Chandil (Dilip Kumar) : शरद पूर्णिमा पर बुधवार की रात भक्तिभाव से कोजागरी लक्खी पूजा की गई. बंगाली समाज की मान्यता के अनुसार इस दिन मां लक्खी धरती पर विचरण करती हैं. दिवाली से पहले यही ऐसा दिन है, जब मां लक्खी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. माना जाता है कि रात को माता लक्खी धरती पर आती हैं. जो उनकी पूजा और उनके नाम का स्मरण करता है, उस पर मां लक्खी विशेष कृपा बरसाती हैं. इसलिए इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं. कोजागरी का मतलब है कि कौन जाग रहा है. चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में कोजागरी लक्खी पूजा पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है. दुर्गा पूजा आयोजन स्थलों के अलावा अन्य स्थानों में प्रतिमा स्थापित कर और मां लक्ष्मी की फोटो पर पूजा-अर्चना की जाती है. शारदीय नवरात्र के बाद आने वाले शरद पूर्णिमा के दिन मां कोजागरी लक्खी की पूजा की जाती है. कोजागरी पूर्णिमा की रात को दीपावली से भी अधिक खास माना जाता है, क्योंकि इस रात स्वयं मां लक्खी अपने भक्तों को संपत्ति देने के लिए आती हैं.
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धूमधाम से की जाती है पूजा
शरद पूर्णिमा के पर्व को कोजागरी पूर्णिमा, कमला पूर्णिमा, कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा आदि नाम से भी जाना जाता है. चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में बंगाली परंपरा चलने के कारण क्षेत्र के लोग शरद पूर्णिमा के दिन कोजागरी लक्खी की पूजा करते हैं. इस दिन दुर्गा पूजा किए गए सभी मंदिर व पूजा पंडालों में मां लक्खी की पूजा की जाती है. चांडिल, चौका, रघुनाथपुर, ईचागढ, तिरूलडीह समेत अन्य क्षेत्रों में लक्खी पूजा को लेकर लोगों में उत्साह देखा जा रहा है. सभी स्थानों में लक्खी पूजा को लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. सभी पूजा पंडालों व मंदिरों में मां लक्खी की प्रतिमा स्थापित की गई है. इसके अलावा श्रद्धालु अपने-अपने घरों में भी मां लक्खी की पूजा करते हैं. शरद पूर्णिमा पर दीपदान की परंपरा भी है. इस दिन श्रीकृष्ण ने गोपियों संग महारास रचाया था. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की चांदनी में विशेष औषधीय गुण होते हैं, जिनसे विभिन्न प्रकार के असाध्य रोगों का निवारण होता है. मान्यता है कि आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि पर आसमान से जमीन पर अमृत की वर्षा होती है.
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