Dhanbad : विजयादशमी के अवसर पर शहर के विभिन्न पूजा पंडालों और मंदिरों में पारंपरिक सिंदूर खेला का आयोजन भक्तिभाव और उल्लास के वातावरण में संपन्न हुआ. इस मौके पर बड़ी संख्या में महिलाएं और युवतियां पारंपरिक परिधानों में सज-धज कर शामिल हुईं.
अनुष्ठान की शुरुआत मां दुर्गा की प्रतिमा को सिंदूर अर्पित कर की गई. इसके पश्चात विवाहित महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सौहार्द और खुशियों का आदान-प्रदान किया. मान्यता है कि इस परंपरा का पालन करने से परिवार में सुख-शांति, सौभाग्य और समृद्धि आती है.
महिलाओं ने मां दुर्गा से अपने पति की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली की भी प्रार्थना की. पूरे आयोजन के दौरान मंदिर परिसर ढाक-ढोल की थाप और 'जय मां दुर्गा' के जयकारों से गूंजता रहा.
शहर के हीरापुर हरि मंदिर, दुर्गा मंदिर, नेपाली काली मंदिर, सरायढेला दुर्गा मंडप, बंगाली वेलफेयर सोसायटी (पार्क मार्केट), बंगाली कल्याण समिति (जिला परिषद परिसर), झरिया आमलापाड़ा समेत अनेक पूजा मंडपों में सुहागिन महिलाओं ने इस परंपरा को निभाया और एक-दूसरे को दुर्गा पूजा की शुभकामनाएं दीं.
सिंदूर खेला के बाद श्रद्धालुओं ने गाजे-बाजे, ढाक-ढोल और बांग्ला डीजे की थाप पर थिरकते हुए स्थानीय तालाबों में मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया. इस भावुक क्षण में श्रद्धालुओं ने "आस्छे बोछोर आबार होबे" (अगले वर्ष फिर आइए) का आह्वान करते हुए मां को विदाई दी.
इस दौरान कई महिलाओं ने कहा कि सिंदूर खेला सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह सामाजिक मेलजोल और आपसी रिश्तों को मजबूत बनाने का भी माध्यम है. उन्होंने कहा कि मां की विदाई भले ही भावुक करती है, लेकिन साथ ही अगले वर्ष पुनः उनके आगमन की आशा और उत्साह भी मन में जगाती है.
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