कांग्रेस ने झारखंड भेजा संगठन का आदमी
DR. Santosh Manav महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर के राजनीतिक गलियारों में तीन मित्रों की कहानी खूब सुनी और सुनाई जाती है. ये कांग्रेस के विद्यार्थी संगठन एन एस यू आई और युवा संगठन-यूथ कांग्रेस के मित्र थे. तीनों ने एक ही मंडप में अंतरजातीय-अंतरधार्मिक विवाह कर खूब सुर्खियां बटोरीं थीं. ये मित्र थे-श्रीकांत जिचकार, सुनील देशमुख और अविनाश पांडे. जिचकार इस देश के सर्वाधिक डिग्रीधारी, विद्वान राजनेता थे. वे दर्जन भर विषय में एम.ए, पीएचडी, डीलिट, आईपीएस, एमबीबीएस थे. संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. राज्यसभा, लोकसभा में रहे. राज्य में मंत्री, विधायक रहे. दुर्भाग्यवश सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया. उन दिनों इन पंक्तियों का लेखक नागपुर में था. बतौर संवाददाता उस शोक की खबर लिखने के लिए डां श्रीकांत जिचकार के निवास पर घंटों रुकना पड़ा. उस दिन असली शोक से पहली बार पाला पड़ा. देखा कि अपने नेता के लिए जनता का प्यार कैसा होता है! खैर, इस त्रिदेव के दूसरे मित्र हैं डां सुनील देशमुख. देशमुख पेशे से चिकित्सक हैं. कांग्रेस के नेता रहे. राज्य में विधायक-मंत्री रहे. भटककर बीजेपी में भी गए. सुना है, कुछ माह पूर्व पुनः कांग्रेस में लौट आए हैं. यह जो हैं अविनाश पांडे : तीसरे मित्र हैं अविनाश पांडे. कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य और पार्टी महासचिव. महासचिव तो पांच साल से हैं. कुछ साल राजस्थान के पार्टी प्रभारी रहे. ताजी खबर यह है कि राजकुमार प्रताप नारायण सिंह के कांग्रेस से त्यागपत्र देकर बीजेपी में शामिल होने के तत्काल बाद अविनाश पांडे झारखंड कांग्रेस के प्रभारी बनाए गए हैं. पांडेजी झारखंड में कांग्रेस को कितनी मजबूती दे पाएंगे, यह तो बाद की बात है. आज की बात यह है कि अविनाश पांडे मूलतः संगठन के आदमी हैं. तीन पीढ़ी पहले उत्तर प्रदेश के किसी कस्बे से एक परिवार नागपुर आया. स्वाभाविक है कि तलाश रोजी-रोटी की रही होगी. रसोइया परिवार. खाना पकाने वाले. साधारण लोग. इसी साधारण परिवार से असाधारण बने अविनाश पांडे. नागपुर विश्वविद्यालय से खूब डिग्री बटोरी. अर्थशास्त्र और लोक प्रशासन में एम.ए, एल,एल, बी. विद्यार्थी काल से एन एस यू आई में सक्रिय. यूथ कांग्रेस में आए. 1977 में नागपुर विश्वविद्यालय स्टुडेंट कौंसिल के महासचिव चुने गए. इतिहास यह है कि चाहे एन एस यू आई हो या यूथ कांग्रेस या कांग्रेस, सब में पदाधिकारी रहे. इतिहास यह है कि मनिंदरजीत सिंह बिट्टा यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बने, तो महासचिव अविनाश पांडे ही थे. जुलाई 58 में जन्मे अविनाश पांडे 64 के हो चले हैं. 64 और 32 का अंतर : 64 और 32 के अविनाश पांडे में अंतर आया है. 32 के अविनाश उग्र थे. तेवर वाले. 64 के अविनाश धीर-गंभीर हैं. कम बोलते हैं. हेडलाइन में आना पसंद नहीं. दिन- रात पार्टी का काम. तेवर का असर था कि 32 की उम्र में एक IAS अधिकारी को थप्पड़ मारने की भारी कीमत चुकाई है. यह कहानी बाद में. पहले यह जान लीजिए कि 1985 में वे पूर्व नागपुर से विधायक चुने गए. लेकिन, 90 में टिकट कट गई. टिकट इसलिए कटी कि उन्होंने बतौर विधायक नागपुर कलेक्टर को कसकर एक झापड़ खींच दिया था. पूर्व नागपुर के किसी सवाल पर कलेक्टर से विधायक अविनाश पांडे की बहस हो गई. कलेक्टर आरमुगम ने कुछ ऐसा कहा कि युवा अविनाश पांडे ने झापड़ से जवाब दिया. आरमुगम दक्षिण भारतीय दलित थे. बहुत शोर मचा. और शोर का परिणाम रहा, अविनाश पांडे का टिकट कटना. हाशिए पर चले गए अविनाश पांडे. चलो दिल्ली : महाराष्ट्र की राजनीति में अनफिट हो गए. दिल्ली की राह पकड़ी. मैदान से संगठन की राह पकड़ी. लड़ने वाले अविनाश पांडे समझाने वाले हो गए. आलाकमान का विश्वास जीता. फिर भाग्य खुले. 1985 में विधानसभा का टिकट मिला था. 90 तक विधायक रहे. फिर अठारह साल बाद 2008 में राज्यसभा का टिकट पाए , लेकिन ख्यात उद्योगपति राहुल बजाज से एक वोट से हार गए. अंततः 2010 में राज्यसभा गए. सोलह तक रहे. अब तो पांच साल से पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और वर्किंग कमेटी के मेंबर हैं. तोल-मोल के बोल : अविनाश पांडे ने कभी पार्टी नहीं बदली. वे 16 की उम्र में कांग्रेसी थे और 64 की उम्र में भी कांग्रेसी हैं. कह सकते हैं पार्टीनिष्ठ. मितभाषी. तौल कर बोलने वाले. नागपुर में तीन-चार मुलाकात है. कार्यक्रमों या उनके भगवाघर लेआउट के निवास पर. इन मुलाकातों का निष्कर्ष है-टारगेट ओरिएंटेड व्यक्ति, जो एक-एक शब्द को तौलकर बोलने में विश्वास रखते हैं . कदाचित इस सोच का आदमी कि एक शब्द से काम चल जाए, तो दो शब्द क्यों खर्च करना. वे गुटबाजी में नहीं पड़ते. जो पार्टी अध्यक्ष, उसका आदमी. कह लीजिए अध्यक्षनिष्ठ. नागपुर शहर से कांग्रेस के एक और राष्ट्रीय महासचिव हैं. नाम है मुकुल वासनिक. वासनिक इन दिनों मध्यप्रदेश के प्रभारी हैं. उनसे भी बेहतर तालमेल. प्रतिद्वंद्विता नहीं, समन्वय. कदाचित यही समन्वय की कला उन्हें कांग्रेस का बड़ा नेता बना रही है. अब देखना है कि झारखंड में अविनाश पांडे इस कला का कैसा प्रदर्शन करते हैं? उन्हें समन्वय झामुमो ही नहीं, कांग्रेस के गुटों से भी साधना है. आखिर गुटों के समूह को ही कांग्रेस कहते हैं न ? जोहार पांडेजी. भेटू या? { लेखक दैनिक भास्कर सहित अनेक अखबारों के संपादक रहे हैं. फिलहाल लगातार मीडिया में स्थानीय संपादक हैं}

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