Ranchi : झारखंड विधानसभा से गुरुवार को विपक्ष के भारी विरोध के बीच “राज्य सरकार के पदों पर आरक्षण के आधार पर प्रोन्नत सरकारी सेवकों की परिणामी वरीयता विधेयक 2022” पास हो गया. बता दें कि 25 फरवरी 2022 को कैबिनेट ने आरक्षण के आधार पर सरकारी सेवकों की प्रोन्नति के लिए विधेयक 2022 को मंजूरी दी थी. इसके तहत अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति कोटे के सरकारी सेवक पदों में आरक्षण की नीति के अनुरूप प्रोन्नति पाने वाले परिणामी वरीयता के हकदार होंगे. पदोन्नत ग्रेड में वरीयता का निर्धारण कोटि को ध्यान में लाये बिना सेवा की अवधि के आधार पर ही किया जायेगा. बता दें कि जब इस विधेयक को पास करने की प्रक्रिया चल रही थी. इस दौरान भाजपा विधायक वेल के पास आकर इसका विरोध कर रहे थे. विधेयक पास होने के बाद भाजपा विधायकों ने हेमंत सरकार पर ओबीसी विरोधी सरकार होने का नारा लगाया.
कई विधायकों ने विधेयक में संशोधन का प्रस्ताव लाया
कई विधायकों ने विधेयक में संशोधन का प्रस्ताव लाया. विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी ने कहा कि सरकार किसी भी विधेयक को प्रतिष्ठा का विषय बना लेती है और सदन मुझ पर चर्चा नहीं होता. हड़बड़ी में विधेयक के पास होने से राज्यपाल वापस कर देते हैं. इससे सरकार की किरकिरी होती है. उन्होंने कहा कि यह विधेयक जनता के भविष्य और वर्तमान को प्रभावित करने वाला है. कानून बनने के बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. इसलिए किसी भी तरह की त्रुटि को खत्म करके ही विधेयक पास किया जाए.
सरकार ओबीसी के गर्दन पर छुरी चलाने की तैयारी कर रही
विधायक अमित मंडल ने कहा कि विधेयक को प्रवर समिति के पास भेज दिया जाए. उन्होंने कहा कि यह सरकार ओबीसी के गर्दन पर छुरी चलाने की तैयारी कर रही है. ओबीसी का गर्दन काटकर एसटी-एससी को आरक्षण मिले यह में मंजूर नहीं है. सरकार बताए कि परिणामी वरीयता का डेफिनेशन क्या है. ओबीसी को एडजस्ट करने के लिए इस बिल में क्या प्रावधान है. आने वाले समय में ओबीसी कोटा के अधिकारी को प्रमोशन दिया जा सकता है या नहीं.
विधेयक को प्रवर समिति में भेजने का आग्रह
विधायक लंबोदर महतो ने भी विधेयक को प्रवर समिति में भेजने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि डॉ प्रवीण शंकर बनाम राज्य सरकार का मामला कोर्ट में लंबित है. अगर मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है, तो उससे जुड़ा मामला सदन में कैसे लाया जा सकता है. जब तक प्रवीण शंकर मामले में फैसला नहीं आ जाता, विधेयक नहीं लाना चाहिए. सरकार बताये कि 50% आरक्षण में एसटी को कितना और एससी को कितना दिया गया है.
इस बिल के माध्यम से सरकार ओबीसी का गला काटना चाहती है
विधायक मनीष जायसवाल ने कहा कि इससे जुड़ा मामला हाईकोर्ट में स्थगित है, इसलिए विधेयक को प्रवर समिति में भेजा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि ओबीसी को जो 14 परसेंट आरक्षण मिलता है, उसे इस विधेयक में निरस्त किया जा रहा है. इसके एवज में ओबीसी को क्या दिया जा रहा है, यह स्पष्ट होना चाहिए. क्या इस बिल के माध्यम से सरकार ओबीसी का गला काटना चाहती है.
पूरी तरह चर्चा करने के बाद ही सदन से पास कराये
माले विधायक विनोद सिंह ने भी बिल को प्रवर समिति में भेजने की मांग की. उन्होंने कहा कि पिछले सत्र में भी जैसे तैसे मॉब लिंचिंग विधेयक और पंडित रघुनाथ मुरमू विधेयक सरकार ने पास करा दिया था, जो राजभवन से वापस कर दिया गया. इसलिए सरकार बिल पर पूरी तरह चर्चा करने के बाद ही सदन से पास कराये.
इस बिल के लाने से रुका हुआ प्रमोशन होगा
विधेयक पर सरकार की ओर से संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि इस बिल के लाने से रुका हुआ प्रमोशन होगा. वहीं बिल के पास होने के दौरान बीजेपी के विधायक वेल में आ गए और हंगामा करने लगे. तब आलमगीर आलम ने कहा कि संविधान में ओबीसी आरक्षण का प्रावधान है, तो बताएं. उन्होंने कहा कि ये लोग ओबीसी के नाम पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं, लेकिन ओबीसी का आरक्षण 27 से 14% करने वाले यही लोग हैं.
नीरा यादव ने आरोप लगाया
विधेयक पास होने के बाद भाजपा विधायक नीरा यादव ने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार राज्य को ओबीसी मुक्त करना चाहती है. इस पर स्पीकर रवींद्र नाथ महतो ने कहा, राज्य को ओबीसी मुक्त करने का काम उसी समय शुरू हो गया था, जब इनके आरक्षण को 27% से घटाकर 14% किया गया था. बता दें कि ओबीसी आरक्षण को 27 से 14% करने का निर्णय पूर्व की बाबूलाल मरांडी सरकार में किया गया था.
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