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छत्तीसगढ़ सीएम ने शराब घोटाला नहीं, राशन घोटाले की CBI जांच की अनुशंसा की थी

Shakeel Akhter Ranchi: सीबीआई दिल्ली (CBI Delhi) ने भ्रष्टाचार के आरोप में छत्तीसगढ़ के पूर्व प्रमुख सचिव व पूर्व महाधिवक्ता सहित तीन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली है. सीबीआई ने यह कार्रवाई छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की अनुशंसा के आलोक में की है.  मुख्यमंत्री ने राशन घोटाले में सीबीआई जांच की अनुशंसा की थी. हालांकि पिछले हफ्ते रांची की मीडिया में शराब घोटाले की सीबीआई जांच की अनुशंसा करने की खबरें प्रकाशित की गई थी.  
दरअसल, छत्तीसगढ़ आर्थिक अपराध शाखा में झारखंड शराब घोटाले के एक मामला भी विचाराधीन है. क्योंकि छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में शामिल लोग ही झारखंड मे शराब व्यापार के सलाहकार थे.
जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की अनुशंसा पर सीबीआई दिल्ली ने प्राथमिकी दर्ज की है. इसमें आईएएस अधिकारी डॉक्टर आलोक शुक्ला, अनिल टुटेजा और पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा को नामजद अभियुक्त बनाया गया है.  सीबीआई ने जांच के लिए छत्तीसगढ़ आर्थिक अपराध शाखा में दर्ज प्राथमिकी (49/2024) को आधार बनाया है. आर्थिक अपराध शाखा में यह प्राथमिकी चार नवंबर 2024 को दर्ज की गयी थी. इसे इडी द्वारा पीएमएलए की धारा 66 (2) के तहत साझा की गयी सूचनाओं के आधार पर दर्ज की गयी थी. 
इडी ने वर्ष 2015 में दर्ज प्राथमिकी ((9/2015) को इसीआईआर (ECIR/RPSZO/01/2019) के रूप में दर्ज कर मामले की जांच की थी. इस दौरान मिले तथ्यों को राज्य सरकार के साथ साझा किया था. 
इडी द्वारा इसीआईआर में अभियुक्त बनाये गये अधिकारियों ने साजिश रच कर मामले को दबाने की कोशिश की. इस साजिश में राज्य सरकार के तत्कालीन महाधिवक्ता को भी शामिल कर लिया.  इसके बाद इडी ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. इसमें पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच की मांग की गयी थी. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अभय एस ओका और न्यायाधीश उज्जवल भुयान की पीठ ने आठ अप्रैल 2025 को इडी की याचिका निष्पादित कर दी. क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार ने मामले में सीबीआई जांच का आदेश देने पर सहमति दे दी थी. 
इसके बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने मामले में सीबीआई जांच की अनुशंसा कर दी. राशन घोटाले और शराब घोटाला दोनों ही मामलों में आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा का नाम होने की वजह से मीडिय़ा मे मुख्यमंत्री द्वारा शराब घोटाले की सीबीआई जांच की अनुशंसा की खबर फैली, जो सही नहीं थी.
इडी की जांच और सुप्रीम कोर्ट में पेश तथ्य
इडी ने राशन घोटाले की जांच के बाद छत्तीसगढ़ सरकार के साथ सूचनाओं को साझा किया था. इसमें कहा गया था कि घोटाले के समय आईएएस अधिकारी डॉक्टर आलोक शुक्ला नागरिक आपूर्ति निगम (नान) में अध्यक्ष और अनिल टूटेजा एमडी थे. शिव शंकर भट्ट मैनेजर थे. 
आम लोगों के लिए खाद्यान्न की खरीद में कमीशनखोरी हुई है. चार रूपये प्रति क्विंटल की दर से कमीशन वसूल कर अफसरों व अन्य के बीच बांटा जाता था.  जांच के दौरान मिले पेन ड्राईव में दर्ज ब्योरे में डॉक्टर आलोक शुक्ला, अनिल टूटेजा और शिव शंकर भट्ट द्वारा भी कमीशन लेने का उल्लेख और हिसाब लिखा है. 
जून 2014 से फरवरी 2015 तक की अवधि में डॉक्टर अनील शुक्ला ने 1.51 करोड़, अनिल टूटेजा ने 2.21 करोड़ और शिव शंकर भट्ट ने 1.62 करोड़ रुपये कमीशन के रूप में लिये.  मामले में अभियुक्त बनाये गये आइएएस अफसरों, सरकार द्वारा बनायी गयी एसआइटी के कुछ अधिकारियों और लॉ ऑफिसर एक दूसरे के संपर्क में है. अभियुक्तों द्वारा अग्रिम जमानत याचिका दाखिल करने के लिए तैयार किये ड्राफ्ट को एक दूसरे के बीच आदान प्रदान और आवश्यक संशोधन किया जा रहा है. 
छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश किया जाने वाला जवाब भी अभियुक्तों के साथ साझा किया जा रहा है. अभियुक्त बनाये गये आईएएस अधिकारियों को प्रशासनिक स्तर से मदद की जा रही है. इसलिए न्यायालय इस मामले की सीबीआई का आदेश दे.
क्या है छत्तीसगढ़ का राशन घोटाला
छत्तीसगढ़ में जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई थी. अफसरों ने कमीशन लेकर रद्दी किस्म के चावल, गेंहू की खरीद की थी. ढुलाई के नाम पर सामान्य से ज्यादा किराये का भुगतान किया था. इस प्रक्रिया के दौरान चार रुपये प्रति क्विंटल की दर से कमीशन वसूली और बांटी गयी. कमीशनखोरी मे आईएएस अधिकारी सहित अन्य लोग शामिल थे. 
छत्तीसगढ़ में हुई इस घोटाले को नान (नागरिक आपूर्ति निगम) घोटाला, राशन घोटाला और पीडीएस घोटाले के नाम से जाना जाता था. इस घोटाले के सिलसिले में छत्तीसगढ़ आर्थिक अपराध शाखा में 12 फरवरी 2015 को प्राथमिकी (9/2015) दर्ज करायी गयी थी. इसमें नागरिक आपूर्ति निगम के तत्कालीन मैनेजर शिव शंकर भट्ट सहित 27 लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया था. 
आर्थिक अपराध शाखा में दर्ज इस प्राथमिकी में किसी आईएएस अधिकारी को अभियुक्त नहीं बनाया गया था. बाद में प्रवर्तन निदेशालय (इडी) ने इस प्राथमिकी को इसीआईआर के रूप में दर्ज किया. इडी की जांच के बाद इसमें आईएएस अधिकारियों को अभियुक्त बनाया.

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