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कहां गायब हो गया तेजस फाइटर जेट?

Siddhant Mohan भारतीय वायुसेना के प्रमुख एयरचीफ मार्शल एपी सिंह ने 7 जनवरी को तेजस LCA (Light Combat Aircraft) को लेकर एक बड़ी चिंता जाहिर की थी. कहा कि वायुसेना को पहले 40 तेजस क्राफ्ट की ही खेप नहीं मिल सकी है. ये वही जहाज है, जिसमें बैठकर नवंबर 2023 में पीएम मोदी ने उड़ान भरी थी.

तो ऐसा क्या हुआ तेजस के साथ?

साल 1983 में DRDO ने एक स्वदेशी LCA बनाने का प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय को दिया. ध्यान दें कि ये पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट नहीं था. पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट मारुत था, जिसे जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में बनाया गया था. लौंगेवला की लड़ाई और बांग्लादेश लिबरेशन वॉर में भी इसका इस्तेमाल हुआ था. तो साल 1983 वाला प्लान इसलिए बना था कि दो दशक पुराने Mig 21 के बेड़े को विदा कर दिया जाये. इस समय ही Mig की सेफ़्टी पर सवाल उठने लगे थे. साल 1984 - मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी, और इस नीयत से Aeronautical Development Agency (ADA) की शुरुआत हुई. साल 1986 - नए जहाज के लिए DRDO के बेंगलुरू में मौजूद गैस टर्बाइन रिसर्च ईस्टैब्लिशमेंट (GTRE) में इंजन का निर्माण शुरू किया. 14 साल के रीसर्च के बाद जब ये इंजन बनकर रेडी हुआ, तो इसे नाम दिया गया - कावेरी. इस इंजन का बस नाम ही बढ़िया था. काम बहुत खराब. उसकी कहानी बाद में. साल 1990 - Hindustan Aeronautics Limited (HAL) में नए जहाज का डिजाइन तैयार किया गया. साल 1995 - इस जहाज के दो वेरीएंट TD-1 और TD-2 को लोगों के सामने लाया गया. यहां TD का मतलब Technology Demonstrator हुआ. ये एक तरह का प्रोटोटाइप था, यानी पूरे जहाज का पहला मॉडल, जो ये दिखाता था कि असल में जहाज कैसा लगेगा. साल 2001 - एयरक्राफ्ट के TD-1 प्रोटोटाइप ने पहली उड़ान भरी. साल 2002 - इस साल TD-2 ने उड़ान भरी. दोनों उड़ानें सफल. यानी जहाज अब अपना फाइनल रूप ले सकता था. लेकिन ध्यान रहे कि ये साल 1983 में प्रोजेक्ट की शुरुआत के 18-19 सालों बाद हो रहा था. (यानी पहले ही निर्णायक लेट हो चुकी थी) साल 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस एयरक्राफ्ट को चिरपरिचित नाम दिया - तेजस. साल 2006 - रक्षा मंत्रालय ने HAL से 20 तेजस जेट्स के लिए करार किया. इन 20 में 14 फाइटर प्लेन थे, जबकि 6 ट्रेनिंग एयरक्राफ्ट. ये सारे जहाज साल 2011 तक वायुसेना के खेमे में आने थे. लेकिन साल 2008 में एक मुसीबत सामने आयी. तेजस जहाजों में जो कावेरी इंजन लगाया गया था, वो जहाज को जरूरी Thrust नहीं दे पा रहा था. ऐसे में अब एक नया रास्ता तलाशने की जरूरत थी. क्योंकि साल 2006 से शुरू हुआ तेजस खरीदने का क्रम तेजी से आगे चल निकला था. रक्षा मंत्रालय के तमाम चैनल्स के जरिए तेजी से ऑर्डर प्लेस किये जा रहे थे. जो संख्या 20 की थी, साल 2010 आते-आते अब 40 तक पहुंच चुकी थी. यहां ये भी सवाल उठ सकता है कि तेजस की पहली खेप मिली नहीं, तो दूसरी खेप का ऑर्डर किस आधार पर दिया गया? ऐसे में अमेरिकन कंपनी General Electic (GE) से संपर्क हुआ. इस अमरिकी कंपनी के पास एक इंजन था F404. रक्षा मंत्रालय ने प्रस्ताव रखा कि इस इंजन का एक ऐसा वेरीएंट बने, जो तेजस एयरक्राफ्ट को उचित शक्ति दे सके. GE ने इस डिमांड पर जो इंजन बनाया, उसे कहा गया F404-IN20. तय हुआ कि तेजस में अब यही इंजन फिट किया जायेगा. तो साहेबान, बरसों के इंतजार के बाद साल 2016 वो साल था, जब भारतीय वायुसेना के बेड़े में पहली बार तेजस शामिल हुआ. लेकिन गिनती के 2 एयरक्राफ्ट मिले थे. (यानी साल 2001 में हुई पहली टेस्ट फ्लाइट के 15 सालों बाद) फिर साल 2017 आया. पिछले ऑर्डर में देर थी. फिर भी एयरफोर्स ने HAL को कुल 83 तेजस विमानों का ऑर्डर दिया. उम्मीद थी कि HAL की फसिलिटी में हर साल 16 तेजस विमान तैयार हो सकेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. साल 2018 आते-आते भारतीय वायुसेना के तेजस बेड़े में कुल 8 ही जहाज आ सके थे. रक्षा मंत्रालय की ओर से जो 40 जहाजों का ऑर्डर था, उसके मुकाबिले ये सप्लाई बहुत कम थी. लिहाजा रक्षा मंत्रालय ने HAL पर दबाव जारी रखा. कहा कि अगले साल कम से कम 18 जहाज डिलीवर करें. लेकिन ऐसा नहीं हो सका और अब निर्णायक देर हो चुकी थी. और जानकार बताते हैं कि इसके पीछे दो वजहें थीं. नंबर एक - HAL की प्रोडक्शन क्षमता जरूरत के मुकाबिले काफी कम थी. नंबर दो - GE से जो इंजन मिलने थे, उनके भी आयात की गति बहुत कम थी. लेकिन बात शायद इतनी नहीं थी. आसमान में उड़ने वाली चिड़िया कहती है कि इस देर में डिफेंस सौदेबाजी की lobby भी शामिल थी, जो चाहती थी कि ये प्रोजेक्ट लेट हो. और वो चिड़िया ये भी कहती है कि GE के पास जाने के पहले कुछ और देशों से बातचीत की गई थी, जिस वजह से अमरिकी सरकार और अमरिकी कंपनी बहुत खुश नहीं थी. और साल 2020 आते आते वायुसेना के बेड़े में तेजस का एक पूरा स्क्वाड्रन पूरा खड़ा हो सका था. स्क्वाड्रन नंबर 45 उर्फ फ्लाइंग डैगर्स. इसमें कुल 16 तेजस जहाज शामिल हैं. वहीं स्क्वाड्रन नंबर 18 उर्फ फ्लाइंग बुलेट्स को अभी तेजस से लैस करने का काम अभी भी चल रहा है. यानी अभी भी पहले 40 जहाजों का बेड़ा तैयार नहीं है. इस देर को देखते हुए साल 2021 में भारत सरकार ने GE को कहा कि मार्च 2023 तक 99 एयरक्राफ्टस के F404-IN20 इंजन डिलीवर करें. GE ने ऐसा करने का वादा भी किया. लेकिन अपनी डेडलाइन फिर मिस कर दी. इसी साल जब पीएम नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अमरिका की यात्रा पर गये, तो उन्होंने इंजन में देर का मुद्दा भी उठाया था. फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने इस देरी के कारण GE पर जुर्माना लगाया. और अक्टूबर 2024 की The Print की खबर बताती है कि GE ने कहा कि वो अप्रैल 2025 से सभी इंजन की डिलीवरी शुरू कर देंगे. यानी डिलीवरी अब फिर से लेट. तो ये है तेजस में लेट-लतीफी की असली कहानी. बाकी आप खुद समझदार हैं. सोचने के लिए कि जो चीज विदेशों में लंबे समय से बन रही है, उसे अपने पास बनाने के लिए इतना ज्यादा R&D करने की क्यों जरूरत है? खासकर तब, जब सेना के पास हथियार ही न हों? डिल्क्लेमर :  सिद्धांत मोहन वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह टिप्पणी उनके सोशल मीडिया पोस्ट एक्स से लिया गया है.