Kaushal Anand
Ranchi : विधानसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा को झारखंड में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. तीन-तीन बड़े आदिवासी चेहरा के रहते हुए वह झारखंड की पांचों आदिवासी आरक्षित सीट हार चुकी है. प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी राज्य के बड़े आदिवासी चेहरे के रूप में जाने जाते हैं. पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा और केंद्रीय जनजातीय मंत्री रहते हुए अर्जुन मुंडा और केंद्रीय भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव चुनाव हार चुके हैं. इसके बाद प्रदेश स्तर पर पूरे भाजपा में सन्नाटा सा छा गया है. पार्टी को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों, क्या वाकई में पूर्व सीएम हेमंत को जेल भेजने का असर आदिवासी सीटों पर पड़ा. ऐसे में अब प्रदेश भाजपा चार महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर आत्ममंथन के दौर से गुजर रही है.
केंद्रीय नेतृत्व ने आदिवासी सीट पर रिपोर्ट तलब की
झारखंड में पांच आदिवासी सीट पर बड़ी हार के बाद भाजपा केंद्रीय नेतृत्व अलर्ट मोड में आ गयी है. मिली जानकारी के अनुसार, नेतृत्व ने प्रदेश से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. रिपोर्ट के अध्ययन के बाद नेतृत्व आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बड़ा निर्णय ले सकती है. कई प्रदेशों के साथ-साथ झारखंड में आगामी दिनों बड़ा बदलाव देखा सकता है.
बाबूलाल, मुंडा और समीर उरांव के बाद प्रदेश में कोई बड़ा आदिवासी चेहरा नहीं
केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष सबसे बड़ा सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि एक बड़ा आदिवासी चेहरा बाबूलाल मरांडी के रहते इतना बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. इतना ही नहीं केंद्रीय जनजातीय मंत्री रहते हुए अर्जुन मुंडा और अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए समीर उरांव भी बड़े अंतर से चुनाव हार चुके हैं. इसके बाद केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष इनकी टक्कर और कद का बड़ा चेहरा सूझ नहीं रहा है. इसलिए प्रदेश की कमान किसे दिया जाए वह भी विधानसभा चुनाव के पहले, बड़ा यक्ष प्रश्न बन गया है. भाजपा खेमे से मिली जानकारी के अनुसार, आदिवासी चेहरे के रूप में भाजपा दो नाम पर दाव खेल सकती है, जिसमें रांची की राजनीति से सीधे सेंट्रल की राजनीति में इंट्री मार चुकी पूर्व मेयर, राष्ट्रीय सचिव एवं जनजातीय आयोग की सदस्य आशा लकड़ा, भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा के नाम सामने आ रहे हैं.
पांच सीटिंग आदिवासी सीट में तीन गंवा चुकी है भाजपा
भाजपा का लोहरदगा, खूंटी और दुमका आदिवासी आरक्षित सीट पर कब्जा था. मगर इस चुनाव में भाजपा इन तीनों सीट के अलावे राजमहल और चाईबासा सीट भी हार गयी. यानि कि भाजपा सभी पांच आदिवासी आरक्षित सीट गंवा चुकी है. इसलिए आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा की चिंता बढ़ गयी है. कैसे दो से तीन महीने में इसका डैमेज कंट्रोल किया जाए, इसे लेकर रांची से लेकर दिल्ली तक मंथन का दौर शुरू हो चुका है.