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रात में बैठी अदालत, तीस्ता सीतलवाड़ को मिली सुप्रीम कोर्ट से राहत, हाईकोर्ट के आदेश पर रोक

New Delhi : सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. रात 9.15 बैठी तीन जजों की बेंच ने तीस्ता को एक हफ्ते का अंतरिम राहत देते हुए कहा है कि हम गुजरात हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हैं. गुजरात हाईकोर्ट ने शनिवार को तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत देने से इनकार कर दिया था और उन्हें तुरंत सरेंडर करने का आदेश दिया था. वहीं, हाईकोर्ट से मिले झटके के बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंची थीं, जहां शनिवार रात जमानत याचिका पर सुनवाई की गई और उन्हें अंतरिम राहत प्रदान की गई. पहले शीर्ष कोर्ट की दो जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई की, लेकिन दोनों जजों में असहमति के बाद मामले को तीन जजों की बेंच के पास भेज दिया गया. पीठ में जस्टिस बीआर गवई, एएस बोपन्ना और दीपांकर दत्ता शामिल थे.

हिरासत में लेने की इतनी जल्दी क्यों?

तीस्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्हें पिछले साल 22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दी थी और उन्होंने जमानत की किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि वह 10 महीने से जमानत पर थीं ऐसे में हिरासत में लेने की इतनी जल्दी क्यों? कोर्ट ने पूछ कि अगर अंतरिम संरक्षण दिया गया तो क्या आसमान गिर जाएगा? उच्च न्यायालय ने जो किया है, उससे हम आश्चर्यचकित हैं. इतनी चिंताजनक जल्दबाजी किसलिए?

सात दिन का समय क्यों नहीं दिया जाना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि किसी व्यक्ति को फैसले को चुनौती देने के लिए सात दिन का समय क्यों नहीं दिया जाना चाहिए, जबकि वह व्यक्ति इतने लंबे समय से बाहर है. इस पर एसजी ने कहा कि जो दिखता है, उससे कहीं ज्यादा कुछ है. इस मामले को जिस सरलता के साथ सामने रखा जा रहा है, उससे कहीं अधिक है. यह उस व्यक्ति का सवाल है, जो हर मंच का अपमान कर रहा है. एसजी ने कहा कि एसआईटी (2002 गोधरा दंगा मामले पर) सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई थी और इसने समय-समय पर रिपोर्ट दाखिल की.

दो जजों की बेंच की राय अलग-अलग

इससे पहले 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने के मामले में तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम संरक्षण देने पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की राय अलग-अलग रही. पीठ ने कहा, `जमानत देने के सवाल पर हमारे बीच असहमति है. इसलिए हम चीफ जस्टिस से इस मामले को बड़ी पीठ को सौंपने का अनुरोध करते हैं. इसके बाद न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने विशेष सुनवाई के तहत मामले की सुनवाई की और मुख्य न्यायाधीश से मामले को बड़ी पीठ को सौंपने का आग्रह किया.

हाईकोर्ट ने तत्काल सरेंडर करने को कहा था

इससे पहले शनिवार को गुजरात उच्च न्यायालय ने सीतलवाड़ की नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी थी. न्यायमूर्ति निर्जर देसाई ने उन्हें तत्काल आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया, क्योंकि वह पिछले साल सितंबर में शीर्ष अदालत से अंतरिम जमानत मिलने के बाद जेल से बाहर हैं. अदालत ने अपने आदेश में कहा था, `चूंकि आवेदक उच्चतम न्यायालय की ओर से दी गई अंतरिम जमानत पर बाहर है, इसलिए उसे तत्काल आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है. उन्हें जमानत पर रिहा करने से यह गलत संकेत जाएगा कि एक लोकतांत्रिक देश में सब कुछ किया जा सकता है, भले ही कोई व्यक्ति तत्कालीन सत्ता प्रतिष्ठान को सत्ता से बेदखल करने और तत्कालीन मुख्यमंत्री की छवि को बदनाम करने के लिए इस हद तक चला जाए कि उसे जेल हो जाए. क्या ऐसे व्यक्ति को जमानत पर रिहा किया जा सकता है.` उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह दूसरों को भी इसी तरह से कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करेगा.
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