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साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट की समिति से कहा, पेगासस से सेंधमारी के ठोस सबूत मिले

 NewDelhi :  पेगासस से जुड़े मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति के समक्ष एक हलफनामा दायर किया गया है, जिसमें दो साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने बताया है कि उन्हें याचिकाकर्ताओं के फोन में पेगासस की सेंधमारी के ठोस सबूत मिले हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दरअसल कुछ याचिकाकर्ताओं ने अपने फोन की फॉरेंसिक जांच के लिए कुछ तकनीकी विशेषज्ञों की मदद ली थी. इनमें से एक विशेषज्ञ ने बताया कि उसने सात लोगों (याचिकाकर्ता) के आईफोन का विश्लेषण किया, जिनमें से दो फोन में पेगासस से सेंधमारी की गई थी.  विशेषज्ञ ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हलफनामा पेश करते हुए कहा कि एक फॉरेंसिक टूल का इस्तेमाल करके इन दो फोन से साक्ष्य जुटाये  गये.

पेगासस मालवेयर ने डेटाबेस से वायरस एंट्री को डिलीट करने की कोशिश की

इन दो लोगों के फोन से डेटा डिलीट करने के बाद साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ को पता चला कि इनमें से एक याचिकाकर्ता के फोन में अप्रैल 2018 में पेगासस से सेंधमारी की गई थी जबकि अन्य फोन में जून और जुलाई 2021 के बीच कई बार सेंधमारी की गई थी. पहले साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा,  मार्च 2021 में पेगासस के जरिये कई बार सेंधमारी से पता चलता है कि पेगासस मालवेयर ने डेटाबेस से वायरस एंट्री को डिलीट करने की कोशिश की.’ मामले के छह याचिकाकर्ताओं के एंड्रॉयड फोन का विश्लेषण करने वाले अन्य साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ ने कहा, ‘उन्हें चार फोन में इस मालवेयर के अलग-अलग संस्करण (वर्जन) मिले जबकि बाकी बचे दो फोन में पेगासस के मूल वर्जन के वेरिएंट के साक्ष्य मिले हैं.’

यह मालेवयर काफी खतरनाक है

एक साइबर सुरक्षा ने कहा,  हमारे पास एंड्रॉयड के लिए एम्यूलेटर है, जिसके जरिये हमने वेरिफाई किया है कि इसमें मालवेयर के सभी वेरिएंट हैं. हमें यह भी पता चला है कि यह मालेवयर काफी खतरनाक है. यह न सिर्फ आपके चैट पढ़ सकता है बल्कि इसकी पहुंच आपके वीडियो तक भी है. यह किसी भी समय आपके फोन के ऑडियो या वीडियो को शुरू कर सकता है.’ बता दें कि जुलाई 2021 में द वायर  सहित मीडिया समूहों के अंतरराष्ट्रीय कंसोर्टियम ने ‘पेगासस प्रोजेक्ट’ नाम की पड़ताल के तहत यह खुलासा किया था कि दुनियाभर में अपने विरोधियों, पत्रकारों और कारोबारियों को निशाना बनाने के लिए कई देशों ने पेगासस का इस्तेमाल किया था. इस कड़ी में 18 जुलाई 2021 से द वायर  सहित विश्व के 17 मीडिया संगठनों ने 50,000 से ज्यादा लीक हुए मोबाइल नंबरों के डेटाबेस की जानकारियां प्रकाशित करनी शुरू की थीं, जिनकी पेगासस स्पायवेयर के जरिये निगरानी की जा रही थी या वे संभावित सर्विलांस के दायरे में थे.

सूची में 300 सत्यापित भारतीय नंबर हैं

इस पड़ताल के मुताबिक, इजरायल की एक सर्विलांस तकनीक कंपनी एनएसओ ग्रुप के कई सरकारों के क्लाइंट्स की दिलचस्पी वाले ऐसे लोगों के हजारों टेलीफोन नंबरों की लीक हुई एक सूची में 300 सत्यापित भारतीय नंबर हैं, जिन्हें मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, न्यायपालिका से जुड़े लोगों, कारोबारियों, सरकारी अधिकारियों, अधिकार कार्यकर्ताओं आदि द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है. भारत में इसके संभावित लक्ष्यों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी , राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर तत्कालीन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, अब सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव (वे उस समय मंत्री नहीं थे) के साथ कई प्रमुख नेताओं के नाम शामिल थे. तकनीकी जांच में द वायर  के दो संस्थापक संपादकों सिद्धार्थ वरदाजन और एमके वेणु, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, अन्य पत्रकार जैसे सुशांत सिंह, परंजॉय गुहा ठाकुरता और एसएनएम अब्दी, मरहूम डीयू प्रोफेसर एसएआर गिलानी, कश्मीरी अलगाववादी नेता बिलाल लोन और वकील अल्जो पी. जोसेफ के फोन में पेगासस स्पायवेयर उपलब्ध होने की भी पुष्टि हुई थी.

सेवानिवृत्त जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में   स्वतंत्र जांच समिति गठित

पेगासस प्रोजेक्ट के सामने आने के बाद देश और दुनिया भर में इसे लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था. भारत में भी मोदी सरकार द्वारा कथित जासूसी के आरोपों को लेकर दर्जनभर याचिकाएं दायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर 2021 को सेवानिवृत्त जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र जांच समिति गठित की थी. उस समय मामले की सुनवाई करते हुए सीजेआई एनवी रमना ने कहा था कि सरकार हर वक्त राष्ट्रीय सुरक्षा की बात कहकर बचकर नहीं जा सकती. इसके बाद अदालत ने इसकी विस्तृत जांच करने का आदेश दिया था. इस तीन सदस्यीय तकनीकी समिति में गांधीनगर में राष्ट्रीय फॉरेंसिक साइंसेज यूनिवर्सिटी के डीन डॉ. नवीन कुमार चौधरी, केरल की अमृता विश्व विद्यापीठम के प्रोफेसर डॉ. प्रभारन पी. और आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर अश्विन अनिल गुमस्ते शामिल हैं. इस साल दो जनवरी को तीन सदस्यीय समिति ने एक विज्ञापन जारी कर उन लोगों से सात जनवरी दोपहर 12 बजे से पहले समिति के समक्ष फोन जमा करने का आह्वान किया था, जिनका दावा है कि उनके डिवाइस में पेगासस से सेंधमारी की गई.   द वायर  से साभार   [wpse_comments_template]

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