आदिवासी की सरकार बनी लेकिन आदिवासियों को ही जल, जंगल से किया दूर
[caption id="attachment_168074" align="aligncenter" width="300"]alt="" width="300" height="184" /> ग्रामीणों की समस्या सुनते पूर्व विधायक शशि भूषण सामड.[/caption] पूर्व विधायक सामड ने कहा कि दो वर्षों से लॉक डाउन होने के कारण लोगों को रोजी रोजगार नहीं मिल रहा है. परिवार चलाने के लिए आदिवासी गरीब महिलाएं जंगल से पत्ता, दातून लाकर बाजार में बेचती हैं और अपना परिवार चलाती हैं, लेकिन वन विभाग भले ग्रामीणों को लकड़ी तस्करी का आरोप लगाते हुए परेशान कर रही है. उन्होंने कहा कि जल, जंगल, जमीन के लिए आदिवासी की सरकार बनी, परंतु आदिवासियों को ही सरकार ने जल, जंगल और जमीन से दूर कर दिया है. इस कारण आज गरीब आदिवासियों के समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है. उन्होंने कहा कि जंगल में बड़े-बड़े लकड़ी माफियाओं का राज बढ़ रहा है, परंतु माफियाओं को पकड़ने के बजाए वन विभाग गरीब आदिवासी महिलाओं को परेशान कर रही है. यह अन्याय है. इसके विरोध में ग्रामीणों के साथ मिलकर आंदोलन करेंगे. प्रत्येक गांव में जोमनामा (नुआ खाई) का त्योहार मनाया जा रहा है.
गांव की 33 महिलाएं गई थीं जंगल
[caption id="attachment_168076" align="aligncenter" width="300"]alt="" width="300" height="197" /> जंगल से खदेड़े जाने की जानकारी देती महिलाएं.[/caption] जोमनामा (नुआ खाई) त्योहार में पत्ता, दातून और लकड़ी की पूजा होती है, जिसे लाने के लिए 33 महिलाएं एकजुट होकर जंगल गई थीं. इसमें फूलमती नायक, पैदाश्वरी नायक, मुगडी कालिंदी, बसंती कोई, सपनी बोदरा, शुरू सुंडी, रायमुनि गागराई, शुरू गागराई, सोमवारी बोदरा, शिवानी बोदरा, शीला बोदरा, राई कुई, लक्ष्मी बोदरा, मंजो बोदरा, बिरंग बोदरा, मंजारी बोदरा, कैरी पूर्ति, यमुना कुई बोदरा, सावित्री बोदरा, नानीका बोदरा, फूलमती बोदरा, बसंती सुंडी, हेमती बोदरा, जानो कुई, शुरू कोई, रादाई पूर्ति, सपानी बोईपाई, मेचो पूर्ति, रानी सुंडी, लक्ष्मी सुंडी, सुरजो टूटी, सुशील पूर्ति, नामेला बोदरा शामिल हैं.
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