Nirsa : लोगों को शांति पाने के लिए ध्यान, भजन, पूजा-पाठ का अभ्यास करना चाहिए. अपने इष्टदेव के नामों का जाप करना चाहिए. अपनी इच्छाओं को छोड़ अपने इष्टदेव पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. जब इच्छाएं पूरी नहीं होतीं या वे असफल हो जाते हैं, तो उनका मन अशांत हो जाता है.अशांत मन से की गई पूजा या कार्य का पूरा फल नहीं मिलता. उक्त बातें कुसुमकनाली गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक मोहित मोहन दास ने कहीं. वह कथा के दूसरे दिन राजा परीक्षित व शुकदेव जी संवाद का प्रसंग सुना रहे थे. कहा कि राजा परीक्षित को श्रृंगी ऋषि ने शाप दिया था. श्रृंगी ऋषि शमीक ऋषि के पुत्र थे. राजा परीक्षित द्वारा पानी मांगने पर ध्यान में मग्न शमीक ऋषि ने नहीं सुना, इससे आक्रोशित राजा परीक्षित ने ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डाल दिया था.
उन्होंने कहा कि लोग धन और सम्पत्ति के लिए निरंतर संघर्ष करते रहते हैं. जो उनके पास नहीं है उसे चाहते हैं. ये चीजें यहीं रह जाएंगी. आपके साथ सिर्फ किया गया कर्म व पुण्य-पाप ही साथ जाएंगे. इसे हर किसी को समझना चाहिए. कथा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि 6 दिनों तक श्रीमद्भागवत कथा सुनने के बाद सातवें दिन राजा परीक्षित को मोह-माया से विरक्ति हो गई और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई. राजा परीक्षित की मृत्यु के पश्चात कलयुग का प्रारंभ हुआ. हम सभी को नश्वर संसार रहते हुए सत्कर्म व संकीर्तन करते रहना चाहिए. यही मोक्ष का सर्वोत्तम माध्यम है.
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