Jitan Kumar
Deoghar : देवघर के देवीपुर में बना एम्स देवघर ही नहीं बल्कि संथाल परगना सहित आसपास के ज़िलो के लोगों के लिए बड़ी उम्मीद की तरह है. लेकिन अस्पताल में जांच में लगने वाले समय से मरीज़ बेहाल और परेशान हो रहे हैं. आलम यह है कि मरीज़ अब प्राइवेट नर्सिंग होम का रूख करने लगे हैं.
जांच में तीन दिन का लग रहा समय
संथाल परगना के दूर-दराज़ के इलाकों से बड़ी उम्मीद के साथ मरीज़ एम्स पहुंचते हैं. यहां कूपन सिस्टम से मरीज़ों को देखा जाता है. हर रोज़ नए मरीज़ों के लिए 200 कूपन और पुराने मरीज़ों के लिए भी 200 कूपन ज़ारी किये जाते हैं. डॉक्टर मरीज़ों को टेस्ट लिखते हैं तो उसकी रिपोर्ट अस्पताल के लैब से तीन दिन बाद मिलती है. ऐसे में टेस्ट रिपोर्ट मिलने के बाद डॉक्टर से मिलने के लिए फिर से कूपन लेना पड़ता है. दोबारा कूपन लेने में भी वक्त लगता है. जिसके कारण दूर दराज़ से आए मरीज़ बार-बार अस्पताल का चक्कर लगाने को मजबूर हो रहे हैं. कई मरीज़ इस लेटलतीफ़ी से तंग आकर मजबूरन बाहर के प्राइवेट अस्पताल का रूख करने लगे हैं.
मरीज़ की आपबीती
दुमका से आए मरीज़ ने बताया कि 28 जुलाई को कूपन के ज़रिए एम्स में दाखिला लिया. डॉक्टर के लिखे टेस्ट के हिसाब से जांच करवाया. रिपोर्ट 3 दिन बाद देने की बात कही. तीन दिन बाद रिपोर्ट मिली तो कूपन नहीं मिल पाया. जिसके कारम डॉक्टर को रिपोर्ट नहीं दिखा पाये. काफ़ी कोशिश के बाद 18 अगस्त का कूपन मिला और डॉक्टर को दिखाया. डॉक्टर ने शुगर की जांच भी लिखी थी. लेकिन टेक्नीशियन ने इसे अनदेखा करते हुए शुगर की जांच नहीं की थी. फिर से कूपन से नंबर लगाते हुए 20 अगस्त को शुगर की जांच हुई. लैब टेक्नीशियन ने 3 दिन बाद जांच रिपोर्ट देने की बात कही. मरीज़ को 25 दिन से ज़्यादा का समय लग गया. अब वो थक चुका है.
गार्ड के व्यवहार से भी मरीज़ परेशान
मरीज़ों का कहना है कि गार्ड बिना कूपन मरीज़ों को अंदर नहीं जाने देते. जबकि गार्ड के परिचित बेरोकटोक अस्पताल में इधर उधर चहलकदमी करते रहते हैं. दुमका के उक्त मरीज़ की समस्या को लेकर जब मीडियाकर्मी एम्स प्रबंधन से मिलने की इच्छा जताई तो गार्ड नियम का हवाला देने लगा. जबकि सी समय गार्ड के परिचित कुछ लोग बिना किसी आधिकारिक अनुमति के अस्पताल में दाखिल होते नज़र आए.
सवाल है कि अगर एम्स जैसे अस्पताल में भी लोगों को समस्याएं होंगी तो लोग जाएंगे कहां. क्या देवघर एम्स में टेस्ट के लिए तीन का समय निर्धारित किया गया है. या फिर टेक्नीशियन जानबूझकर मनमानी कर रहे हैं. सवाल यह भी है कि मरीज़ों से संवाद और उन्हे आश्वस्त करने के लिए अस्पताल में क्या व्यवस्था है.