- हाथियों के आवागमन के लिए नहीं बन पाया कॉरिडोर
- धरा का धरा रह गया एलिफेंट रेस्क्यू सेंट की प्रस्ताव
- हाथियों के खौफ से राजधानी में लग चुका है धारा 144
- चुनाव के दिन मतदाता को हाथियों ने पटक-पटक कर मार डाला था
Ranchi : वन विभाग के लिए हाथियों पर काबू पाना एक बड़ी चुनौती बन गयी है. 1 जून की रात हाथी ने विधानसभा के पास अपनी उपस्थिति दर्ज करायी. इससे लोगों में दहशत फैल गया. इससे पहले पूर्वीं सिंहभूम में मतदान करने जा रहे 65 साल के सुरेंद्रनाथ हांसदा को हाथी ने पटक-पटककर मार डाला था. पहले भी हाथियों के दहशत के कारण राजधानी के नगड़ी में धारा 144 लगायी जा चुकी है. उस वक्त वन विभाग वन संरक्षक की अध्यक्षता में चार मंडलों में वन अधिकारियों की एक समिति बनायी थी, जो इस बात की जांच कर रही थी कि झुंड से बिछड़ा एक हाथी अचानक इतना उग्र क्यों हो गया? लेकिन अब तक यह रिपोर्ट भी पूरी तरह से तैयार नहीं हो पायी.
वन विभाग के पास हाथियों को रोकने की ठोस रणनीति नहीं
वन विभाग हाथियों पर काबू पाने के लिए योजनाएं तो बना रहा है, लेकिन वह कारगर साबित नहीं हो पा रही है. इस विफल योजना की भरपाई आम लोग अपनी जान माल दे कर चुका रहे हैं. इसकी वजह यह है कि हाथियों के पुनर्वास का अभाव भी इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा दे रहा है. हाथियों के भ्रमण का रास्ता बदल गया है. छोटे-छोटे पैकेज में जंगल होने के कारण हाथी भटक रहे हैं और इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं.
नहीं बन पाया कोरिडॉर, जीआईएस मैपिंग भी हुई
हाथियों के भ्रमण के लिए कॉरिडोर (एक प्राकृतिक स्थल से दूसरे प्राकृतिक स्थल तक) तैयार किया जाना था, इसके लिए जीआईएस मैपिंग भी हुई, लेकिन यह कॉरिडोर अब तक नहीं बन पाया है. राज्य के अंदर पूर्वी सिंहभूम, प. सिंहभूम, गिरिडीह और दुमका में कॉरिडोर बनाना था. वहीं अंतरराज्यीय कॉरिडोर ओडिशा-चाईबासा, ओडिशा- सारंडा, पूर्णिया-दलमा और सरायकेला- बंगाल में बनाया जाना था. लेकिन यह योजना भी धरी की धरी रह गयी.
नहीं बन पाया एलिफेंट रेस्क्यू सेंटर
राज्य गठन के बाद से हाथियों के लिए एलिफेंट रेस्क्यू सेंटर भी बनाया जाना था, पर वह भी नहीं बन पाया. धनबाद के वन क्षेत्र और दलमा में रेस्क्यू सेंटर बनाने का प्रस्ताव था. वन विभाग के अनुसार, एक हाथी दो से पांच वर्ग किलोमीटर में भ्रमण करता है. इस हिसाब से धनबाद का वन क्षेत्र रेस्क्यू सेंटर के लिए उचित नहीं है. रेस्क्यू सेंटर में हाथियों की आवश्यकताओं को पूरा किया जाता. पूरे एरिया की फेंसिंग होती, हाथियों के लिए खाने पीने का पूरा इंतजाम होता है, हाथियों की सुरक्षा का इंतजाम होता है.
झारखंड के 555 गजराजों ने ली 500 लोगों की जान
झारखंड में अब सिर्फ 555 हाथी ही बचे हैं. जो देश के जंगली हाथियों की कुल संख्या का सिर्फ 11 फीसदी ही हैं. ये हाथी पिछले पांच साल में 500 लोगों की जान ले चुके हैं. वहीं विभिन्न कारणों से राज्य में अब तक 55 हाथियों की भी मौत हो चुकी है.
क्या कहती है डब्ल्यूटीआई की रिपोर्ट
डब्ल्यूटीआई (वाईल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया) की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और दक्षिण पश्चिम बंगाल का 21 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में हाथियों का भ्रमण होता है. मानव-हाथी संघर्ष के चलते देशभर में जितने लोगों की जान जाती है, उनमें से 45 फीसदी इसी इलाके से हैं. आंकड़े के मुताबिक, देश के जंगली हाथियों की कुल संख्या का 11 प्रतिशत हाथी झारखंड में हैं.
सबसे अधिक झारखंड में हाथियों ने ली है जान
केंद्रीय वन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, हाथियों ने पिछले पांच साल में झारखंड में सबसे अधिक 500 लोगों की जान ली है. वहीं पड़ोसी राज्य ओडिशा में 499 , असम में 385 और पश्चिम बंगाल में 358 लोगों ने हाथियों के हमले में अपनी जान गंवायी है.
55 हाथियों की भी हो चुकी है मौत
झारखंड में वन विभाग के आंकड़े के मुताबिक, अब तक 55 हाथियों की भी मौत हो चुकी है. बिजली के करंट की चपेट में आने से अब तक 25 हाथियों की मौत हो गयी, जबकि शेष हाथियों के रेलवे ट्रैक पर ट्रेनों की चपेट में आने और तस्करों की वजह से हुई है.
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