Ranchi : झारखंड की मुख्य सचिव अलका तिवारी ने रांची में 16वें वित्त आयोग के साथ बैठक में राज्य की अनोखी समस्याओं और चुनौतियों को उजागर किया. उन्होंने कहा कि झारखंड प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होने के बावजूद अल्प आय वाला राज्य है. राज्य की विकास यात्रा में कई बाधाएं और चुनौतियां हैं, जिन्हें दूर करने के लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता है.
झारखंड के कुल क्षेत्रफल का तीस प्रतिशत भू-भाग वनों से आच्छादित है. राज्य की अधिकांश बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं को वन/पर्यावरण स्वीकृति की सख्त प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिससे परियोजना में देरी होती है और परियोजना की लागत बढ़ जाती है. झारखंड खनिजों से समृद्ध है और देश के कुल खनिज का लगभग 40 प्रतिशत खनिज यहां पाया जाता है. हालांकि, कोयला कंपनियों पर राज्य का भूमि मुआवजा, रॉयल्टी आदि मद में बहुत बड़ी देनदारियां बकाया हैं. भूमि क्षरण, वायु/जल प्रदूषण, कृषि उत्पादकता, स्वास्थ्य जैसी समस्याओं के अतिरिक्त स्थानीय लोगों को विस्थापन की कीमत भी चुकानी पड़ रही है.
जीएसटी का प्रभाव
जीएसटी उपभोक्ता राज्यों के लिए फायदेमंद है, लेकिन उत्पादक राज्य के रूप में झारखंड को वर्ष 2025-26 से 2029-30 तक कुल 61,677 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है. यह राज्य की वित्तीय स्थिति के लिए एक बड़ी चुनौती है. राज्य में 39 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजाति/अनुसूचित जाति/आदिम जनजाति की है. इतनी बड़ी आबादी महत्वपूर्ण सामाजिक सूचकांकों विशेषकर स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के मामले में काफी पीछे है. राज्य सरकार समतामूलक विकास के लिए कई स्तरों पर कार्य कर रही है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है.
आयोग के समक्ष रखीं ये मांगें
मुख्य सचिव ने आयोग से आग्रह किया है कि राज्य की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए वित्तीय सहायता और संसाधनों के आवंटन में झारखंड के साथ न्याय किया जाए. उन्होंने 50 प्रतिशत वर्टिकल डिवोल्यूशन का सुझाव दिया और हॉरिजेन्टल डिवोल्यूशन के फार्मूला में जनसंख्या, विकसित राज्य से आय का अंतर, वन एवं खुले वन तथा जीएसटी के कारण हो रही क्षति को सम्मिलित करने पर बल दिया.