भक्तों को समझाया रावण का अहंकार व भक्ति का सार
Deoghar : देवघर में चल रही शिवकथा के दूसरे दिन शनिवार को कथावाचक प्रदीप मिश्रा सिहोर वाले ने रावण, शिव भक्ति व बैद्यनाथ धाम के रहस्य को विस्तार से समझाया. उनकी कथा सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो गए. महाराज जी ने रावण और भगवान शिव का प्रसंग समझाया. कहा कि रावण पूजा, मंत्र जाप, स्तुति, भजन और स्मरण सब करता था, मगर भावपूर्ण भक्ति नहीं कर सका. अहंकार में डूबा रावण वह शक्ति जुटाना प्राप्त करना था जिसे वह अपना मान ले. कैलाश उठाने जैसी बात करने वाला रावण भक्ति की मूल भावना को नहीं समझ पाया. लेकिन भगवान शिव तो भाव के भूखे हैं. इसलिए उन्होंने रावण की प्रार्थनाएं भी स्वीकार कीं. भगवान शिव किसी के भी भाव को अस्वीकार नहीं करते, चाहे वह तामसी ही क्यों न हो.
महाराज जी ने बाबा बैद्यनाथ धाम की अनोखी और रहस्यमयी कथा का भी विस्तार से उल्लेख किया. कहा कि इस कथा की जड़ें प्राचीन इतिहास में छिपी हैं और इसका प्रारंभ माता कौसल्या से जुड़ा है. माता कौसल्या, कोसल नरेश सुकोशल की पुत्री थीं, जिनका संबंध छत्तीसगढ़ से माना जाता है. इस कथा से महाराज जी ने सुकोशल के गुरु तत्वमुनि का भी गहरा संबंध बताया गया. तत्वमुनि ने ही वह निर्णायक भूमिका निभाई, जिससे बैद्यनाथ धाम की कथा और प्रबल हुई. यह प्रसंग सुन पंडाल में बैठे भक्त भाव विभोर हो उठे.
उन्होंने बताया कि भक्त वही है जिसके हृदय में दया, विनम्रता और सरलता हो. शिव सर्वाधिक दयालु देव हैं. रावण जैसा तामसी भी जब उनकी शरण में गया तो वे उसे खाली हाथ नहीं लौटाए. शिव के द्वार से आज तक कोई भी निराश नहीं लौटा. उन्होंने कहा कि दिखावा करने वाला कभी सफल नहीं होता, क्योंकि प्रदर्शन मनुष्य के भीतर अहंकार उत्पन्न करता है. कथा स्थल पर सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहा. पूरा परिसर हर-हर महादेव के जयघोष गूंजता रहा.
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