Chandil (Dilip Kumar) : झारखंड किसान परिषद ने रेलवे द्वारा बेघर किए गए रांची के आदिवासी-दलित परिवारों को तत्काल मूलभूत सुविधाओं के साथ वैकल्पिक जमीन व घर देने की मांग की है. इसके साथ ही इस हिंसा के एवज में उन्हें मुआवजा भी देने की मांग की है. परिषद के नेता अंबिका यादव ने कहा कि सभी परिवारों को ठंड से राहत पहुंचाने के लिए कंबल, गर्म कपड़े व सुविधाजनक टेंट आदि दिया जाए. उन्होंने ठंड में लोगों को बेघर करने के लिए जिम्मेवार पदाधिकारियों के विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाई करने की भी मांग की है.
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खुले आसमान के नीचे रह रहे बेघर किए लोग
ओवरब्रिज, रांची के नीचे बसी बस्ती (लोहरा कोचा) को रेलवे द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर 28 दिसम्बर को धराशायी किया गया, जिसके बाद वहां बसे लगभग 40 दलित-आदिवासी-पिछड़े परिवार बेघर हो गए. तबाही के एक सप्ताह बाद भी अधिकांश परिवार वहीं खुले आसमान के नीचे ठंड में रह रहे हैं. अंबिका यादव ने कहा कि एक ओर सर्वोच्च न्यायालय ने हल्द्वानी, उत्तराखंड में रेलवे द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर लोगों को बेघर करने पर रोक लगा दी, वहीं दूसरी ओर रांची में बेघर किए गए लोगों को रेलवे व प्रशासन द्वारा ठंड के हवाले कर छोड़ दिया गया है.
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खोखला साबित हो रहा प्रधानमंत्री का वादा
झारखंड किसान परिषद के नेता अंबिका यादव ने बताया कि लोहरा कोचा में लोग 50-60 साल से बसे हैं. कई परिवारों की तीन पीढ़ी यहीं बसी है. रोजगार और काम की तलाश में आए लोग रेलवे लाइन के किनारे थोड़ी सी जमीन पर बस गए. सोचने वाली बात है कि यहां लगभग सभी परिवारों के पास राशन कार्ड, आधार व वोटर कार्ड है, जिसपर इस बस्ती का ही पता चढ़ा हुआ है. लोगों के घर में बिजली का कनेक्शन भी था. यहां बसे अधिकांश लोग दैनिक मज़दूरी पर निर्भर हैं. जिस दिन से इनके घरों को तोड़ कर इन्हें बेघर किया गया, कोई मजदूरी करने भी नहीं गया हैं. इन परिवारों की स्थिति देख प्रधानमंत्री के 2022 तक सभी परिवारों को पक्का मकान मिलने का वादा खोखला साबित हो रहा है.
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