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CJI बीआर गवई ने कहा, ज्यूडिशियल अलर्टनेस जरूरी,  पर यह ज्यूडिशियल टेररिज्म में न बदल जाये

New Delhi : चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि ज्यूडिशियल रिव्यू (न्यायिक समीक्षा) की शक्ति का इस्तेमाल संयम से किया जाना चाहिए. ऐसा तभी किया जाये,  जब कोई कानून संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता हो.

 

जस्टिस गवई ने कहा कि कई बार आप (कोर्ट) सीमाओं को पार करने की कोशिश करते हैं और वहां घुसने की कोशिश की जाती है,  जहां आमतौर पर न्यायपालिका द्वारा प्रवेश नहीं किया जाना चाहिए.  जस्टिस गवई का मानना था कि ज्यूडिशियल अलर्टनेस जरूरी है, लेकिन ध्यान दिया जाना जरूरी कि यह ज्यूडिशियल टेररिज्म में नहीं बदल जाये.

 

जस्टिस बीआर गवई ने ऑक्सफोर्ड यूनियन में फ्रॉम रिप्रेजेन्टेशन टु रियलाइजेशन एम्बॉडिइंग द कॉन्स्टिटूशन्स प्रॉमिस सब्जेक्ट पर विचार रखते हुए कहा कि जब विधायिका और कार्यपालिका नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में असफल रहती हैं, तब न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ता है.  लेकिन इस हस्तक्षेप की सीमा और मर्यादा होनी चाहिए.

 

जान लें कि CJI गवई  रिटायर होने के बाद राजनीति में आने से इनकार कर चुके हैं. उन्होंने पूर्व में कहा था कि CJI के पद पर रहने के बाद व्यक्ति को किसी भी प्रकार की  जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए.   

 

जस्टिस बीआर गवई ने कहा था कि बेंच पर और बेंच से बाहर जज का व्यवहार ज्यूडिशियल एथिक्स के हाई स्टैंडर्ड के अनुसार होना चाहिए. पद पर रहते हुए और शिष्टाचार के दायरे से बाहर जज किसी राजनेता या नौकरशाह की तारीफ करते हैं तो पूरी न्यायपालिका में लोगों का भरोसा प्रभावित हो सकता है.