Faisal Anurag
इन दिनों क्या खूब बातें कहीं जा रही हैं. लाखों परिवार अभी तक शोक के हालात में ही हैं, लेकिन शासकों ने तय कर लिया है कि वे हकीकत के बरखिलाफ वाहवाही लूट लें. इसी क्रम में ताजा बयान गृहमंत्री अमित शाह का है. क्या खूब कहा है अमित शाह ने! बकौल अमित शाह सोशल मीडिया पर तो हर देश की व्यवस्था ध्वस्त ही दिखेगी. यानी तबाही का दर्द, मौत की असलियत और सरकार की नाकामी केवल सोशल मीडिया की उपज है. यह भारत में ही संभव है कि लाखों की मौत के बावजूद पीठ ठोका जाए कि नरेंद्र मोदी ने तो रिकॉर्ड कम समय में ही महामारी को नियंत्रित कर लिया है. अभी मार्च में ही तो प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया को बताया था कि भारत कोरोना के खिलाफ युद्ध जीत चुका है. यह बात उस दौर में कही गयी जब ब्रिटेन और अमेरिका दूसरी लहर के वायरस के नए म्युटेंट की जद में थे. यही नहीं भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने तो नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए प्रस्ताव भी पारित कर दिया. उस दौर में यह प्रस्ताव पारित हुआ जब वैक्सीन को लेकर सरकार बेनकाब हो रही थी.
अभी भी देश में एक लाख से नए मामले आ रहे हैं और सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 2500 के आसपास लोग मर रहे हैं. लेकिन गृहमंत्री शाह इसे बड़ी कामयाबी बता रहे हैं. सिर्फ दो महीनों ने ही भारत की स्वास्थ्य की तैयारी, महामारी से लड़ने की दक्षता और सरकार की संवेदनशीलता को बेपर्दा कर दिया. देश के कम से कम तीन अखबारों में लगातार खोजपरक खबरें बता रही हैं कि सरकार ने मौत के जो आंकड़े दिए हैं वे गलत हैं. लेकिन भारत दक्षिण अमेरिका के पेरू जैसा देश भी नहीं जो सवाल उठते ही जांच कर ले और अपने आंकड़ो को सुधार ले. यह सही बात है कि आंकड़ों को छुपाने का खेल अमेरिका सहित अधिकांश देशों ने किया है. लेकिन उन देशों में सवाल उठे हैं और वहां उसे सोशल मीडिया का फितूर भर नहीं बताया जा रहा है.
अपैल मई में तो सोशल मीडिया मौत की त्रासद खबरों, इलाज की परेशानी, ऑक्सीजन के लिए तड़प और लगभग अनुपस्थित केंद्र सरकार के संदर्भ में ही टिप्पणी करते रहे. कई हाईकोर्ट की टिप्पणियां बताती हैं कि सरकारों ने किस संवेदनहीनता का परिचय दिया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त लहजे में जनसंहार जैसे हालात का जिक्र किया. दवा और ऑक्सीजन को लेकर तो दिल्ली सहित कई उच्च न्यायलयों ने जिस तरह की बातें कहीं, वह किसी भी सरकार की नाकामी की ओर इशारा है. नरेंद्र मोदी और भाजपा की लोकप्रियता की गिरावट से घबरायी सत्ता अब फिर से सक्रिय हो तथ्यों को नजरअंदाज करने का प्रयास कर रही है. सोशल मीडिया को नियंत्रित करने का प्रयास तो तेजी से जारी है. केंद्र सरकार आलोचनाओं से कितनी परेशान है इसे समझने के लिए उसके ताजा आदेश को देखा जा सकता है.
इस आदेश में केंद्र ने रिटायर सरकारी अधिकारियों पर अंकुश लगाने की दिशा में कदम उठाया है. रिटायर अधिकारियों को स्वतंत्र विचार या अपने अनुभव के आधार पर लिखने की एक तरह से मनाही कर दी गयी है. कुछ भी लिखने के लिए सरकार से पूर्वानुमति की शर्त लगा दी गयी है और चेतावनी दी गयी है कि उन्हें पेंशन से बेदखल किया जा सकता है.
इस संदर्भ में देश के जानमाने 185 बुद्धिजीवियों की प्रधानमंत्री को लिखे पत्र की चर्चा भी प्रासंगिक है. इन सजग नागरिकों ने तबाही के मंजर का बयान करते हुए सरकार को सावधान किया है कि वह तीसरी लहर के पहले ही तमाम तैयारियों को युद्धस्तर पर करे. इस पत्र के अनुसार: केंद्र सरकार के साथ सहयोग करने और मिलकर काम करने की पेशकश के बाद भी भारत सरकार ने न तो सलाहों का स्वागत किया और न ही वास्तव में एक ऐसा कार्य बल तैयार किया, जिसमें सभी पार्टियों, राज्य सरकारों, विशेषज्ञों और सिविल सोसाइटी के लोग साथ होकर इस संकट से निपटें.
यह पत्र दूसरी लहर के समय की कोताही, राजनैतिक इच्छाशक्ति और सरकार के केजुअल रूख की ओर गंभीर इशारा है. विदेशी पत्र पत्रिकाओं में किए गए तथ्यपरक लेख-रिपोर्ट से बेखबर अमित शाह भाजपा और मोदी के पक्ष में माहौल बनाने के अभियान में सक्रिय हो गए है. 2022 मे होने वाले उत्तर प्रदेश के चुनाव की तैयारी है.