Soumitra Roy
सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने वर्ष 2020-21 के लिए अग्रिम वित्तीय अनुमान जारी किया है. ये अग्रिम वित्तीय अनुमान ही साल के बजट का आधार बनते हैं. इसलिए स्थिति “बागों में बहार” वाली नहीं है.
इस वित्त वर्ष की पहली छमाही में भारत ने लॉकडाउन के कारण माल और उत्पाद सेवाओं में 11 लाख करोड़ गंवाए. नतीजतन 60 लाख करोड़ का ही उत्पादन हुआ. गौर करिये, लॉकडाउन का फैसला किस कमेटी की सलाह पर ली गयी, यह नोटबंदी के फैसले की तरह ही अब तक सार्वजनिक नहीं हुआ है.
दूसरी तिमाही में 74.4 लाख करोड़ के आसपास उत्पादन की उम्मीद है, यानी 8.5 लाख करोड़ का घाटा है. नीचे के टेबल को देखें.
यानी वर्ष 2020-21 में भारत की अर्थव्यवस्था 134.4 लाख करोड़ की होगी. 2019-20 में यह 145.7 लाख करोड़ थी. मतलब 11 लाख करोड़ से ज़्यादा का नुकसान हो चुका है.
अब इसमें से महंगाई को निकाल दें, तो भारत की असली जीडीपी वर्ष 2018-19 के स्तर पर आ चुकी है. याद रखें प्रधानमंत्री मोदी ने 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी का नया ऐलान किया था. नीचे के टेबल को देखें
भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी भी गिरकर वर्ष 2016-17 के स्तर पर आ चुकी है. यह इस साल 99,155 रुपए है. नीचे के टेबल को देखें.
ये अलग बात है कि मोदी सरकार में उनके मित्र माने जाने वाले चुनिंदा उद्योगपतियों की कमाई 10 गुना बढ़ी है, पर देश की अवाम कंगाल हो रही है.
अब आते हैं कि विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में लोगों की आय पर. लोगों की आय कितनी बढ़ी. मोदी काल में में अच्छे दिनों की उम्मीद न ही करें. ग्रॉस वैल्यू एडेड भी वर्ष 2018-19 के स्तर पर, यानी 123.4 लाख करोड़ पर आ चुका है. नीचे के टेबल को देखें
इस कंगाली में देश की अवाम क्या खा रही है और क्या-कितना खरीद रही है, यह जानने के लिए निजी खर्च देखना दिलचस्प होगा. यह भी वर्ष 2017-18 के स्तर पर आ चुका है. अब, आखिर में प्रति व्यक्ति औसत निजी खर्च की बात करें, तो यह भी वर्ष 2016-17 से कम यानी 55609 पर आ गया है. नीचे के टेबल से यह स्पष्ट होता है.
इन हालातों में अगर आप सोच रहे हैं कि एक कारोबारी या कंपनी माल और सेवाओं पर कितना खर्च कर रही है तो पता चलेगा कि यह 37 लाख करोड़ है. यानी वर्ष 2016-17 के खर्च से भी कम.
नीचे के ग्राफ से आप समझ सकते हैं, पेट्रोल-डीजल पर टैक्स बढ़ा करके मोदी सरकार किस तरह कमाई कर रही है. और लोगों को यही लग रहा है कि आर्थिक क्षेत्र में सरकार बेहतर काम कर रही है. जबकि सच यह है कि पेट्रोल-डीजल पर सरकार आम-आवाम को खून निचोड़ने के माफिक लूट रही है.
मोदीनॉमिक्स के पैरोकारों के लिए ये आंकड़ें, जुबान बंद करने वाले हैं. अलबत्ता, वित्त मंत्री जानती होंगी कि उन पर ब्रांडिंग और मोदीनॉमिक्स लॉबी का कितना दबाव है.
डिस्क्लेमरः यह लेखक के निजी विचार हैं.