DR. Santosh Manav
1. झरिया के कारोबारी रंजीत साव की हत्या 29 अप्रैल को हुई थी. छह दिन हो गए, हत्यारों का पता नहीं. पुलिस वालों ने कहा था- सब कुछ CCTV में कैद है. 72 घंटे में अपराधियों को पकड़ लेंगे, नहीं पकड़ पाए.
2. रेलवे ठेकेदार बबलू सिंह की हत्या 2 अप्रैल को हुई. तीन पकड़े गए. मास्टरमाइंड पकड़ से दूर है. पुलिस ने कहा था, जल्द पकड़ लेंगे, नहीं पकड़ पाई.
3. धनबाद के सर्जन डाक्टर समीर से एक माह से एक करोड़ की रंगदारी मांगी जा रही थी. पुलिस को सूचना थी. वह कुछ नहीं कर पाई. अंततः डाक्टर समीर ने शहर को अलविदा कह दिया.
4. अमूमन हर रोज किसी न किसी व्यापारी, प्रोफेशनल, डाक्टर को रंगदारी के लिए फोन आता है. मुख्यत: प्रिंस खान या छोटू सिंह के नाम से. पुलिस पता नहीं लगा पाई कि छोटू और प्रिंस कहां छिपा है?
5. अमूमन हर सप्ताह किसी दुकान, घर पर फायरिंग, बमबाजी. पुलिस का रंगबाजों में खौफ नहीं.
6. कोयला चोरी में पुलिस की हिस्सेदारी की बतकही. कोयला चोर बेखौफ.
क्या ये उदाहरण काफी नहीं हैं, यह बताने के लिए कि धनबाद की पुलिसिया ताकत असफल हो गई है. अगर सेना विफल हो, टीम फेल हो, तो पहली गाज सेनापति पर गिरती है. जिले में पुलिस के सबसे बड़े अधिकारी हैं वरीय पुलिस अधीक्षक (SSP). क्या SSP से पूछा नहीं जाना चाहिए? जवाबदेही तय करनी होगी? थक गए होंगे कदाचित. सरकार को चाहिए कि उनसे बात करे. चाहिए तो आराम, शक्ति संचय का समय दे, ताकि पूरी ताकत से बेहतर काम कर पाएं. पुरानी परंपरा-कहावत है कि ताली कप्तान को तो ‘गाली’ भी कप्तान को. अगर बहादुरी का सेहरा वरीय अधिकारी के सिर बंधता है, तो असफलता का ठिकरा भी वरीय के सिर ही फूटना चाहिए ?
खाली पद भरो न सरकार
अब जिले में पुलिस बल का हाल देखिए. कुल स्वीकृत पद हैं- 3826. कार्यरत हैं 3070. लगभग सात सौ पचास पद खाली हैं. सरकार को चाहिए कि धनबाद जैसे संवेदनशील जिले में पुलिस के सभी पद भरे हों. नहीं भरे हैं, सो वह शीघ्रता से भर दे. डिटेल में देखिए- पुलिस अधीक्षक के तीन पद हैं. कार्यरत हैं दो यानी एक पद खाली. डीएसपी के आठ पद हैं. कार्यरत हैं सात. यानी एक पद खाली. इंस्पेक्टर के 37 पद हैं. कार्यरत हैं 37. यानी सभी पद भरे हैं. सब इंस्पेक्टर के पद हैं 552 और कार्यरत हैं 496. यानी 56 पद खाली हैं. सिपाही के 2044 पद हैं. कार्यरत हैं 1789. यानी 255 पद खाली हैं. जिम्मेदार सरकार को चाहिए कि वह सभी पद भर दे. तत्काल भर दे. अगर उसे धनबाद की तनिक भी चिंता है.
तब नेताजी, अब रंगबाजों से परेशान है शहर
धनबाद में जो अब हो रहा है, वह 22 साल पहले होता था. तब भी व्यवसायी शहर से भाग रहे थे. एक बड़े व्यवसायी की याद तो सभी को है. नाम था अशोक जालान. वे अपहरण, फिरौती, धमकी से परेशान थे. कारोबार बंद कर कोलकातावासी हो गए. अनाम तो अनेक हैं. एक नेताजी थे. अब भी हैं. वे कारोबारियों को पेड़ से बांधकर पीटते थे. तब के कायर पुलिसवालों की हिम्मत नहीं होती थी कि नेताजी पर FIR तक करे. तब नेताजी से परेशान था शहर. अब रंगबाजों से परेशान है शहर.
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ये चूड़ी पर आ गए —-
बीजेपी के MLA राज सिन्हा कदाचित इसीलिए अभी की सरकार को जंगल राज-पार्ट टू कह रहे हैं. उन्होंने कहा है कि धनबाद के वरीय पुलिस अधिकारियों को वे चूड़ी भेंट करेंगे. उन्हें चूड़ी पहनकर घर बैठना चाहिए. हालांकि राज सिन्हा का बयान बहुत सलीके का नहीं है. चूड़ी महिलाएं पहनती हैं और महिलाओं को कमजोर समझना पुरूषवादी अहंकार है. हां, सिन्हा की इस बात में दम है कि धनबाद की पुलिस असफल है. डर से किसी डाक्टर का शहर छोड़ देना शर्मनाक है.
शर्मनाक तो है —
तमाम बतकहियों, बयानवीरों के बयान के बीच जो बात विवाद से परे है, वह यह कि शहर परेशान है. इससे मुक्ति के लिए किसी मसीहा की आवश्यकता नहीं है. बस, तीन-चार बात. पुलिस सजग हो. जो कमजोर हैं, वे पद छोड़ दें. राजी-खुशी या जबरिया. जो व्यवसायी हैं, डाक्टर हैं, प्रोफेशनल हैं, वे धन नहीं दें. देंगे तो सिलसिला जारी रहेगा. शहर भी नहीं छोड़ें. धैर्य रखें. धैर्य भी दवा है. सब ठीक होगा-होगा ही. जनता के दबाव के आगे हुकूमतें डरती-झुकती हैं . माफिया-रंगबाज भी झुकते हैं. तानाशाह-अधिकारी भी डरते हैं. धनबाद की जनता कायर नहीं है. वह सजग है. वह सबको झुकाएगी. जागो जनता फिर एक बार — { लेखक दैनिक भास्कर सहित अनेक अखबारों के संपादक रहे हैं. फिलहाल लगातार मीडिया में स्थानीय संपादक हैं }
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