तोपचांची झील में लगी देश के पहले प्रधानमंत्री की प्रतिमा को नक्सलियों ने 10 साल पहले उड़ा दिया था
Akshay choubey
Topchanchi : धनबाद शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर तोपचांची झील की प्राकृतिक व नैसर्गिंक सुंदरता देखते ही बनती है. झील की ऐसी बनावट है कि अगर इसमें पूरी तरह पानी भर जाए, तो इसका स्वरूप अखंड भारत के मानचित्र जैसा दिखता है. ब्रिटिश शासन काल में बिहार-ओडिशा के तत्कालीन गवर्नर सर हेनरी वीलर ने कोयलांचल में जलापूर्ति के उद्देश्य से 15 नवंबर 1924 को इस झील की नींव रखी थी. अपनी खूबसूरती के लिए यह झील न सिर्फ झारखंड, बल्कि बिहार व पश्चिम बंगाल में भी प्रसिद्ध है. इस झील में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की 8 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित थी, जिसे करीब 10 साल पहले नक्सलियों ने अपना इकबाल बुलंद करने के इरादे से विस्फोट कर उड़ा दिया था. प्रतिमा वाली जगह पर अब सिर्फ स्तंभ बचा है. स्तंभ के चारों तरफ लोहा के सरिया का घेराव किया गया है.
तोपचांची थाना में रखे हैं प्रतिमा के अवशेष
प्रतिमा क्षतिग्रस्त होने बाद तोपचांची थाना में मामला दर्ज हुआ था. प्रतिमा के अवशेष तोपचांची थाना में जब्त कर रखे गए थे. विस्फोट में प्रतिमा का कुछ हिस्सा गायब हो गया था. इस घटना के बाद देश से लेकर राज्य तक में बीते 10 वर्षों में नई सरकारें बनीं, लेकिन न तो सरकार, न ही नेताओं ने प्रतिमा दुबारा स्थापित करने का प्रयास किया. नक्सलियों द्वारा प्रतिमा उड़ाने के पीछे मंशा ये थी कि वो इलाके में अपने दबदबा की बात जताना चाहते थे, उन्होंने वैसा किया भी. कानून के इकबाल का टूटा-फूटा अवशेष अब भी थाने में पड़ा है. इस मामले में अब तक न तो कोई पकड़ा गया और न ही पुलिस इस मामले में चार्जशीट दायर कर दोषियों को सजा दिलवा पाई.
आज भी वीरान है प्रतिमास्थल
10 वर्ष बीत जाने के बाद भी तोपचांची झील का प्रतिमा स्थल पंडित नेहरू की प्रतिमा के बिना वीरान पड़ा है. कम से कम कांग्रेस के नेताओं को तो इस प्रतिमा के प्रति कुछ सोच होनी चाहिए थी. लेकिन पिछले दस सालों में कोई यहां नहीं आया. असल में ये विषय राजनीति की भेंट चढ़ गया. लेकिन सच्चाई ये है कि विस्फोट और नक्सली वारदातों का इरादा कुछ और था. विस्फोट का परिणाम भी तब उनके पक्ष में ही गया. झील में पर्यटन काफी कम हो गया है. झील की मरम्मत से लेकर इसके विकास में काफी गिरावट आई है.
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