Chandil (Dilip Kumar) : चांडिल प्रखंड के डोबो स्थित जोड़ा पुल के नामकरण को लेकर उत्पन्न विवाद को खत्म करने के लिए बातचीत की जाएगी. दोनों पक्ष चाहते हैं कि उच्चाधिकारी की मौजूदगी में बातचीत कर मामले का निपटारा किया जाए. वैसे बुधवार को विवाद उत्पन्न होने के बाद रात भर दोनों पक्ष के लोग पुल के समीप आमने-सामने डटे रहे. उनके साथ सुरक्षा की दृष्टिकोण से पुलिस को भी रातभर पुल के पास तैनात रहना पड़ा. बीच-बीच में नारेबाजी होती रही. दोनों पक्ष मामले पर बगैर विवाद का फैसला चाहते हैं. मामले पर गुरुवार को दोनों पक्षों के बीच वार्ता होगी. दोनों पक्ष चाहते हैं कि मामले पर प्रशासन हस्तक्षेप करे और दोनों पक्षों को बैठाकर बातचीत करे.
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गुरुवार को होगी वार्ता
पुल के नामकरण को लेकर उत्पन्न विवाद के निष्पादन के लिए गुरुवार को वार्ता होगी. वार्ता में दोनों ओर से प्रबुद्ध लोग शामिल होंगे. वहीं प्रशासन चाहती है कि बगैर उनके हस्तक्षेप से सामाजिक स्तर पर मामले का निष्पादन हो जाए. लेकिन नामकरण के मामले में दोनों पक्ष अड़े हुए हैं. कुड़मी समाज के लोगों का कहना है कि मूर्ति लग गई है, अब नहीं हटेगी. वहीं आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि पुल का नामकरण धरती आबा बिरसा मुंडा के नाम पर किया गया था, जो नहीं बदलेगा. बुधवार शाम से शुरू हुआ आंदोलन अबतक जारी है. पुल के सामने सड़क के एक किनारे कुड़मी समाज और दूसरे किनारे आदिवासी समाज के लोग जमे हुए हैं.
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क्या है मामला
दरअसल, पांच अप्रैल को चुआड़ विद्रोह के महानायक शहीद रघुनाथ महतो का शहादत दिवस था. शहादत दिवस के उपलक्ष्य पर डोबो स्थित जोड़ा पुल के एक छोर पर कुड़मी समाज के कुछ लोगों ने शहीद रघुनाथ महतो की मूर्ति लगाई. बुधवार की सुबह मूर्ति पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया और पुल का नामकरण शहीद रघुनाथ महतो के नाम पर किया गया. इसकी जानकारी मिलते ही आदिवासी समाज के लोग आक्रोशित हो गए. बताया जाता है कि पहले पुल का नामकरण धरती आबा बिरसा मुंडा के नाम पर किया गया था. पुल के पास बिरसा मुंडा पुल का बोर्ड भी लगाया गया था. आरोप है कि कुड़मी समाज के कुछ लोगों ने बोर्ड को हटाकर शहीद रघुनाथ महतो की मूर्ति लगा दी. आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि रातों रात चोरी छिपे मूर्ति लगाना झारखंडियों का काम नहीं हो सकता है. शहीद की मूर्ति डंके की चोट पर स्थापित किया जाना चाहिए, जिसके दर्शन मात्र से लोगों के बीच स्फूर्ति का संचार हो सके. वहीं कुड़मी समाज के लोगों का कहना है कि पुल के आसपास कहीं किसी प्रकार का बोर्ड नहीं था. शहीद के नाम का बोर्ड क्षतिग्रस्त करना शहीद का अपमान करना है. आदिवासी समाज के लोगों को इसके लिए माफी मांगना होगा.
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