दुकानदारों ने कहा-अगली बार चंदा लगा तो आएंगे, नहीं तो दुकान लगानी मुश्किल
Shubham Kishore
Ranchi : रांची के धुर्वा क्षेत्र में लगने वाले ऐतिहासिक जगन्नाथ मेला में हर साल करोंड़ों का कारोबार होता है. झारखंड समेत आसपास के कई राज्य से कारोबारी यहां आते हैं और मेला में अपनी दुकान लगाते हैं. इन दुकानदारों की वजह से ही मेला की शोभा बढ़ती है. मगर इस साल मेला में दुकान लगाने वाले कारोबारी मायूस हैं और अगले साल से दुकान नहीं लगाने की बात कह रहा है. इसका कारण है दुकानदारों से दुकान लगाने के एवज में वसूली जा रही मोटी रकम. मेला क्षेत्र में दुकान लगाने वाले दुकानदारों का कहना है पहले चंदा के रूप में कुछ रकम ली जाती थी, मगर इस साल मोटी रकम वसूली जा रही है. पूरा दिन रात मेहनत करने के बाद भी बचत न के बराबर हो रही है. यही स्थिति रही तो अगले साल से दुकान नहीं लगाएंगे.
बता दें कि पहले जगन्नाथपुर मेला का टेंडर नहीं होता था. चंदे के रूप में दुकानदारों से कुछ रकम वसूली जाती थी, मगर इस साल मेला परिसर का टेंडर कर दिया गया है. आरएस इंटरप्राइजेज ने 75 लाख में टेंडर लिया है. अब आरएस इंटरप्राइजेज के द्वारा दुकानदारों से मनमाने तरीके से पैसे की वसूली की जा रही है. इससे दुकानदार नाराज हैं. इस वर्ष 3000 से अधिक दुकान और लगभग 80 झुले लगाए गए हैं. इसके अलावा फुटपाथ और फेरिवाले अगल से हैं.
जगन्नाथपुर मेला में दुकान के लिए लगने वाले दर
- मौसीबाड़ी क्षेत्र में 1500 से 2000 रुपये रनिंग फिट
- मध्य विद्यालय के पीछे फील्ड में 1000 रुपये रनिंग फीट
- झूला में परसेंटेज लिया जा रहा
- ठेला वालों से 3000 से 20000 रुपये
- फेरी वालों से 50 से 300 रुपये प्रतिदिन
क्या कहा दुकानदारों ने
पुरुलिया के गोकुल साव जिन्होंने मिठाई की दुकान लगाई है, उनसे 50 हजार रुपय लिए गए है. पिछले 20 वर्षों से वह इस मेले में आ रहे हैं और उनसे चंदे के रूप में 1 से 2 हजार रुपये लिए जाते थे. लेकिन इस बार पैसे भी ज्यादा लगे हैं और खरीदारी भी नहीं हो रही है. अगली बाद अगर चंदा लगा तो आएंगे वर्ना नहीं आयेंगे.
कोलकाता से आये मो. ताउस ने कहा कि वह 20-25 साल से पारंपरिक जाल की दुकान लगा रहे हैं. लेकिन इस साल जगह का अधिक पैसा लिया गया है. हर साल 2 से 3 हजार लगता था, जो इस साल 24 हजार लगा है. साथ ही बारिश नहीं होने के कारण बिजनेस भी नहीं हुआ है. ऐसे में अगले साल कैसे आयेंगे.
असम से आकर हैंडीक्राफ्ट की दुकान लगाने वाले डोर्बेशली ने कहा कि वह पिछले 6 सालों से इस मेले में आ रहे हैं. लेकिन इस साल दुकान लगाने के लिए 20 हजार लिए गए और उन्हें नुकसान से साथ लौटना पड़ेगा. अगले साल कम चांस है कि वह इस मेले में आएं.
सामाजिक कार्यकर्ता दीपेश निराला ने मेले को कॉमर्शियलाइज करने पर आवाज बुलंद करते हुए कहा कि वर्ष 1691 से अब तक के इतिहास में पहली बार 75 लाख से अधिक रुपए का टेंडर करवाकर वोकल फॉर लोकल पर चोट किया गया है. इस मेले में हस्तकरघा, पारंपरिक झारखंड की औषधि और वन उत्पाद, सूप-दौरा, टोकरी और बांस के दुकान नहीं दिख रहे हैं, क्योंकि उनसे वसूली की जा रही है. मेले के इतिहास को बचाना है तो कॉमर्शियलाइज बंद करना होगा.
जगन्नाथ मंदिर के निर्माता ठाकुर एनी नाथ शाहदेव के प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी ठाकुर प्रवीर नाथ शाहदेव ने कहा कि ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने झारखंड के विभिन्न विचारधाराओं को जोड़ने का काम किया और 332 वर्ष से झारखंड जीवन चक्र भी इससे जुड़ा रहा है. इस परंपरा को बाधित किया गया है. अलग नियम लाकर लोगों को नाराज किया गया है और आने वाले मेला पर संकट मंडरा रहा है.
क्या कहा- एडीएम लॉ एंड ऑर्डर राजेश्वर आलोक ने
जगन्नाथपुर मंदिर न्यास समिति और एडीएम लॉ एंड ऑर्डर राजेश्वर आलोक ने कहा कि मंदिर के फायदे के लिए ऐसा कदम उठाना पड़ा. पिछले साल तक मंदिर को 6 लाख ही मिलता था और 20 से 25 लाख असामाजिक तत्व के द्वारा वसूला जाता था. अब टेंडर की राशि मंदिर न्यास समिति के खाते में जाएगा, जिससे मंदिर का विकास कार्य किया जाएगा. साथ ही यहां के पंडितों के लिए वेतन की व्यवस्था की जाएगी, जिससे वो केवल दान पर आश्रित ना रहें. वहीं मनमाने ढंग से मेले में पैसे वसूली के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमें शिकायत मिली है. जिन्हें टेंडर मिला है, उन्हें ठेले और छोटे दुकानदारों से 100 रुपस प्रति दिन लेने को कहा गया था. हम लोग प्रयास कर रहे कि मामले का जल्द निपटारा किया जाए. वहीं अगले वर्ष भी टेंडर कराने के सवाल पर उन्होंने कहा कि अगले वर्ष भी टेंडर होगा. जो अधिकारी रहेंगे वो करवाएंगे. इस बार जो कमी रही है, उसे ठीक किया जाएगा.