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धनबाद:  कोयलांचल में राहत के साथ आफत भी लेकर आती है बरसात

हल्की बारिश में भी भू-धंसान, गैस रिसाव और गोफ से मच जाता है हाहाकार

Dilip Vishwakarma Dhanbad: पानी का स्वभाव है ठंडक पैदा करना. मगर जब यही पानी आग व विध्वंस का वाहक बन जाए तो जनजीवन का त्रस्त होना लाजिमी है. कोयलांचल में यही हो रहा है. बरसात का मौसम किसानों, मजदूरों सहित आम जन जीवन के बीच राहत बांटता फिरता है. इधर यही वर्षा का पानी कोलियरी व खदानों के लिए अभिशाप बन जाता है. बरसात आते ही खदानों की धधकती आग विस्फोट के जरिये भू धंसान के रूप में प्रकट होने लगती है और लोग अचानक दहशत के माहौल में जीने को विवश हो जाते हैं.

  सच हो रही है कबीरदास की उलटवासी

हरफन मौला कवि कबीरदास ने एक जगह लिखा है ‘ जल बीच मीन पियासी, मोहे सुनि सुनि आवत हांसी’. कबीरदास के लिखने व समझाने का संदर्भ दूसरा था. मगर सहज अर्थों में कबीर आज कोयलांचल में होते तो प्रकृति की इस उलटी लीला को देख कर हंसने की जगह ठहाका लगाने को विवश हो जाते. क्योंकि यहां पानी के बीच कोई प्यासा तो नहीं है, मगर वर्षा का पानी अपने स्वभाव के विपरीत आग और विध्वंस जरूर पैदा कर रहा है. बारिश की बूंदें गर्मी से राहत देती हैं, किसान-मजदूर खुश हो जाते हैं, खेत खलिहानों में हरियाली लौट आती है तो दूसरी तरफ अग्नि प्रभावित कोलियरी क्षेत्र में आए दिन हाहाकार मचने लगता है. ज्यों-ज्यों बारिश का तेवर चढ़ता है, कोलियरियों के इर्द-गिर्द भू धंसान किसी राक्षस की तरह अट्टहास करते प्रकट हो जाता है.

 कभी जमींदोज, कभी छिन जाता है आशियाना

वर्षा का पानी कई बार कोलियरियों में घुस कर कोयला निकालते मजदूरों को भी मौत की नींद सुला चुका है. लोग आज भी गजलीटांड़ कोलियरी की घटना को याद कर सिहर उठते हैं, जहां चालीस मजदूरों ने एक साथ जलसमाधि ले ली थी. भूधंसान से घरों में दरारें पड़ने, अचानक चलते-फिरते लोगों के जमींदोज होने की कहानी भी कोयलांचल की धरती के कोने-कोने में सुनने को मिलती रहती हैं. कभी गोफ बन जाता है, तो कभी गहरी खाई. इन गोफों में कई बार लोग जीते जी समा जाते हैं, तो कभी उनका आशियाना ही छिन जाता है.

 अति खतरनाक 81 क्षेत्र में दहशत का राज

कहने को तो धनबाद काला हीरा की धरती के नाम से मशहूर है. मगर इस धरती पर रहने वाले लोग दहशत के साये में जीने को विवश हैं. कभी अपराध, कभी खान दुर्घटना तो कभी फटती धरती. कोलियरियों में आग धधकती रही है. कभी पानी से तो कभी बालू से आग बुझाने का खेल भी चलता रहा है. मगर आग की जलन कम नहीं हो रही. रहनुमाओं ने कोयलांचल में 595 क्षेत्रों को अग्नि प्रभावित घोषित कर रखा है. उनमें से 81 क्षेत्र अति खतरनाक बताए गए हैं. आग, गैस रिसाव और भूधंसान के साये में जीने को विवश यहां के रैयत या कुछ तथाकथित अवैध कब्जाधारी लोग सुरक्षित पुनर्वास की मांग करते रहते हैं. परंतु उन्हें सुरक्षित जगहों पर शिफ्ट नहीं किया जा सका है.

 अक्सर आती रहती हैं भू-धंसान व गोफ की खबरें

वैसे तो कोयलांचल के किसी न किसी कोने से अक्सर भू-धंसान की खबरें आती रहती हैं. परंतु बरसात में प्रकृति की यह विध्वंस लीला अचानक बढ़ जाती है. हल्की बारिश में भी कभी कहीं आग की लपटें उठने लगती हैं, कभी गैस रिसाव होने लगता तो कङीं बड़ा गोफ (खाई) उभर आता है. इसी माह 25 जून को गोधर 6 नंबर में हवा चानक के पास अचानक धरती धंस गई. 5 फीट चौड़ा व 30 फीट गहरा गोफ देख इलाके में हाहाकार मच गया. इसके पहले 26 मई को भी इसी स्थल से करीब 100 मीटर की दूरी पर बिजली घर के पास 8 फीट चौड़ा व 30 फीट गहरा गोफ बन गया था. 17 जून की देर रात तेतुलमारी क्षेत्र के चंदौर पैच में भी जमीन फट गई और गहरा गोफ उभर आया.

  सिर्फ रस्म निभाता है बीसीसीएल प्रबंधन

बीसीसीएल प्रबंधन पोकलेन की मदद से उसमें बालू भर कर अपना पल्ला झाड़ लेता है. कोई स्थायी समाधान नहीं. लोग इसी भय, दहशत और मौत की आहट के बीच जीवन गुजारने को विवश हैं. आसपास की पिछली घटनाओं को याद कर उनके रोएं सिहर जाते हैं. 18 फरवरी को लोदना क्षेत्र के कुजामा परियोजना स्थित लिलोरी पथरा में अचानक जमीन फटने से आग भड़क उठी थी. झरिया में कुछ वर्ष पूर्व इंदिरा गांधी चौक, बस्ताकोला में भू-धंसान हुआ, जिसमें बाप-बेटे के साथ ही शौच करने गई एक युवती उसमें समा गई. कई घरों में दरार के साथ गैस रिसाव होना आम बात है.

  केंद्रीय सचिव का आदेश भी नहीं दे सका राहत

कुछ माह पूर्व ही कोयला सचिव अमृत लाल मीणा ने जिले के कई अग्नि प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था. क्षेत्र की भयावह स्थिति को देख उन्होंने वहां से लोगों को अन्यत्र बसाने का आदेश भी दिया था. एक आंकड़े के अनुसार इन क्षेत्रों में 14,460 परिवार रहते हैं. इनमें 1860 रैयत व 12,600 परिवार अवैध कब्जाधारी हैं. इनकी शिफ्टिंग की जिम्मेदारी बीसीसीएल व जेरेडा की है. प्रबंधन करमाटांड़ व बेलगड़िया जैसे टॉउनशिप का निर्माण कर वहां अग्नि प्रभावितों को बसाने का काम कर रहा है. हालांकि उन टाउनशिप में सुविधाओं का अभाव देख लोग वहां जाना नहीं चाहते. कुछ अन्य कारणों से भी इस काम में अड़चन आती रहती है. [wpse_comments_template]

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