremony-in-hariharganj-appealed-to-celebrate-holi-in-a-cordial-environment/">पलामू

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चार दिन का होता है बा पोरोब

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alt="" width="350" height="250" /> आदिवासी हो समाज में बात पोरोब मुख्यत: चार दिन तक मनाया जाता है. हवा दिन बा पोरोब कटब है, जिसमें बा पोरोब डियंग उपवास में बनाया जाता है. दूसरा दिन बा गुरी होता है, जिसमें घर की गोबर से साफ सफाई की जाती है. तीसरा दिन बा पोरोब होता है, जिसमें देशाउली और हाम हो दुम की पूजा की जाती है. पूजा का अंतिम दिन बा बासी होता है, जिसमें साल के फूलों को चिन्हित गांव के किनारे रखा जाता है और इसे गिडी बाहा कहा जाता है. इसे भी पढ़ें : जमशेदपुर:">https://lagatar.in/jamshedpur-ssp-releases-new-song-color-with-care-by-kumar-nishant-on-holi/">जमशेदपुर:

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ऐसी है पूजा की महत्ता

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alt="" width="350" height="350" /> गांव के दियुरी देशाउली स्थल में साल के फूलों से भरी डाली रखकर गांव के रखवाला देवता देशाउली एवं पालन पोषण देवी जाएरा एरा की सूका संडी(मुर्गा) और ककार कलुटी (मुर्गी) की बलि देकर एवं डियंग रासी (हड़िया)आर्पित कर पूजा आर्चना करते हैं. इस पोरोब में महत्वपूर्ण महुआ फूल और आम फल की पूजा की जाती है. मसूर दाल और ईचा हाकु (चिंगड़ी मछली) की पूजा की जाती है. हर घर के आदिंग (पूजा घर) में साल का फूल रख कर आम, महुआ फूल, मसूर दाल, ईचा हाकु एवं चावल की पूजा की जाती है. फिर गांव के आकडा में साल की फूलों की डाली बीच में गाड़ा जाता है और रात भर जादुर होता है. महिलाएं गीत गाते-गाते नाचती हैं और पुरूष भी गीत गाते हैं, जिसे जादुर कहा जाता है. नवयुवक और युवतियों आपने खुशी, प्रेम भाव, दुख, सुरक्षा और विपत्ति आदि गीत के माध्यम से प्रकट करते है. आदिवासी समाज इस पर्व से नए पत्तों, नए आम फल और महुआ फूल के प्रयोग की शुरुआत करते हैं. [wpse_comments_template]

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