Nirsa : धनबाद के सांसद ढुल्लू महतो ने नई दिल्ली में केंद्रीय ऊर्जा सचिव से मिलकर डीवीसी मैथन व पंचेत डैम के विस्थापितों से संबंधित छह सूत्री मांगपत्र सौंपा. उन्होंने ऊर्जा सचिव को विस्थापितों की वर्षों पुरानी मांगों के बारे में विस्तार से बताया और उनके समाधान की मांग की. मांगपत्र में कहा गया कि डीवीसी के स्थापना काल से अब तक करीब 70% विस्थापितों का अब तक कंपनी में नियोजन नहीं हुआ है. डीवीसी मुख्यालय कोलकाता में होने के कारण फर्जी विस्थापितों को नियोजन दिया गया, जिसके विरोध में झारखंड के विस्थापितों ने अर्धनग्न प्रदर्शन किया था. इसके बाद भी प्रबंधन ने कोई कार्रवाई नहीं की. नौकरी की आस में सैकड़ों विस्थापितों की मौत हो चुकी है और उनके वंसज दिहाड़ी मजदूरी करने को विवश हैं. नियोजन का लाभ पश्चिम बंगाल के फर्जी विस्थापितों को दे दिया गया.
सांसद ने कहा कि आश्चर्य की बात यह है कि डीवीसी प्रबंधन ने विस्थापितों की बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं का समाधान अब तक नहीं किया है. विस्थापित धनबाद जिले के मैथन, पंचेत जामताड़ा जिले के बार्डर इलाके में रहते हैं. पत्र में यह भी कहा गया है कि विस्थापित एवं स्थानीय लोगों के स्वरोजगार के लिए प्रबंधन छोटे टेंडर देने का काम करता था, जिस पर अब ग्रहण लग गया है. ग्लोबल टेंडरिंग की वजह से विस्थापित व स्थानीय लोग टेंडर प्रक्रिया में भाग नहीं ले पा रहे हैं, जिससे हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं. यही नहीं, विस्थापित कैजुअल व ठेका मजदूरों से स्थायी प्रकृति का काम तो लिया जाता है, लेकिन उन्हें कुशल, अर्धकुशल व अकुशल मजदूर की मजदूरी का भुगतान नहीं किया जा रहा है. पीएफ व ESI जैसी मूल सुविधाओं से भी उन्हें दूर रखा गया है. डीवीसी ने मैथन एवं पंचेत प्रोजेक्ट के लिए जिन गांवों को विस्थापित किया, वहां के लोगों को दूसरी जगह बसाया तो गया है, लेकिन आज तक उनके नाम जमीन का हस्तांतरण नहीं किया गया. इससे उन्हें न तो झारखंड सरकार की योजनाओं का लाभ मिल पाता है, न ही उनके बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए जाति प्रमाणपत्र, आवासीय प्रमाणपत्र व आय प्रमाणपत्र बन पाता है. निरसा विधानसभा क्षेत्र की सोनबाद पंचायत का लुआबाद गांव इसका उदाहरण है.
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