Ram Kumar Pandey
Katras : कतरास इलाके में नियम-कानून को ठेंगे पर रख कर अवैध ईंट भट्ठों का संचालन करनेवाले जमीन और पेड़-पौधों को नष्ट कर रहे हैं. यहां तक कि इन लोगों ने कोयलांचल की धरोहर कतरी नदी को भी खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. लाल चौक स्थित कतरी नदी के सीने पर ही अवैध ईंट भट्ठे बेखौफ धधक रहे हैं. यहां धंधेबाजों को रोकने वाला कोई नहीं है. वन विभाग, जिला प्रशासन, पुलिस, पर्यावरण विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सभी संस्थाएं कारगर उपाय करने में अक्षम साबित हो रही हैं. हालांकि, उपायुक्त के निर्देश पर खनन विभाग ने दो ट्रैक्टर व एक जेसीबी को पकड़ने का काम कर उम्मीदों को जिंदा रखा है.
नदी किनारे भट्ठों का संचालन कर्म खर्चीला
कतरास इलाके में कतरी नदी के ठीक बगल में ही कई ईंट भट्ठों का संचालन किया जा रहा है. न सिर्फ नदी के बगल से मिट्टी ली जाती है, बल्कि पानी आदि का भी जुगाड़ कतरी नदी से ही पूरा हो जाता है. इस वजह से नदी किनारे भट्ठों का संचालन कर्म खर्चीला होता है. ज्ञात हो कि नदी के आसपास के इलाके की मिट्टी भी ईंट के लिए बेहतर मानी जाती है. इस कारण यहां के ईंट भट्ठों में पकाई गयी ईंटों का बड़ा कारोबार होता है और बाजार में डिमांड भी ज्यादा है.
नदी के अस्तित्व पर मंडरा रहा है खतरा
अवैध ईंट भट्ठा संचालकों को कतरी नदी के किनारे मुफ्त में जमीन, पानी, मिट्टी सारी व्यवस्थाएं आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं. सिर्फ इलाकाई पुलिस की जेब गर्म करनी होती है. ऐसे में इन अवैध कारोबारियों के लिए ये नदी मुनाफा का सौदा है. लेकिन चिंता की बात ये है कि नदी का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है. नदी की धार अब संर्कीण हो चुकी है. कहीं-कहीं तो नाले में तब्दील हो गई है. ऐसे में ये भट्ठा संचालक नदी के पानी का उपयोग कर नदी की ताबूत में आखिरी कील ठोंकने का काम कर रहे हैं.
कतरी नदी के नाम पर कतरास का नामकरण
कतरास शहर का नामकरण कतरी नदी के नाम पर ही हुआ है. कभी अपने कलकल बहते पानी से लोगों की प्यास बुझाने वाली कतरी नदी आज अधिकारियों की उदासीनता और अवैध ईंट भट्ठा कारोबारियों की भेंट चढ़ती जा रही है. नदी को बचाने व संरक्षित करने की दिशा में शासन-प्रशासन के सारे दावे खोखले रहे हैं. अब ईंट के अवैध कारोबारी धीरे-धीरे नदी को नेस्तनाबूद कर रहे हैं.
कभी कतरी नदी से मिलता था पीने का पानी
पारसनाथ पहाड़ी से निकली कतरी नदी, जिसके किनारे कतरास शहर बसा है, झरिया कोलफील्ड के बाद यह कोयलांचल का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. कभी कतरी नदी से कतरास वासियों को पीने का पानी मिलता था, लेकिन आज उस कतरी नदी की तस्वीर अवैध ईंट भट्ठा कारोबार के कारण बदतर होती जा रही है. जानकारी के अनुसार, इस नदी का पानी 1967 के भीषण आकाल में भी नहीं सूखा था. पहले स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़े लोगों के सहयोग से नदी की सफाई होती थी. टाटा कंपनी के क्वार्टरों में इस नदी के पानी की सप्लाई आज भी होती है.
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