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सत्ता की बर्बरता और बौखलाहट के बावजूद किसान निडरता से डटे हुए हैं

Faisal Anurag ```` उठा लो लट्ठ! किसानों को तुम भी जवाब दो! देख लेंगे... हर इलाके से 1 हजार लट्ठ वाले किसानों का इलाज करेंगे. दो चार महीने जेल में रह आओगे तो बड़े नेता बन जाओगे!```` नरेंद्र मोदी के लोकतंत्र की जननी भारत के एक राज्य के मुख्यमंत्री का यह बयान है. मुख्यमंत्री भी कोई सामान्य नहीं है. प्रधानमंत्री की खास पसंद हैं. यह वही मुख्यमंत्री हैं जिनके संरक्षण में एक एसडीएम स्तर के आइएएस ने किसानों का सिर फोड़ने के लिए पुलिस को ललकारा था और एक किसान की मौत पुलिस की बर्बरता के नमूने के तौर पर सामने आया था. हरियाणा के मुख्यमंत्री के इस बयान के कुछ ही घंटों के भीतर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खिरी में चार किसानों को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री के बेटे ने गाड़ी से कुचल कर मार दिया. यही नहीं जब किसानों ने उसे पकड़ लिया तो उसने रिवाल्वर से गोली चला कर एक और किसान की हत्या कर दी. गृहराज्य मंत्री भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पसंद के हैं. किसानों के एक साल पूरे होने जा रही आंदोलन की बौखलाहट का ही नतीजा है कि भाजपा ने आपा खो दिया है. संविधान की शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री खट्टर का बयान बताता है कि विष कितना गहरा हो गया है. किसान नेता यूं ही नहीं कह रहे कि पूरा उत्तर प्रदेश लखीमपुर खिरी की घटना के बाद से ही एक आतंककारी राज्य के रूप में बदल गया है. यह आतंक 1975 की इमरजेंसी से भी ज्यादा भयावह है. विपक्ष के नेताओं को या तो घरों में नजरबंद कर दिया गया या फिर हिरासत में ले लिया गया. कांग्रेस की प्रियंका गांधी को लखीमपुर खिरी पहुंचने के सारे प्रयासों को रोकने के लिए जिस तरह की मुस्तैदी यूपी सरकार ने दिखायी, किसानों से संवाद या फिर गन्ने के बकाए राशि के भुगतान के लिए कभी नहीं दिखाया. बंगाल चुनाव के समय जब यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का हेलीकॉप्टर बंगाल में जब नहीं उतरने दिया गया तो पूरी भाजपा और केंद्रीय मंत्रियों ने भी हंगामा खड़ा कर दिया था. लखनऊ में छत्तीसगढ़ ओर पंजाब के मुख्यमंत्रियों के विमानों को नहीं उतरने दिया गया. इससे जाहिर होता है कि योगी सरकार किस तरह प्रतिरोध से डरी हुई है. लोकतंत्र निडर होने की सीख देता है लेकिन दुनिया के मंचों पर सबसे बड़े लोकतंत्र की जननी की बात करने वाले लोगों के लिए प्रतिरोध के लिए उठ खड़े लोगों के सवालों और विरोध का सामना करने का साहस नहीं दिखता है. सत्ता बर्बरता के अनेक उदाहरण हैं लेकिन जो कुछ लखीमपुर खिरी में देखा गया वह बदले की राजनीति का सबसे भयवाह और स्याह पहलू है. 314 दिनों पहले दिल्ली पहुंचने के बाद से ही भजापा की राज्य और केंद्र सरकारों ने किसानों को बदनाम करने,परेशान करने और उनके दमन का सिलसिला शुरू कर दिया था. इन 314 दिनों में सात सौ से ज्यादा किसानों की मौत हो चुकी है. एक किसान ने ठीक ही कहा नेता ने पहले किसानों के रास्ते में बैरिकेड बिछाए गए. फिर कीलें गाड़ी गयी. लाठी चलवाई गयी. वाटर कैनन छोड़े गए. उन्हें आतंकी कहा गया. उन्हें फर्जी किसान कहा गया. उन्हें चीनी और पाकिस्तानी कहा गया. उन्हें देशद्रोही और खालिस्तानी कहा गया. किसानों के खिलाफ मंत्री और मुख्यमंत्री ने भीड़ को उकसाया. बावजूद न तो किसानों का हौसला टूटा न ही वे कमजोर पड़े. मुजफ्फरनगर में हुए किसान महापंचायत में जब से किसान नेताओं ने विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराने का आह्वान किया तो बौखलायी भाजपा पूरी तरह आक्रामक हमलावर हो चुकी है. मुख्यमंत्री खट्टर का बयान तो इसकी बानगी भर है. किसान आंदोलन ने केंद्र की आर्थिक नीतियों,आक्रामक सुधार और राजनीति की निरंकुशता के खिलाफ साहस,राजनीतिक सूझबूझ और प्रतिरोध की चेतना का प्रदर्शन किया है. इस ने भारत की राजनीति को एक नया आयाम दिया है. इसने विपक्ष की राजनीति को भी तेवर प्रदान किया. इसने समझौता की राह लेने के बजाय लक्ष्य को हासिल करने के लिए आमलालोगों की ताकत पर भरोसा किया है. यही कारण है कि राजनीति के तमाम छलबल और प्रलोभन बेमानी साबित हो गए हैं. यूपी वह प्रदेश है जहां हर हाल में भारतीय जनता पार्टी दुबारा सत्ता में वापसी चाहती है. उसके इस मकसद की राह में किसान आंदोलन सबसे बड़ी बाधा बन कर खड़ा है. भाजपा की बौखलाहट का बुनियादी कारण यही है.लेकिन यह नहीं भुलना चाहिए कि लोकतंत्र में निर्णायक भारत के लोग ही हैं. 1974 में एक गीत आंदोलन का प्रतीक बन गया था जिसकी एक पंक्ति थी हम देखेंगे सत्ता कितनी बर्बर है,बौखलायी है. [wpse_comments_template]

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