1967 के भीषण अकाल में भी नहीं सूखी थी नदी
पूर्व पार्षद हरि प्रसाद अग्रवाल कहते हैं कि कतरी नदी की वजह से ही शहर का नाम कतरास पड़ा. यह नदी यहां की जीवनरेखा है. इसके अस्तित्व की रक्षा के लिए नगर निगम, बीसीसीएल व आउटसोर्सिंग कंपनियों का सहयोग लेना चाहिए. नदी की सफाई करानी चाहिए. कहा कि इस नदी का पानी 1967 के भीषण आकाल में भी नहीं सूखा था. बहुत पहले स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़े लोगों के सहयोग से नदी की सफाई करते थे.उत्खनन परियोजना के कारण हालत बदतर
जलेस की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा मृणाल कहती हैं कि पारसनाथ पहाड़ी से निकली कतरी नदी के किनारे बसा हा खूबसूरत कतरास शहर. झरिया कोलफील्ड के बाद कोयलांचल का यह महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. इस नदी से कतरास वासियों को भी पीने का पानी मिलता है. आज उस नदी की स्थिति उत्खनन परियोजना के कारण बदतर व दयनीय होती जा रही है.शहर की लाइफलाइन रही है कतरी नदी
चैंबर ऑफ कॉमर्स कतरास के सचिव मनोज कुमार गुप्ता ने कहा कि जिस कतरी नदी को शहर की लाइफलाइन माना जाता है, उसमें धड़ल्ले से नाली का गंदा पानी और कूड़ा-कचरा फेंका जा रहा है. इस दिशा में आज तक किसी जनप्रतिनिधि ने सार्थक पहल नहीं की. जरूरत है एक जोरदार आंदोलन की. तभी कतरी नदी के अस्तित्व को बचाया जा सकता है.इसी नदी के किनारे बैठ कर बिताते थे फुर्सत के क्षण
व्यवसायी श्यामाकांत गप्ता ने भी उनकी बात से सहमति जताई. कहा कि कतरी नदी की सूरत बदलनी चाहिए. एक समय था, जब शहर के लोग फुर्सत के पल इस नदी के किनारे बैठ कर बिताते थे. किनारे पर लोग मार्निंग वाक करते थे. लोक आस्था के महापर्व छठ के समय हर कोई कर सेवा करता था. इस नदी के बारे में जनप्रतिनिधि और सामाजिक संस्थाओं को सोचना चाहिए. क्योंकि नदी के नाम पर पर ही यह शहर है. यह भी पढ़ें : धनबाद">https://lagatar.in/dhanbad-jmm-curses-bccl-gm-for-problems-in-sijua/">धनबाद: सिजुआ में झामुमो ने समस्याओं के लिए बीसीसीएल जीएम को कोसा [wpse_comments_template]

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