Ranchi : झारखंड के मांडर विधानसभा सीट पर 22 साल बाद कांग्रेस पार्टी ने कब्जा जमाया है. कांग्रेस की प्रत्याशी शिल्पी नेहा तिर्की 91839 वोट लाकर इस सीट को कांग्रेस की झोली में डाल दिया है. शिल्पी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बीजेपी की प्रत्याशी और मांडर की पूर्व विधायक गंगोत्री कुजूर को 23517 वोट से हरा दिया है. गंगोत्री कुजूर को उपचुनाव में 71545 वोट मिले. वहीं तीसरे नंबर पर AIMIM के प्रत्याशी देवकुमार धान हैं. उन्हें उपचुनाव में 22395 वोट मिला है. देवकुमार धान ने आखिरी बार 2000 में मांडर में कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर पार्टी को जीत दिलाई थी. 2005 के बाद से देवकुमार धान मांडर विधानसभा से हर बार अलग-अलग पार्टी से चुनाव लड़े, लेकिन वे चुनाव हारते रहे. पिछली बार उन्होंने बीजेपी की टिकट से चुनाव लड़ा था.
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पहले राउंड से ही शिल्पी की बनी रही बढ़त
21 राउंड की मतगणना में शिल्पी नेहा तिर्की दूसरे राउंड को छोड़कर हर राउंड में गंगोत्री कुजूर से आगे रहीं. दसवें राउंड में उन्होंने गंगोत्री कुजूर से 10,667 वोटों की बढ़त बना ली थी. वहीं 19वें राउंड में शिल्पी गंगोत्री से करीब 20 हजार वोट आगे पहुंच गईं. वहीं 20वें राउंड में शिल्पी गंगोत्री से 22 हजार वोट से आगे जा पहुंचीं. मतगणना के बाद कुछ राउंड के रुझान आने के बाद से ही बीजेपी खेमे में निराशा पसर गई थी. गंगोत्री कुजूर ने भी हार की जिम्मेदारी ली है. उन्होंने कहा है कि जनादेश स्वीकार है.
बीजेपी को नहीं थी इतनी बड़ी हार की उम्मीद
मांडर में बीजेपी को जिस तरह से शिकस्त मिली है, उसने इसकी उम्मीद नहीं की थी. प्रदेश बीजेपी के सभी बड़े नेता मांडर में कैंप कर रहे थे. एसटी आरक्षित इस सीट को जीतने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी थी. प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी हर रोज मांडर विधानसभा में दर्जन भर जन चौपाल लगा रहे थे और लोगों से जनसंपर्क कर रहे थे. उन्होंने चुनाव में भारी वोटों से जीत का दावा किया था, लेकिन बीजेपी को निराशा हाथ लगी.
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2019 के बाद किसी उपचुनाव में बीजेपी को नहीं मिला बाबूलाल के आने का फायदा
2019 के विधानसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम ने इस सीट पर कब्जा किया था. शिल्पी के पिता बंधु तर्की ने भी पिछले चुनाव में यहां से बड़ी जीत दर्ज की थी. उन्होंने देवकुमार धान को 23127 वोटों से हराया था. बाबूलाल मरांडी अब बीजेपी में आ गये, लेकिन उनके बीजेपी में आने का फायदा मांडर उपचुनाव में बीजेपी को नहीं मिला. सिर्फ मांडर ही नहीं 2019 के बाद झारखंड में हुए किसी भी उपचुनाव में बीजेपी को बाबूलाल मरांडी के आने का फायदा नहीं मिल पाया. 2019 के बाद दुमका, बेरमो और मधुपुर में उपचुनाव हुआ. इन तीनों उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. दुमका और मधुपुर जेएमएम ले गई और बेरमो कांग्रेस ले उड़ा.
आदिवासियों के बीच खिसकते जनाधार को नहीं बचा पा रही बीजेपी!
आदिवासियों के बीच बीजेपी का जनाधार खिसक रहा है, यह बात 2019 के विधानसभा चुनाव में ही साफ हो गई थी. 2014 में बीजेपी ने राज्य में जनजातीय आरक्षित 28 सीटों में से 11 पर जीत हासिल किया था, लेकिन 2019 में इनमें 9 सीटें बीजेपी को गंवानी पड़ी. सिर्फ दो सीटें बीजेपी की झोली में आई. इसके बाद बीजेपी ने आदिवासियों के बीच फिर से पैठ बनानी शुरू कर दी. बीजेपी को लगा कहीं गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का यह साइड इफेक्ट तो नहीं है. काफी मंथन के बाद फिर से बीजेपी में आदिवासी चेहरे को आगे करने की रणनीति बनी. पहला नाम अर्जुन मुंडा का आया, लेकिन वे चुनाव हार चुके थे. तब बीजेपी ने अपने पुराने सहयोगी बाबूलाल मरांडी को बीजेपी में शामिल कराया और आदिवासियों के बीच फिर से आदिवासी चेहरा लेकर पहुंचा गया. मांडर और दुमका के उपचुनाव के रिजल्ट ने यह साफ कर दिया है कि जनता ने अभी भी बाबूलाल मरांडी को स्वीकार नहीं किया है.
चुनाव परिणाम का विश्लेषण करेगी बीजेपी
बाबूलाल मरांडी के आने से बीजेपी को उपचुनावों में हार का मुंह क्यों देखना पड़ रहा है. इस सवाल पर बीजेपी की ओर से दो टूक जवाब आया है. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा ने कहा कि पार्टी मांडर के जनादेश का सम्मान करती है, जहां तक बात बाबूलाल मरांडी के आने के बाद मांडर सहित 4 उपचुनावों में हार का सवाल है तो अभी मांडर का विश्लेषण आने दीजिए. आदिवासी, मुस्लिम, क्रिश्चयन और अन्य जातियों में से किसका वोट बीजेपी को नहीं मिला है, वह तो पूरा परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा.
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