Satya Sharan Mishra
झारखंड समेत पूरे देश में कोरोना भयावह रूप ले चुका है. हर दिन संक्रमितों के मिलने और मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. हम कह रहे हैं सरकार लापरवाह और सिस्टम गैरजिम्मेदार है. कोरोना संक्रमण बढ़ने, अस्पतालों में बेड नहीं मिलने और श्मशानों-कब्रिस्तानों में लगी वेटिंग लिस्ट के लिए सरकार और सिस्टम जिम्मेदार है. सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि महामारी के इस काल में लोगों की जान बचाए. हम इस महामारी से लड़ने के लिए पूरी तरह सरकार के भरोसे बैठे हैं. लेकिन क्या हमें अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत नहीं है? क्या संक्रमण के भयावह रूप लेने के पीछे हम जिम्मेदार नहीं हैं? क्या हमारी लापरवाही से कोरोना मौत का यह तांडव नहीं मचा रहा है?
याद करिए देश में जब सिर्फ 7 मौत हुई थी तो लगा था लॉकडाउन
याद करिये 22 मार्च 2020 का वह दिन जब देश में कोरोना संक्रमण से सिर्फ 7 लोगों की मौत हुई थी 391 लोग संक्रमित मिले थे. हम और आप कितना डर गये थे. उस वक्त झारखंड में तो एक भी एक्टिव केस नहीं था. लेकिन महामारी के डर से हमने जनता कर्फ्यू को सफल बनाने के लिए अपने दुकानों को बंद कर दिया, घरों में कैद हो गये. फिर 22 मार्च 2020 को हमने ताली और थाली भी बजाया. इसके बाद 24 मार्च को 21 दिन की लॉकडाउन की घोषणा हुई. इस बीच 5 अप्रैल को हमने दिये जलाये. 14 अप्रैल 2020 को फिर से 3 मई तक के लिए लॉकडाउन लगाया गया.
14 अप्रैल तक झारखंड में कोरोना के सिर्फ 24 केस थे और दो लोगों की मौत हुई थी, जबकि उस वक्त तक देश में कुल संक्रमितों की संख्या 10815 थी. संक्रमण बढ़ता देख 17 मई और फिर 31 मई तक लॉकडाउन बढ़ाया गया. इस दौरान हमने सरकार के हर निर्देश का पालन किया. अपनी और देश की आर्थिक हालत खराब होने के बावजूद दुकान और प्रतिष्ठान बंद रखी. सड़कों पर नहीं निकले. मास्क, सैनिटाइजर का उपयोग और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन पूरी निष्ठा के साथ किया.
अनलॉक हुआ तो हम हो गये लापरवाह
हमने सामाजिक दूरी बढ़ाकर और कोविड गाइडलाइन का पालन कर कोरोना पर काफी हद तक कंट्रोल कर लिया. तब तक देश की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी थी. लोगों की आर्थिक हालत बिगड़ने लगी, तब 8 जून 2020 से अनलॉक शुरू हुआ. धीरे-धीरे बाजारों की रौनक लौटने लगी और हम लापरवाह होने लगे. हम तो भूल ही चुके थे कि कोरोना महामारी का संकट अभी सिर पर मंडरा रहा है, हम और आप लापरवाह हो गये. हम मास्क भूल चुके थे. सोशल डिस्टेंसिंग भूल गये. बीमार होने पर खुद को क्वारेंटाइन करना भूल गये. सैनिटाइजर का प्रयोग छोड़ दिया.
क्या हम कर रहे हैं कोविड गाइडलाइन का पालन ?
क्या सरकार ने आदेश जारी किया था कि कोरोना महामारी का संकट टल गया है. आप सोशल डिस्टेंसिंग खत्म कर दीजिए. बाजारों में बेखौफ होकर बिना मास्क के घूमिये. पब्लिक ट्रांसपोर्ट में ठूंस-ठूंस कर लोगों को बैठाइये, लेकिन हम और आप लापरवाह हो गये. हमें लगा हमने कोरोना से जंग जीत ली है. हम होली, दिवाली मनाने लगे. कुंभ में हजारों-हजार की तादात में आस्था की डुबकी मनाने लगे. मंदिरों-मस्जिदों के द्वार खुले तो जत्थे में मत्था टेकने भगवान के दर पर पहुंच गये.
मास्क तो बस डर से लगा रहे हैं लोग
अब जब दोबारा वह महामारी काल बनकर लौट आया है, तब भी हम नहीं चेत रहे हैं. हम सड़कों पर बेवजह बेखौफ घूम रहे हैं. चौक-चौराहों पर मास्क इसलिए लगा रहे हैं कि पुलिस की चेकिंग में न पकड़े जाएं. जिन ऑटो को 2 सवारी बैठाने का आदेश था वे अब भी 4-5 सवारी बैठा रहे हैं. झारखंड सरकार ने रात 8 बजे दुकान बंद कर देने का आदेश दिया है. लेकिन दुकानें बंद नहीं कर रहे. सिर्फ आधे शटर गिराकर प्रशासन की आंखों में धूल झोंक रहे हैं. हमारी यही लापरवाही हमपर भारी पड़ रही है.
महामारी से लड़ने में सरकार का करें सहयोग
जब हम और आप लापरवाह हो सकते हैं तो सरकार क्यों नहीं हो सकती. जिस तरह हमने सोचा कि अब कोरोना का संकट खत्म हो गया. वैसे ही सरकारों ने भी सोचा, अब हमने कोरोना से जंग जीत ली. जब कोरोना के केस कम होने लगे तो सरकार का इस तरफ से ध्यान हट गया. लेकिन अब दोबारा संकट लौटता देखकर सरकार अपने तरफ से इससे लड़ने की हर संभव कोशिश कर रही है. सरकार हमें अस्पतालों में बेड, दवाइयां और इंजेक्शन ही मुहैया करा सकती है. ऐसे समय में हमें भी पिछले साल की तरह इस बार भी सरकार का सहयोग देकर इस महामारी को खत्म करने के लिए आगे आना होगा.
एक दिन में मिल रहे सवा दो लाख से ज्यादा संक्रमित
आंकड़ों को देखिये तब पता चलेगा कोरोना ने कितना भयावह रूप ले लिया है. जब सिर्फ 7 लोगों की मौत हुई थी, 391 लोग देशभर में कोरोना पॉजिटिव पाये गये थे तब लॉकडाउन लगाया गया था. अब तो एक दिन में 2 लाख 16 हजार से ज्यादा केस सामने आ रहे हैं. रांची में एक दिन में साढ़े 3 हजार संक्रमित मिल रहे हैं और 28 लोगों की मौत हो रही है. ऐसे में कोरोना को कंट्रोल करने का सरकार के पास एकमात्र विकल्प लॉकडाउन है.
लॉकडाउन के लिए सरकार को मजबूर न करें
लॉकडाउन क्या होता है. यह हम सबने पिछले साल देखा है. देश और राज्य की आर्थिक स्थिति क्या हो गयी थी सबको पता है. आज भी हम खराब आर्थिक स्थिति से उबर नहीं पाये हैं. ऐसे में अगर फिर से लॉकडाउन लगा तो लोग दाने-दाने को मोहताज हो जाएंगे. सरकारें लॉकडाउन का दर्द समझती है. हम और आप दोबारा उसी आर्थिक संकट के दौर में वापस न जाएं, यही सोचकर सरकार लॉकडाउन से बच रही है. लेकिन स्थिति दिनोदिन बिगड़ती जा रही है. दोबारा लॉकडाउन न हो और हम इस महामारी से जंग जीतें, इसलिए एक जिम्मेदार नागरिक की तरह कोविड गाइडलाइन का पालन करें और संभव हो तो घर में रहें, सुरक्षित रहें.