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धनबाद: पशुधन की सेवा से आत्मनिर्भर बन रही गोशाला: मैनेजर

गाय के दूध और गोबर से कई उत्पाद तैयार कर बढ़ाई जा रही आमदनी

Dhanbad: जिन पशुओं को हम बेकार समझ कर सड़क पर मरने के लिए छोड़ देते हैं, उन्हीं को जिले में स्थापित गोशाला सहेजने के साथ अपनी आमदनी भी बढ़ाने का काम कर रही है. [caption id="attachment_741888" align="aligncenter" width="272"]https://lagatar.in/wp-content/uploads/2023/08/Kashinath-1-272x181.jpg"

alt="" width="272" height="181" /> काशीनाथ शर्मा, कतरास गंगा गोशाला मैनेजर[/caption] कतरास श्री गंगा गोशाला के मैनेजर काशीनाथ शर्मा ने बताया कि वर्ष 1920 में कतरासगढ़ के राजा गंगा नारायण सिंह ने इस गोशाला की स्थापना की थी. उन्हीं के नाम पर यह गोशाला आज भी चल रही है. यहां कुल 1007 गोवंश हैं, जिनमें दूध देने वाली गायों की संख्या 158 है. वर्ष 2021 -22 में गोशाला से 2,60,952 लीटर दूध का उत्पादन हुआ. दूध की बिक्री के साथ गोबर से खाद और कांडा तैयार किया जाता है. इससे भी अच्छी खासी आमदनी हो जाती है. गोशाला आत्मनिर्भर हो रही है. समाज के प्रबुद्ध लोग एवं समिति इसका संचालन करती है.

 बस्ताकोला गोशाला भी बढ़ा रही है आमदनी

[caption id="attachment_741889" align="aligncenter" width="272"]https://lagatar.in/wp-content/uploads/2023/08/deepak-managerr-1-272x181.jpg"

alt="" width="272" height="181" /> दीपक कुमार, बस्तकोला गोशाला के मैनेजर[/caption] कतरास के साथ बस्ताकोला गोशाला की स्थापना भी 1920 में हुई थी. गोवंश पर बढ़ते अत्याचार और बूढ़ी गायों को वध से रोकने के लिए इसकी स्थापना हुई थी. गोशाला के मैनेजर दीपक कुमार ने बताया कि आज यहां पशुधन की संख्या 725 है, जिसमे गाय : 425 , बाछा : 140 , बाछी : 120 और सांड़ की संख्या 30 है. गोशाला समिति की ओर से डेयरी की स्थापना, भूमि की वृद्धि, जल की व्यवस्था, गोधन का विकास व कई नए निर्माण कार्य किए गए हैं. दूध से कई उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं, साथ ही गोबर से कांडा और खाद तैयार किया जा रहा है. कुल 52 लोग इस रोजगार से जुड़े हुए हैं. प्रतिदिन एक हजार कांडा तैयार होता है, जिसका उपयोग शव जलाने में किया जाता है.

 सेवाभाव से पशुधन की होती है देखभाल

गोशाला के मैनेजर ने बताया कि दूध नहीं देने वाले पशुओं की देखभाल अच्छे तरीके से होती है. पुलिस या सामाजिक संस्था द्वारा सड़क से लाई जाने वाली गायों की सेवा भी अच्छे ढंग से की जाती है. किसी तरह का भेदभाव नहीं होता है. उन्होंने बताया कि दूध नहीं देने वाले पशुओं को सड़कों पर छोड़ना या कसाई के हवाले कर देना गलत है. पशुधन को नहीं रख पाने वाले पशुपालकों को उन्हें नजदीकी गोशाला को सौंप देना चाहिए.

   शव जलाने में कांडा का हो रहा उपयोग

गाय की हर चीज उपयोगी है. गोबर से बनने वाला कांडा आज कतरास लिलोरी स्थान स्थित शमशान में बड़े पैमाने पर बन रहा है. इससे गोशाला की आमदनी के साथ शव को जलाना भी आसान है. इससे प्रदूषण का खतरा भी नहीं रहता है. लकड़ी के मुकाबले सस्ता भी पड़ता है. [wpse_comments_template]

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