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सहकारी संघवाद की बात बहाना है, नीयत तो राज्यों के अधिकार हथियाना है

Faisal Anurag लोकतंत्र कई देशों में सत्तावाद के चलते खतरे में है और "संवैधानिक नैतिकता" के पालन की आवश्यकता है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ का यह कथन  भारत में लोकतंत्र और के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति की प्रक्रिया पर सटीक साबित होता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावों के दौर को छोड़ कर सहकारी संघवाद की मजबूती पर जोर देते रहते हैं. लेकिन राज्यों के साथ केंद्र के संबंध और व्यवहार कुछ और ही कहानी बयां करते हैं. 2018 की जुलाई में सुप्रीम">https://main.sci.gov.in/">सुप्रीम

कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने दिल्ली और उपराज्यपाल के विवाद पर संवैधानिक व्याख्या को स्पष्ट किया. लेकिन केंद्र सरकार का THE GOVERNMENT OF NATIONAL CAPITAL TERRITORY OF DELHI (AMENDMENT) BILL, 2021 एक बार फिर संवैधानिक नैतिकता के पालन का सवाल खड़ा कर रहा है. दुनिया के दो बड़े संस्थानों फ्रीडम हाउस और वी-डैम की भारत में लोकतंत्र की स्थिति पर जारी रिपोर्ट को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए विदेशी संस्थानों पर सवाल खड़े किये. फ्रीडम हाउस ने भारत को आंशिक स्वतंत्र बताया था और वी डैम ने भारत में चुनावी निरंकुशता की बात की थी. इन रिपोर्टों को बनाने में जिन मानकों का इस्तेमाल किया जाता है, उनमें देशों में संवैधानिक नैतिकता, अधिकारों के विकेंद्रीकरण जैसे सवाल भी अहम होते हैं. जम्मू व कश्मीर से धारा 370 को हटाते हुए पूर्ण राज्य के अस्तित्व को ही खत्म कर दिया गया. वहां भी जम्मू कश्मीर में सत्ता को राज्यपाल में अंतर्निहित कर दिया गया. भारत में पहली बार न केवल एक पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म कर दिया गया, बल्कि शासन के स्वरूप में भी बुनियादी बदलाव किये गये. अब दिल्ली में संविधान पीठ की स्पष्टता के बाद उपराज्यपाल को ही कार्यकारी और सक्रिय अधिकार दिये जाने का विधेयक संसद में विचार के लिए पेश किया गया है. 2019 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात करनेवाली भारतीय जनता पार्टी की ही केंद्र सरकार का यह कदम एक चुनी गयी सरकार की गरिमा को कलंकित करने जैसा है. यही नहीं, यह दिल्ली के मतदाताओं का भी अपमान है. यहां तक कि तीन म्युनिसिपल निगमों के अधिकार को भी एक तरह से कम किये जाने की बात की जा रही है. सवाल उठता है कि दिल्ली के मतदाताओं ने जिन अपेक्षाओं के आधार पर किसी एक दल को सरकार में जाने का जनादेश दिया हो, उनके चयन के अधिकार का क्या भविष्य है? भारत में राज्यपाल या उपराज्यपाल केंद्र के इशारे पर ही काम करते हैं. और केजरीवाल तथा मोदी सरकार के बीच के संबंध कभी मधुर भी नहीं रहे हैं. हालांकि 2018 के बाद से अरविंद केजरीवाल ने केंद्र के साथ टकराव को कम किया था. दिल्ली पर एकाधिकार का भारतीय जनता पार्टी का सपना नया नहीं है. तो क्या केंद्र के इस कदम को दिल्ली में असीमित अधिकार हासिल करने का प्रयास नहीं माना जाना चाहिए. 113 दिन पहले जब किसानों ने दिल्ली के लिए कूच किया था तो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कैंप जेल बनाने के लिए दिल्ली सरकार के नियंत्रण वाले 18 स्टेडियमों की मांग की थी. अरविंद केजरीवाल ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. ऐसा जान पड़ता है कि अपने आदेशों पर केजरीवाल सरकार का अमल नहीं करना केंद्र सह नहीं पाया है. यह संदेश तो देश के उन राज्यों के लिए भी है, जहां भाजपा की सरकार नहीं है. मोदी सरकार का सपना है कि देश के सभी राज्यों में उसकी ही पार्टी की सरकार हो. अपने इस इरादे को राज्यों के चुनाव प्रचार में खुल कर प्रकट भी किया जाता रहा है. बंगाल और केरल के चुनाव प्रचार में भाजपा के नेता इसे जोर-शोर से कह भी रहे हैं. तो क्या यह माना जाये कि लोकतंत्र में मतदाताओं की अलग पसंद का दौर जल्द ही खत्म कर दिया जायेगा. ब्राउन यूनिवर्सिटी के अध्यापकों और छात्रों से बात करते हुए राहुल गांधी ने कहा है कि भारत में लोकतंत्र का हाल दुनिया के संस्थानों की रेटिंग से भी ज्यादा खराब है. भारत में राज्य और केंद्र के संबंध 1978 के बाद से से ही टकराव के अनेक दौर देख चुके हैं. 2014  में नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर संबंधों की वकालत करते हुए सहकारी संघवाद की मजबूती को लोकतंत्र के के लिए जरूरी बताया. इसे कई बार वे दुहरा चुके हैं. लेकिन देश के किसी भी बड़े फैसले में सहमति नहीं लेने का आरोप भी कई राज्यों की सरकारें केंद्र पर लगाती रही हैं. जीएसटी को लेकर हाल ही में सात राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने केंद्र की तीखी आलोचना की थी. इसी तरह कृषि कानूनों के खिलाफ भी कई राज्य सरकारों ने केंद्र से अलग रुख दिखाया. पंजाब सहित तीन अन्य राज्यों की विधानसभाओं ने केंद्रीय कानून के खिलाफ प्रस्ताव भी पारित किये. इससे जाहिर होता है कि सहकारी संघवाद की बात करना एक पहलू है और राज्यों के संवैधानिक अधिकारों में कटौती दूसरी बात. भाजपा ये दोनों ही काम बखूबी कर रही है. इसे भी देखें- पीएम">https://lagatar.in/pm-narendra-modi-said-in-the-rally-didi-has-a-clear-message-from-the-people-of-purulia-and-jungle-mahal-khela-cholbe-na/39016/">पीएम

नरेंद्र मोदी ने रैली में कहा, दीदी को पुरुलिया और जंगल महल के लोगों का साफ संदेश है-खेला चोलबे ना

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