Ranchi : झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूजे) में शिक्षा विभाग तथा अर्थशास्त्र एवं विकास अध्ययन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित दो-सप्ताहिक आईसीएसएसआर-प्रायोजित क्षमता-विकास कार्यक्रम सामाजिक विज्ञान में मात्रात्मक एवं गुणात्मक शोध विधियां के बारहवें दिन की शुरुआत प्रेरणादायी और चिंतनपूर्ण वातावरण में हुई.दिन का शुभारंभ एक प्रतिभागी द्वारा प्रस्तुत शांतिपूर्ण प्रार्थना सर्वे सुखिनो भवन्तु” और एक अन्य प्रतिभागी द्वारा प्रस्तुत प्रेरक विचार से हुआ.
उद्धरण विधियों एवं शैक्षणिक लेखन पर सारगर्भित व्याख्यान
प्रथम सत्र का संचालन डॉ. आलोक कुमार गुप्ता, सह-प्राध्यापक एवं डीन, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेस, सीयूजे ने किया. उन्होंने शोध में उद्धरण शैलियों की महत्ता, विश्वसनीय स्रोतों की पहचान तथा शैक्षणिक ईमानदारी बनाए रखने के उपायों पर विस्तृत और प्रभावशाली व्याख्यान दिया.
डॉ. गुप्ता ने बताया कि उच्च शिक्षा में शिक्षक का मूल्यांकन केवल उनके अध्यापन से नहीं, बल्कि उनके शोध कार्य, लेखन और प्रकाशन से भी होता है. उन्होंने प्रतिभागियों को नियमित लेखन की आदत विकसित करने और हर वर्ष कम से कम एक गुणवत्तापूर्ण शोध-पत्र प्रकाशित करने का लक्ष्य निर्धारित करने की सलाह दी. उन्होंने कहा अच्छा लेखन आपको ज्ञान से कभी दूर नहीं होने देता.
भारतीय ज्ञान परंपरा पर डॉ. तपन बसंतिया का विमर्श
द्वितीय सत्र में डॉ. तपन कुमार बसंतिया, प्रोफेसर एवं डीन, सीयूजे ने भारत की विविध ज्ञान परंपराओं—संस्कृत, जनजातीय, स्थानीय, भारतीय भाषाओं और दार्शनिक धाराओं—की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला. उन्होंने तक्षशिला और नालंदा जैसे प्राचीन शिक्षण केंद्रों के महत्वपूर्ण योगदान का उल्लेख किया.
सत्र के दौरान उन्होंने मूल्य-आधारित शिक्षा, भारतीय बौद्धिक परंपराओं की समकालीन उपयोगिता तथा आत्मनिर्भर भारत, वोकल फॉर लोकल, विकसित भारत जैसे अभियानों से इनके संबंध पर चर्चा की.
महिला गुरुओं के कम प्रतिनिधित्व पर पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि यह ऐतिहासिक संरचनाओं का परिणाम है, न कि विदुषी महिलाओं की अनुपस्थिति का. सत्र संवादात्मक रहा और प्रतिभागियों ने सक्रिय रूप से विचार साझा किए.
पुस्तकालय उपयोग पर व्यवहारिक प्रशिक्षण
तृतीय सत्र में डॉ. एसके पांडेय, विश्वविद्यालय पुस्तकालयाध्यक्ष, सीयूजे ने “शिक्षण एवं शोध के लिए पुस्तकालय का उपयोग: व्यवहारिक परिचय” विषय पर व्याख्यान दिया. उन्होंने ‘वन नेशन, वन सॉल्यूशन’ की अवधारणा तथा शोधनगंगा, शोधशुद्धि, शोधचक्र जैसे मुक्त शैक्षिक संसाधनों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला.सत्र के अंतर्गत प्रतिभागियों ने विश्वविद्यालय पुस्तकालय और उसके डिजिटल रिपॉज़िटरी का भ्रमण भी किया. उन्होंने रिमोट एक्सेस सेवाओं तथा शोध-सहायक संसाधनों की समृद्धि की सराहना की.
प्रतिभागियों के शोध प्रस्तुतिकरण और समृद्ध संवाद
समापन सत्र में प्रतिभागियों ने अपने शोध विचारों एवं कार्यप्रणालीगत प्रारूपों को प्रस्तुत किया. डॉ. शशि सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर, शिक्षा विभाग, ने प्रस्तुतियों पर रचनात्मक सुझाव दिए. उनकी मार्गदर्शक टिप्पणियों ने प्रतिभागियों के शोध दृष्टिकोण को और अधिक परिष्कृत किया.दिन का समापन एक प्रेरक सफलता-कथा के साथ हुआ, जिसके पश्चात कार्यक्रम का अंत राष्ट्रीय गान से किया गया.
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