Shyam Kishore Choubey
…तो 26 फरवरी को मधु कोड़ा की सपत्नीक या यूं कहें कि सिंहभूम की कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा की स-पति भाजपा में इन्ट्री हो गई. 14 वर्षों बाद फरवरी 2020 में बाबूलाल मरांडी की भाजपा में वापसी हुई थी. आज की तारीख में वे झारखंड भाजपा के अध्यक्ष हैं. उन्होंने ही कोड़ा दंपती को पार्टी का पट्टा ओढ़ाया. कोड़ा महोदय 19 वर्ष बाद भाजपा में वापस हुए. अभी 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव की घोषणा बाकी है, लेकिन चुनावी नशा छाने लगा है. कोड़ा दंपती का भाजपा में आना तो साल भर पहले 7 जनवरी 2023 को ही तय हो गया था, जब अमित शाह चाईबासा पधारे थे. इंतजार चुनावी माहौल बनने का था. बासंती बयार में होलियाना सा एक सवाल मन को मथने लगा है. क्या ही अच्छा होता, हरिनारायण राय और एनोस एक्का भी इधर आ जाते तो 2005-2006 का जी-5/6 एक बार फिर कायम हो जाता. 2005 में जब झारखंड में अर्जुन मुंडा की सरकार थी, तब की जी-5 मंडली के कमलेश सिंह इंडि गठबंधन छोड़ एनडी गठबंधन के साथ पहले ही हो चुके हैं, चंद्रप्रकाश चौधरी कभी से इस गठबंधन में हैं, कोड़ा महोदय भी विराज गये. कमी उन दो की ही खटक रही है. 2006 में जब मुंडा महोदय और एनडी गठबंधन को अपदस्थ कर कोड़ा मुख्यमंत्री बन बैठे, तब जी-5 का नया संस्करण लॉन्च हुआ था, जिसमें नये सदस्य के बतौर भानु प्रताप शाही नमूदार हुए थे. वहीं भानु बाबू दिल बदलकर 2019 में भाजपामय हो गये थे. इन लोगों की खासियतों से सभी परिचित ही होंगे. खैर, राजनीति में आना-जाना लगा रहता है, लेकिन मौजूदा हालात पर एक और सवाल बनता है, इन नर पुंगवों के जुटान से भाजपा का शुद्धीकरण हुआ या ये लोग अपना शुद्धीकरण कराने आये हैं?
शुद्धीकरण के इस दौर में 27 फरवरी को हुए राज्यसभा चुनाव में यूपी में एक अतिरिक्त और हिमाचल की एकमात्र सीट हथियाने में भाजपा कामयाब रही. अखिलेश यादव और मल्लिकार्जुन खरगे तकते रह गये. हिमाचल में बहुमत वाली कांग्रेस सरकार असहाय सी टुक देखती रही, सीट उसके पंजे से सरक गई. यह जमाना वोट के ध्रुवीकरण का है. वही परम धरम-करम है. अब राजनीतिजीवियों के प्रजातंत्र का मूल मंत्र पावर और वोट बन गया है, जिसके लिए सबकुछ जायज है. चुनाव एक किस्म का युद्ध ही है और प्यार और युद्ध में सब जायज होता है.
यह घटनाओं का दौर है. आगे और भी दिलचस्प घटनाएं सामने आएंगी. 25 फरवरी को रांची में टोटेमिक कुड़मी-कुरमी समाज ने हुंकार रैली कर एक बार फिर आगाह किया कि कुड़मियों को एसटी का दर्जा नहीं मिला तो वे राजनीतिक दलों को सबक सिखा देंगे. उसने बड़े गर्व से कहा, हमारे लोग झारखंड की सात लोकसभा सीटों और 30 विधानसभा सीटों पर निर्णायक मत रखते हैं. मणिपुर हाईकोर्ट के 27 मार्च 2023 के एक फैसले से उनको अधिक बल मिला था, जिसमें मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने पर चार हफ्ते के अंदर विचार करने का आदेश मणिपुर सरकार को दिया गया था. उसी हाईकोर्ट ने 21 फरवरी को 2023 के निर्णय का संबंधित पैराग्राफ हटाते हुए एक तरह से अपना फैसला वापस ले लिया. संयोग यह भी कि 25 तारीख को ही रांची में पासवान महासम्मेलन हुआ, जिसमें परिसीमन कराके विधानसभा में एससी सीटें 07 से बढ़ाकर 20 करने की मांग उठायी गई. वोट का समीकरण जातीय सपोर्ट पर बहुत कुछ निर्भर करता है. इसलिए वोट का समय आने पर जातीय संगठनों के सतर्क-सक्रिय हो जाने का सिलसिला जमने लगा है. कुड़मी महाजुटान में दलगत भावना से अलग कई कुड़मी नेता जुटे थे, तो पासवान सम्मेलन में भी उसके जातीय नेताओं का आना किसी को बुरा नहीं लगना चाहिए. जाति, संप्रदाय, क्षेत्र, पंथ, धर्म जैसे शब्द संविधान की शोभा बढ़ा रहे हैं, राजनीतिक कार्य-व्यवहार ध्रुवीकरण के बिना चलता ही नहीं. कोई गर्व से खुद को ओबीसी बताता है तो कोई जनेऊ दिखाता है.
जेएसएससी द्वारा आयोजित 28 जनवरी को संयुक्त स्नातक स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षा के पेपर लीक प्रकरण में डीजीपी रहे नीरज सिन्हा ने कमीशन के अध्यक्ष पद से 21 फरवरी को इस्तीफा कर दिया. उन्होंने पांच महीने पहले 27 सितंबर 2023 को यह पद संभाला था. सरकार ने एसआईटी गठित की, विधानसभा के एक जूनियर अधिकारी सहित कई गिरफ्तारियां भी हुईं, लेकिन प्रतिपक्षी भाजपा है कि सीबीआई जांच की मांग पर अड़ी हुई है. काश! यूपी में हाल ही सिपाही बहाली परीक्षा के पेपर लीक मामले में भी वह सीबीआई जांच की मांग करती तो लगता, वह अखिल भारतवर्ष में समान विचारधारा रखती है. हिंदी पट्टी में चाहे बिहार हो कि राजस्थान या कि छत्तीसगढ़, एमपी हर जगह पेपर लीक समान घटना लगती है. फिर भी जिनकी बहाली हो जाती है, वे बेशक खुशकिस्मत हैं.
लोकसभा चुनाव के लिहाज से पूरे भारत के लिए यह चुनावी वर्ष है, सो केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहली फरवरी को अंतरिम बजट पेश कर कई मसलों पर दरियादिली दिखायी. इसी साल के अंत में झारखंड विधानसभा का भी चुनाव होना है. आईपीएस अधिकारी रहे अर्थशास्त्र में पीजी डिग्रीधारी वित्त मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव अपने इस कार्यकाल का अंतिम बजट 27 फरवरी को पेश कर उसे 1,28,900/ करोड़ की ऊंचाई तक ले गये. उन्होंने भी खूब लोकलुभावन घोषणाएं की है. एक बार चुनाव का ऐलान हो जाय, फिर देखिये कौन कहां टिकता है. आज की राजनीति का कोई ठिकाना नहीं. राज्यसभा चुनाव को पैमाना माना जाय तो गैर एनडीए दलों को संभल जाना चाहिए.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.