Dhanbad : हाल के दिनों में कोचिंग संस्थान ने एक असंगठित उद्योग का रूप ले लिया है. शिक्षा माफिया अब स्कूल, कॉलेज जैसे शिक्षण संस्थान को छोड़कर इस क्षेत्र में उतर रहे हैं. क्योंकि इसे रेगुलेट या मॉनिटर करने के लिए अब तक जिला प्रशासन से लेकर केंद्र तक कोई कानून नहीं बना है. इस तकनीकी कमी का उपयोग कर कोचिंग संस्थान अभिभावकों का शोषण कर रहे हैं तो बच्चों का करियर भी तबाह हो रहा है.
नामांकन से फीस निर्धारण तक मन मुताबिक
कोचिंग संस्थानों में नामांकन, एक बैच में विद्यार्थियों की तय संख्या, शिक्षकों की योग्यता, समय पर सिलेबस पूरा कराने की जिम्मेवारी, कोर्स फीस तय करने का कोई नियम या कानून नहीं है. इस वजह से हज़ारों-लाखों की फीस लेने के बाद भी एक कमरे में सैकड़ों विद्यार्थियों को बैठा कर पढ़ाने की परंपरा है.
भारी भरकम फीस से विद्यार्थी परेशान
जिले में नर्सरी से लेकर पीएचडी कोर्स वर्क तक की सामान्य पढ़ाई कराने वाले सैकड़ों कोचिंग संस्थान हैं. इनके अलावा आईआईटी-जेईई, नीट मेडिकल समेत प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों की संख्या भी सैकड़ों में है. नियम व कानून नहीं होने का फायदा उठाते हुए कोचिंग संस्थान मनमाने तरीके से फीस तय करते हैं. कई कोचिंग संस्थान एक वर्ष की कोचिंग के लिए 40 से 50 हज़ार रुपया चार्ज करते हैं, तो दूसरी ओर मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी कराने वाले विद्यार्थियों से संबंधित कोचिंग संस्थान एक से दो लाख रुपये की भारी भरकम राशि भी वसूलते हैं.
शिक्षकों की योग्यता का कोई मापदंड नहीं
कानून नहीं होने की वजह से कोचिंग संस्थानों में शिक्षकों की योग्यता का कोई मापदंड नहीं होता. इस वजह से कई कोचिंग संस्थानों में अयोग्य शिक्षक रख लिए जाते हैं. योग्यता के अभाव में खराब परिणाम कोचिंग के विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को उठाना पड़ता है. कोचिंग संचालक शिक्षकों को कर्मचारी की हैसियत से देखते हैं.
कोचिंग छोड़ने पर फीस वापसी का प्रावधान नहीं
कोचिंग की खराब पढ़ाई से परेशान होकर जब विद्यार्थी संस्थान छोड़ देता है तो अधिकतर मामलों में उनका पूरा पैसा डूब जाता है. क्योंकि कोचिंग छोड़ने पर फीस वापसी का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है.
धनशोधन का बड़ा अड्डा
नियम व कानून नहीं होने की वजह से कोचिंग संस्थान धन शोधन का अड्डा भी बनते जा रहे हैं. कोचिंग में विद्यार्थियों की संख्या और कुल कमाई का हिसाब छिपाया जाता है. मोटी फीस वसूलने वाले कोचिंग संस्थान प्रत्येक माह लाखों रुपये की कमाई करते हैं, लेकिन उचित इनकम टैक्स सरकार को नहीं देते.
अधिकतम 40 विद्यार्थियों के बिठाने का नियम
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झारखंड अभिभावक महासंघ के उपाध्यक्ष मुकेश पांडेय कहते हैं कि सीबीएसई में प्रति छात्र एक स्क्वायर मीटर के हिसाब से एक कक्षा में अधिकतम 40 विद्यार्थियों के बिठने का नियम है. लेकिन कोचिंग संस्थानों में विद्यार्थियों को भेड़-बकरी की तरह एक ही कक्षा में ठूंस दिया जाता है, जिससे शैक्षणिक माहौल प्रभावित होता है.
रेगुलेटरी बॉडी का गठन होना चाहिए
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झारखंड अभिभावक महासंघ के महासचिव मनोज मिश्रा ने कहा कि सरकार ने प्ले स्कूल को मॉनिटर करने के लिए भी रेगुलेटरी बॉडी का गठन कर दिया है. ऐसे में व्यावसायिक बनते जा रहे कोचिंग संस्थानों को मॉनिटर करने के लिए भी रेगुलेटरी बॉडी का गठन होना समय की मांग है.