New Delhi : जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी के चीफ गुलाम नबी आजाद ने शनिवार को कहा कि जिस बीमारी की वजह से मैंने कांग्रेस से इस्तीफा दिया था, वह बीमारी अबी भी पार्टी में बरकरार है. बल्कि मर्ज बढ़ता ही जा रहा है. बीमारी का असर और गहरा हो रहा है. उन्होंने कहा कि जो पार्टी कभी पीटी ऊषा की स्पीड की तरह दौड़ती थी, आज विकलांग हो गई है. विकलांग को एक या दो छड़ी की जरूरत होती है, लेकिन कांग्रेस को आज दर्जनों लाठियों को जरूरत है. लोकतंत्र में सभी को सुनना जरूरी है. जब सुनना बंद हो जाता है तो तानाशाही आ जाती है. कहा कि ना तो मुझे कांग्रेस ने बुलाया और ना मैंने कभी वापस जाने की इच्छा प्रकट की. अब मेरी कोई इच्छा भी नहीं है.
अब स्थानीय पार्टियां ही चल रही हैं
आजाद ने कहा कि हमारी तैयारियां चल रही हैं. हम अभी से हिम्मत क्यों हारे. हम कांग्रेस पार्टी नहीं हैं कि कौन हमें दो सीट देगा, कौन चार देगा और कौन एक देगा, उसी में गुजारा कर लेंगे. अब स्थानीय पार्टियां ही चल रही हैं. कांग्रेस ने हमेशा स्टेट की मजबूत पार्टी को खत्म करने की कोशिश की, लेकिन अब स्थानीय पार्टी उबर चुकी हैं. आगे इनका ही भविष्य है. बीजेपी भी मजबूत पार्टी है, लेकिन उनका हाल भी कांग्रेस जैसा है, क्योंकि स्टेट में स्थानीय लीडर के मुकाबले का उनके पास कोई नेता नहीं है.
कभी गुलामी नहीं की, आजादी के साथ किया
गुलाम नबी आजाद ने कहा कि मैंने कभी गुलामी नहीं की. मैंने जब काम किया बड़ी आजादी के साथ किया. इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी, केसरी, नरसिम्हा राव, सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह किसी का भी समय हो, जब हमें लगा हमने बोला. आज बोलना लीडर्स को अच्छा नहीं लगता है. जो सोचता था वही किया और आजादी के साथ किया. जब मुझे लगा कि आजादी खतरे में है तो मैंने पार्टी छोड़ दी. कांग्रेस का मौजूदा आलाकमान सुनता नहीं था. कांग्रेस की पहले की लीडरशिप सुनती थी. मिसाल के तौर पर हमारी लड़ाई नरसिम्हा राव के साथ रही. राजेश पायलट, शरद पवार समेत 6-7 लोग थे, हम लोगों ने वर्किंग कमेटी जाना भी बंद कर दिया. इसलिए क्योंकि वो कांग्रेस को मजबूत करने के लिए कदम नहीं उठा रहे थे, लेकिन प्राइम मिनिस्टर ने कभी बुरा नहीं माना.
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