Chandil (Dilip Kumar) : जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जयंती प्रतिवर्ष चैत्र मास के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है. पंचांग के अनुसार इस वर्ष त्रयोदशी तीन अप्रैल की सुबह 6:24 बजे से चार अप्रैल सुबह 8:05 बजे तक था. इस कारण जैन धर्माबलंबियों ने दोनों दिन भगवान महावीर स्वामी की जयंती मनाई. सत्य और अहिंसा के प्रतिक माने जाने वाले महावीर स्वामी ने ही अहिंसा परमो धर्म का संदेश दिया था. उनके अनुयायी प्रतिवर्ष उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रण लेकर उनकी जयंती मनाते हैं.
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मूर्ति का प्रक्षाल करने के बाद शुरू हुआ अनुष्ठान
महावीर जयंती के अवसर पर ईचागढ़ प्रखंड के देवलटांड स्थित प्राचीनकालीन जैन मंदिर में कई कार्यक्रम आयोजित किए गए. मंदिर जिसे ग्रामीण देवल कहते हैं, में भगवान आदिनाथ की प्रतिमा का प्रक्षाल करने के बाद अनुष्ठान शुरू किया गया. इसकी जानकारी देते हुए अजीत माझी ने बताया कि महावीर जयंती के अवसर पर मंदिर में अष्ट विधि पूजा के बाद णमोकार मंत्र का जाप किया गया. महावीर जयंती को लेकर मंदिर और आसपास के क्षेत्र को जैन घ्वजों से सजाया गया है. उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने जैन धर्म के पंचसील सिद्धांत और मंत्रों पर अधिक जोर दिया. वे सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य हैं.
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घंटाकर्ण महावीर मूलमंत्र अधिक प्रभावशाली
देवलटांड के भुवनेश्वर माझी ने बताया कि भगवान महावीर स्वामी पर आस्था रखने वालों के लिए महावीर जयंती का पर्व बहुत मायने रखता है. महावीर स्वामी का मानना था कि हमें दूसरों के प्रति वहीं विचार और व्यवहार करना चाहिए जो हम स्वयं के लिए पसंद करते हैं. जयंती पर भगवान की मूर्ति को विशेष रूप से स्नान कराया जाता है. उन्होंने बताया कि भगवान महावीर का घंटाकर्ण महावीर मूलमंत्र सबसे अधिक प्रभावशाली माना गया है.
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