Dhanbad : एक ऐसा त्योहार, जो अमीरी-गरीबी, छोटा-बड़ा सबका भेद भुला देता हो, उसे रंगोत्सव कहते हैं. कोयलांचल भी इससे अछूता नहीं रहा है. कोयले की खान से लेकर इस जिले के अलग अलग हिस्सों में होली आज भी मनाई जा रही है और पहले भी मनाई जाती थी. लेकिन अब इस त्योहार में कुछ फर्क भी नजर आने लगा है. पहले महीनों से लोगों के बीच उमंग और उत्साह देखने को मिलता था. परंतु अब मध्यम वर्ग की जीवन शैली में बदलाव ने इस उत्सव को बदल डाला है. अब होली सामूहिक नहीं होकर व्यक्ति विशेष तक सिमट कर रह गई है. इसे बनावटी होली भी कह सकते हैं.
टोले-मुहल्ले में दिखने वाली उमंग गायब
टोले-मुहल्ले का समूह तो गायब ही हो चुका है. त्योहार में सबसे पहले लोग खाने-पीने (शराब) का जुगाड़ लगाते हैं, दो चार इष्ट मित्र आये तो ठीक, नहीं तो खा पी कर सो गए. होली का आनंद भी अब इन्हीं चीजों से मिल रहा है. टोले-मुहल्ले में न फागुन का गीत और न ही ढोल मजीरा की धुन सनाई पड़ती है. बहुत खुश हुए तो कान-फाडू डीजे बजा और वहीं लुढ़क गये. पिछले दो दशक से होली को लोग इसी रूप में स्वीकार कर रहे हैं.
उमंग बढ़ाने के लिये शराब जरूरी
नई युवा पीढ़ी में विगत कुछ दशकों में शराब की लत तेजी से बढ़ी है. 5 प्रतिशत लोगों को छोड़ दें तो ज्यादातर लोग उमंग के लिये भी शराब पीने लगे हैं. होली, दशहरा हो या कोई अन्य पर्व, शराब के बिना ज्यादतर लोगों का काम ही नहीं चलता. उत्सव के इस अंदाज की वजह से कई युवाओं की जान भी चली जा रही है. बावजूद इस लत से युवाओं का एक बड़ा वर्ग पीछे हटने को तैयार नहीं.
संयुक्त परिवार का टूटना भी बड़ी वजह
कोयलांचल में होली का उत्सव पहले संयुक्त परिवार के साथ मनाया जाता था. अब इस शहर में ज्यादातर सिंगल फेमिली का वास है. घरों में बच्चे भी एक या दो ही रह गए हैं. आगे बढ़ने की होड़ में अब संयुक्त परिवार बड़ी बाधा समजी जा रही है. बहुत खुश होने पर लोग फोन से ही होली की बधाई दे रहे हैं. बहुत लोग तो कापी पेस्ट से ही काम चला लेते हैं. यही वजह है कि होली में अब रंग के साथ उमंग भी कम हुई है.
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अहंकार से बढ़ी दूरियां : प्रमोद पाठक
आईआईटी आईएसएम के पूर्व शिक्षक प्रमोद पाठक कहते हैं कि होली रंग और उमंग का त्योहार तो है ही, लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में लोगों के बीच अहम ज्यादा बढ़ गया है. इस वजह से लोगों के बीच दूरियां बढ़ी है. यह त्योहार आपसी मनमुटाव कम करने के साथ आपसी भाईचारा बढ़ाने का संदेश देता है. इसे हर किसी को कायम रखना चाहिए. जहां तक युवाओं की बात है तो यह पश्चिमी सभ्यता का असर है, अब तो पीने- पिलाने का प्रचलन चल पड़ा है. इसके बिना तो कोई काम होता ही नहीं. इसे अच्छा-बुरा क्या कहें, यह तो अपनी अपनी सोच पर निर्भर करता है.
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