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39.34 लाख की फर्जी निकासी में कंप्यूटर ऑपरेटर फंसा, बड़े अफसरों की जान छूटी

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Ranchi : मनरेगा में BDO का डिजिटल सिग्नेचर इस्तेमाल कर 39.39 लाख रुपये की फर्जी निकासी में कंप्यूटर ऑपरेटर को दोषी ठहराया गया है, जबकि बड़े अफसरों से स्पष्टीकरण पूछ कर उन्हें बख्श दिया गया है. गुमला जिले के डुमरी प्रखंड में हुई इस फर्जी निकासी के मामले में जिला आपूर्ति पदाधिकारी प्रीति किसकू, तत्कालीन BDO एकता वर्मा, उमेश स्वांसी और प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी से स्पष्टीकरण पूछा गया था. इन अधिकारियों ने अपना डिजिटल सिग्नेचर दूसरों को दे दिया था. लेकिन उन्हें बख्श दिया गया है. हालांकि बात सभी जानते हैं कि कंप्यूटर ऑपरेटर अकेले फर्जी निकासी नहीं कर सकता है.

 

जानकारी के मुताबिक गुमला जिले से डुमरी प्रखंड में फर्जी निकासी की शिकायत मिलने के बाद जिला प्रशासन ने मामले की जांच के लिए समिति का गठन किया था. समिति ने अपनी रिपोर्ट में BDO के डिजिटल सिग्नेचर के सहारे 39.34 लाख रुपये की फर्जी निकासी की पुष्टि की. जांच समिति फर्जी निकासी की रकम नौ लोगों के खाते में ट्रांसफर किये जाने का उल्लेख किया. इन व्यक्तियों के संबंध डुमरी प्रखंड के बदले पालकोट से है.

 

जांच रिपोर्ट के अनुसार जिन लोगों के खाते में पैसा ट्रांसफर किया गया, उसमें अमित राम,सुमित नायक, भगवान नायक, बिरसमुनी देवी, दिलीप यादव, टुम्पा यादव, पंपा यादव, देवंती देवी और हीरा लाल यादव का नाम शामिल है. जांच समिति की इस रिपोर्ट के आधार पर जिला प्रशासन ने मार्च 2025 में कुल 10 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी थी.  दर्ज प्राथमिकी के नामजद अभियुक्तों की सूची में कंप्यूटर ऑपरेटर राजू साहू के अलावा उन नौ लोगों को शामिल किया गया, जिनके खाते में फर्जी निकासी कर रुपया ट्रांसफर किया था.

 

पहले चरण की कार्रवाई पूरी करने के बाद जिला प्रशासन ने डुमरी प्रखंड के तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारियों से स्पष्टीकरण पूछना शुरू किया. क्योंकि फर्जी निकासी में उनके डिजिटल सिग्नेचर का इस्तेमाल किया गया था. इस दौरान जिला प्रशासन ने तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारियों सहित जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (DPC) से स्पष्टीकरण पूछा.

 

जिले के वर्तमान जिला आपूर्ति पदाधिकारी  प्रीति किस्कू ने अपने जवाब में यह स्वीकार किया कि वह चैनपुर अनुमंडल पदाधिकारी के पद कार्यरत रहने के दौरान नवंबर 2020 से अप्रैल 2022 तक डुमरी प्रखंड के BDO के अतिरिक्त प्रभार में रही हैं. उन्होंने अपने जवाब में मनरेगा में भुगतान की प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए कहा कि मनरेगा में भुगतान के लिए प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी (BPO) First Signatory और BDO, Second Signatory होता है.

 

BPO द्वारा जांच कर भुगतान के लिए पेश किया जाता है. इसके बाद BDO की स्वीकृति होती और भुगतान होता है. नियमों का उल्लेख करने के बाद जिला आपूर्ति पदाधिकारी ने अपना बचाव करते हुए सरकार को भेजे गये जवाब में कहा कि वह चैनपुर SDO के रूप में पदस्थापित थीं. काम का अतिरिक्त बोझ होने की वजह से उन्होंने कार्यहित में अपना डिजिटल सिग्नेचर BPO/ Computer Operator को उपलब्ध करा दिया था. इसलिए फर्जी निकासी के इस मामले से सरकार उन्हें मुक्त कर दे.

 

तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी एकता वर्मा ने स्पष्टीकरण का जवाब देते हुए लिखा कि उनके कार्यकाल में मनरेगा कर्मियों के भुगतान के लिए रजिस्टर बनाया गया था. इसमें भुगतान का हिसाब-किताब लिखा जाता था. भुगतान से पहले मनरेगा कर्मियों का विवरण BPO के Login से भरा जाता है. इसके बाद DPC के Login से मनरेगा कर्मियों के ब्योरे के फ्रिज किया जाता है. जांच के दौरान पाये गये संदेहास्पद व्यक्तियों का विवरण फ्रिज करने के लिए BDO के स्तर से कोई पत्राचार नहीं किया गया था. जांच के दौरान एक ही प्रखंड के 30 सहायक अभियंता, कनीय अभियंता का विवर्ण फ्रिज करना संदेहास्पद है. जांच समिति की रिपोर्ट से यह प्रतीत होता है कि कंप्यूटर ऑपरेटर राजू साहू द्वारा जानबूझ कर राशि की फर्जी निकासी की गयी.

 

तत्कालीन BDO उमेश स्वांसी ने भी स्पष्टीकरण का जवाब देते हुए लिखा कि इस जालसाजी में कंप्यूटर ऑपरेटर राजू साहु के संलिप्त होने से इंकार नहीं किया जा सकता है. MIS में FTO से वर्ष 2020-21 से फर्जी भुगतान होता रहा है. राजू साहु प्रखंड कार्यालय में मनरेगा ऑपरेटर के रूप में कार्यरत था. उसी के द्वारा मस्टर रॉल भरने, वेज लिस्ट जेनरेट करने आदि का कम किया जाता था. इस क्रम में राजू साहु द्वारा BPO और BDO के डिजिटल सिग्नेचर का गलत इस्तेमाल किया है. फर्जी निकासी के मामले में हंगामा होने के बाद राजु ने अपना पद छोड़ दिया.

 

प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी (BPO) संदीप उरांव ने भी स्पष्टीकरण के जवाब में फर्जी निकासी की सारी जिम्मेवारी कंप्यूटर ऑपरेटर पर डाल दी. इसके अलावा तत्कालीन BDO तारणी कुमार महतो ने तो दो बार रिमाइंडर देने के बावजूद स्पष्टीकरण का जवाब ही नहीं दिया है.

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